Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
12-26-2018, 11:03 PM,
#74
RE: Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
सुबह सुबह सात बजे के आस पास उठ कर सारी (लघु तथा दीर्घ) शंकाओं का समाधान करा और फिर से सो गया।

फिर मेरी नींद करीब 11 बजे खुली लेकिन जब मैंने उठने की कोशिश की तो उठ नहीं पाया।

वजह थी मेरे हाथ रस्सी से बंधे हुए थे, पलंग के दोनो किनारों की तरफ और मेरे पैरों का भी वही हाल था।

मुझे लगा कि यह पलक की ही शरारत है, वो घर पर भी ऐसे ही परेशान करती रहती थी मुझे हर बार नई शरारतों से तो मैंने पलक को आवाज देना शुरू कर दिया।

मेरी आवाज सुन कर पलक तो नहीं आई पर आंटी आ गई।

मैंने उनसे कहा- "कहाँ है वो गधी, आज उसे नहीं छोडूंगा।

तो आंटी बोली- वो अभी तक आई नहीं है।

मुझे कुछ समझ नहीं आया पर मैंने आंटी से कहा- अच्छा ठीक है पर मुझे खोलिए तो !

तो आंटी बोली "अगर खोलना ही होता तो इतनी प्यार से बांधती क्यों तुमको?

आंटी की बात सुन कर मेरा माथा घूम गया कि चक्कर क्या है।

मैंने आंटी से कहा- क्या कह रही हो आंटी?

तो बोली- सच कह रही हूँ, मैंने ही बांधा है और खोलने के लिए नहीं बाँधा।

"पर क्यों?" मैंने सवाल किया।

"तेरा बलात्कार करने के लिए !" आंटी ने जवाब दिया।
मुझे कुछ समझ नहीं आया पर मैंने आंटी से कहा- अच्छा ठीक है पर मुझे खोलिए तो !

तो आंटी बोली "अगर खोलना ही होता तो इतनी प्यार से बांधती क्यों तुमको?

आंटी की बात सुन कर मेरा माथा घूम गया कि चक्कर क्या है।

मैंने आंटी से कहा- क्या कह रही हो आंटी?

तो बोली- सच कह रही हूँ, मैंने ही बांधा है और खोलने के लिए नहीं बाँधा।

"पर क्यों?" मैंने सवाल किया।

"तेरा बलात्कार करने के लिए !" आंटी ने जवाब दिया।

मैंने कहा- ऐसे मजाक अच्छे नहीं होते आंटी, खोलो मुझे जल्दी से !

तो मेरी बात सुन कर आंटी वहाँ से उठ कर चली गई जब वो वापस आई तो उनके हाथों एक बड़ा सा पानी का जग था।

मैंने कहा- अब मुझे बिस्तर पर ही नहलाने वाली हो क्या?

तो बोली- नहीं ब्रश करवाने वाली हूँ !

और वो वापस चली गई।

फिर वो वापस आई तो उनके एक हाथ में टूथपेस्ट लगा हुआ ब्रश था और दूसरे हाथ में एक बड़ा सा प्लास्टिक का टब था।

आने के बाद उन्होंने मेरे पैरों के तरफ की रस्सी को थोड़ा ढीला करके मुझे बैठाया और कहा- मुँह खोलो !

और मेरा चेहरा एक हाथ से पकड़ कर मुझे अपने हाथ से ब्रश करवाने लगी, ब्रश करवाने के बाद टब में कुल्ला करवाया और सामान ले कर चली गई।

वापस आई तो हाथ में ट्रे में ब्रेड थी और साथ चाय भी !

अपने ही हाथों से मुझे उन्होंने मक्खन लगी ब्रेड खिलाई और चाय भी पिलाई पर मेरे लाख मिन्नत करने के बाद भी मेरा हाथ नहीं खोला।

मैंने कहा- मुझे बाथरूम जाना है !

तो बोली- थोड़ी देर रोक कर रख लो, कुछ नहीं होगा थोड़ी देर में खोल दूँगी।

मैंने कहा- अगर थोड़ी देर में छोड़ने वाली ही हो तो फिर बाँध कर क्यों रखा है तुमने?

आंटी ने कोई जवाब नहीं दिया और मुझे नाश्ता करा कर सामान लिया और वापस चली गई।

वो थोड़ी देर बाद जब वापस आईं तो उनका पूरा रंग ढंग बदला हुआ था।

इस बार उन्होंने एक बढ़िया सी नाइटी पहन रखी थी जो काफी मादक लग रही थी, परफ्यूम की महक दूर से ही मुझे महसूस हो रही थी, मैं समझ चुका था कि जो आंटी ने कहा है वो मजाक में नहीं कहा उन्होंने, वो सच में इस बात के लिए मूड बना कर बैठी हुई थी कि आज मेरे साथ कुछ न कुछ करना ही है।

मैं इस सब को अभी तक भी स्वीकार नहीं कर पा रहा था क्योंकि चाहे मैं कितना भी बड़ा कमीना रहा हूँ पर आंटी को मैंने कभी इस नजर से देखा नहीं था।

आंटी जब कमर मटकाती हुई मेरे पास आई तो मैंने कहा- प्लीज आंटी, खोल दो और मुझे जाने दो ! अंकल मुझ पर बहुत भरोसा करते हैं, मैं उनके भरोसे को नहीं तोड़ सकता।

तो आंटी बोली- पर भरोसा तुम नहीं, मैं तोड़ रही हूँ ना !

और मुझे खोलने के बजाय मेरे पैरों को उन्होंने वापस से खींच कर कस दिया।

मैं तब चुप हो गया और आंटी पलंग पर चढ़ गईं। उनके पलंग पर आने के बाद मेरे हाथ पैर भी कांपने लगे थे, ऐसा अनुभव मुझे उसके पहले के 6 सालों में कभी नहीं हुआ था, एक अजीब सा डर लग रहा था, मैं छूटने की पूरी कोशिश कर रहा था और हर बार असफल हो रहा था।

"आंटी प्लीज मान जाओ और छोड़ दो मुझे !" मैंने फिर से प्रार्थना की तो आंटी मेरे ऊपर आकर मेरी कमर के थोड़ा नीचे दोनों तरफ पैर रख कर बैठ गई, अपने ऊपर के शरीर का वजन उनके दोनों हाथों पर रखा और मेरे चेहरे के पास अपना चेहरा लाकर मुझ से बोली- बोलो, क्या बोल रहे हो?

अगर उनकी जगह कोई और होती तो मैं तो कभी का खुशी खुशी राजी हो जाता पर बात यहाँ आंटी की थी और मुझे आंटी से ज्यादा अंकल के विश्वास की चिंता थी जो मेरे लिए अंकल कम और दोस्त ज्यादा हैं, और दोस्ती में धोखेबाजी की आदत मुझे कभी भी नहीं रही।

लेकिन उस वक्त तक मेरी हालत खराब हो चुकी थी, एक मन कर रहा था कि कर लूं, क्या फर्क पड़ता है, और दूसरा मन अंकल की वजह से इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं था कि मैं आंटी के साथ शारीरिक संबंध बनाऊँ।

और मेरी इस सोच से परे आंटी अभी भी मुझ पर ही छाई हुई थी, आंटी की गर्म सांसों को मैं तब मेरे चेहरे पर महसूस कर सकता था और उनका रेशमी नाइटी में लिपटा हुआ बदन मेरे शरीर को जगह जगह से छू रहा था।

फिर आंटी ने अपना पूरा वजन मुझ पर छोड़ दिया और एक हाथ से मेरे सर को नीचे से पकड़ा दूसरा हाथ मेरे चेहरे पर रखा और मेरे होंठों पर उन्होंने अपने होंठ रख दिए, होंठ क्या थे अंगारे थे मानो ! और उन्होंने धीरे धीरे मेरे होंठों को चूमना शुरू कर दिया, उनके होंठ चूमने का अंदाज बिल्कुल ही निराला था।

एक हाथ उन्होंने मेरे गाल पर रखा था और दूसरे हाथ से सर को सहारा दे रखा था और साथ ही इस तरह से पकड़ रखा था कि मैं चाह कर भी मेरे चेहरे को इधर उधर ना कर सकूं।

आंटी मेरे होंठों को पूरा अपने मुंह में लेती और फिर धीरे धीरे होंठ चूसते हुए बहार निकाल लेती, इसी तरह से वो काफी देर तक मुझे चूसती रही, और अपने शरीर का पूरा वजह मेरे शरीर पर डाल कर अपने स्तनों को मेरे सीने पर और चूत को मेरे सख्त हो चुके लण्ड पर रगड़ती रही।

मैं चाहे लाख ना कर रहा हूँ पर एक 35 साल की औरत जो गजब की सुंदर हो, शरीर सांचे में ढला हुआ, 34 इन्च के स्तन हों, कमर पर कोई चर्बी नहीं, चेहरे पर कोई दाग नहीं, काले खूबसूरत रेशमी बाल हों और कहीं कोई कमी नहीं और वो मेरे सीने पर अपने स्तन रगड़ रही हो, लण्ड पर चूत रगड़ रही हो और होंठों को होंठों से चूस रही हो तो भला मेरा

लण्ड खड़ा कैसे नहीं होता।



थोड़ी देर तक वो ऐसे ही होंठ चूसती रही, स्तन और चूत रगड़ती रही, फिर हट कर मेरे लण्ड पर हाथ लगाया और बोली- देखो, यह भी वही चाहता है जो मैं चाहती हूँ।

मैंने कहा- आंटी, आपके जैसी सुन्दर और सेक्सी औरत अगर इस तरह का काम करेगी तो किसी भी मर्द लण्ड तो खड़ा होगा ही ना ! पर मैं आपके साथ नहीं करना चाहता, मैं अभी भी आपसे कह रहा हूँ प्लीज मुझे खोल दो और जाने दो।

मेरी बात का उन पर उल्टा ही असर हो गया उन्होंने मेरे लोअर में हाथ डाल कर मेरे लण्ड को पकड़ लिया और बोली- हरीश से छोटा तो बिल्कुल नहीं है !

और फिर अपनी नर्म उंगलियों से मेरे लण्ड को रगड़ने लगी, मैं मचलने लगा और मेरा मन पूरी तरह से बहक चुका था पर मैंने सिर्फ कहा नहीं उन्हें।

उन्होंने कुछ सेकंड मसला होगा और फिर बोली- देख, तू भी यही चाहता है, पर अब मैं तुझ से पूछूंगी भी नहीं, अब सिर्फ मैं करूँगी और तू जब चाहे तब साथ देना शुरू कर देना।

मैंने आंटी को कोई जवाब नहीं दिया और आंटी ने मेरे होंठों को फिर से चूमना शुरू कर दिया और एक हाथ से मेरे लण्ड को सहलाती रही, इस बार उनके चूमने में मैं भी उनका साथ दे रहा था।

इसके बाद आंटी ने मेरे लोअर को अंडरवियर समेत नीचे कर दिया और फिर उन्होंने मेरे ही तकिये के नीचे से हाथ डाल कर कंडोम का एक पैकेट निकाला उसे फाड़ कर मेरे खड़े लण्ड पर लगाया और मैं कुछ समझता उसके पहले ही खुद की नाइटी ऊपर करके चूत को मेरे लण्ड पर टिकाया और एक झटके में मेरा पूरा लण्ड उनकी चूत के अंदर था।

उस झटके में हम दोनों के ही मुंह से एक आह निकल गई थी।

उसके बाद आंटी ने मुझसे कहा- अब भी तेरी ना ही है क्या?

मैंने कहा- नहीं !

मेरी नहीं का मतलब समर्पण ही था पर आंटी ने तब उसे मेरा इनकार समझा था।

उसके बाद आंटी अपने कूल्हों को जोर जोर से उछाल कर लण्ड अंदर-बाहर करके चुदवाने लगी और उन्होंने अपने होंठों को मेरे होंठों पर जमा दिया था। वो कभी मेरे होंठों को चूम रही थी, कभी मेरे गालों को और कभी मेरी गर्दन को चूम रही थी साथ ही उनके स्तन मेरे सीने से टकरा रहे थे।

मैं आंटी के स्तन दबाना चाहता था, उनके बालों को पकड़ कर उनके होंठों को चूमना चाहता था, उनकी कमर को मेरी बाहों में लपेटना चाहता था पर मैं कुछ भी नहीं कर सकता था क्योंकि मेरे हाथ बंधे हुए थे।

आंटी अपनी चूत को मेरे लण्ड पर रख कर खुद को चुदवा रही थी और मुझे चूमे जा रही थी कि अचानक आंटी ने मुझे चूमना बंद कर दिया और मेरे सीने पर दोनों हाथ रख कर मेरे लण्ड पर बैठ गई, उनके शरीर में ऐंठन होने लगी, उनकी आँखे बंद होने लगी और आंटी झड़ने लगी।

आंटी पूरी ताकत से झड़ी और झड़ कर मेरे ऊपर ही लेट गई, मैं तो अभी भी पूरा भरा हुआ था तो आंटी का हल्का फुल्का शरीर मुझे फूल जैसा ही लग रहा था पर मैं अब नीचे से झटके मार रहा था।

थोड़ी देर बाद जब आंटी सामान्य हुई तो मुझसे बोली- क्या हुआ विश्वामित्र जी? आपका तप तो टूट गया? 

मैंने कहा- आंटी, तप तो कभी का टूट गया है अब तो बस इच्छा बची है अब तो खोल दो।

तो बोली- जब तप टूट गया था तो फिर नहीं क्यों कहा था।

मैंने कहा- वो नहीं तो समर्पण वाला नहीं था, उस नहीं का मतलब था कि अब मेरी कोई ना नहीं है, पर आप ही नहीं समझी थी। मुझे अब तो खोलो !

तो आंटी बोली- खोल दूँगी पर अभी तो मैंने शुरूआत की है, और वैसे भी तूने तो हाँ कर ही दी है तो अब मुझे मेरे सारे अरमान पूरे तो करने दे।

मैंने कहा- ऐसे क्या अरमान हैं जो मुझे बाँध कर ही पूरे कर सकती हो? और आप का तो हो गया, मुझे भी तो मेरा करने दो अब।

तो बोली- अभी थोड़ा इन्तजार तो कर, हो जायेगा तेरा भी, और जो अरमान हैं वो भी पता ही चल जायेंगे।

वो उठी, मेरे लण्ड से कंडोम निकाला और मुझे वैसे ही छोड़ कर चली गई वो करीब दस मिनट बाद वापस आई। इस बार जब वो वापस आई तो एक नए ही गाऊन में थी।

आंटी कमर मटकाते हुए फिर से मेरे पास आई और मेरी टी शर्ट और उतारने की कोशिश करने लगी लेकिन सफल नहीं हो सकी क्योंकि मेरे हाथ जिस तरह से बंधे हुए थे उस हालात में टीशर्ट ऊपर तो हो सकती थी पर उतर नहीं सकती थी।

मैंने कहा- अब क्या करोगी? अब तो खोलना ही पड़ेगा ना !

तो आंटी ने कहा- खोलूंगी तो नहीं तुझे ! और इसका इन्तजाम मेरे पास है।

वो उठ कर पास में रखी अलमारी से कैंची उठा लाई और बिना कुछ कहे मेरी टी शर्ट के चीथड़े कर दिए।

चीथड़े करने के बाद बड़े ही गुरुर से बोली- अब बता? अभी भी खोलना पड़ेगा क्या कपड़े उतारने के लिए?

इतना कहते हुए उन्होंने मेरी उतरी हुई लोअर और अंडरवियर को भी टुकड़े टुकड़े कर के नीचे फैंक दिया।

अब मैं आंटी के सामने पूरी तरह से प्राक्रतिक अवस्था में पड़ा हुआ था, मजबूर बेबस और बंधा हुआ।

आंटी ने मुझे देखा, फिर मुस्कुराने लगी और मुझे उन पर गुस्सा आ रहा था।

मैंने गुस्से में कहा- क्या कर दिया है यह आपने?

और मेरी बात का जवाब देने के बजाय उन्होंने अपना गाऊन उतार दिया। उन्होंने अंदर गुलाबी रंग की ब्रा और पैंटी पहनी हुई थी जो बहुत ही खूबसूरत और मादक लग रही थी। उनकी इस हरकत से मैं सारा गुस्सा भूल गया और मेरा लण्ड फिर से सलामी देने लगा जो दस मिनट के आराम से थोड़ा सा ढीला हो गया था।

गाऊन उतारने के बाद मेरी तरफ देख कर वो बोली- तुम कुछ कह रहे थे?

मैंने कहा- हाँ !!! नही !!

और मेरे सारे शब्द मेरे हलक में ही अटक कर रह गए।

फिर वो मेरे पास आ कर बगल में लेट गई, मेरे बाल सहलाने लगी और मेरे होंठ चूमने लगी, इस तरफ वो बाल सहला रही थी और दूसरी तरफ मेरा कड़क होते चला जा रहा था।

फिर उसके बाद आंटी बोली- अब जो तेरे साथ होने वाला है वो तू जिंदगी भर याद रखेगा।

मैंने कहा- देखते हैं, आप क्या करती हो? क्योंकि ऐसा बहुत कुछ है जो मैंने देखा है तो जरूरी नहीं कि इसे जिंदगी भर याद रख ही लूँगा।
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