Nangi Sex Kahani जुनून (प्यार या हवस)
12-24-2018, 01:08 AM,
#16
RE: Nangi Sex Kahani जुनून (प्यार या हवस)
"आहा हम्म आह मम मम्म आः अह्ह्ह्हह "मेरी ने जोर जोर से अपने वासना की अभिवक्ति की विजय भी अपने सर को निचे ले जाने लगा ,मेरी के सपाट पेट पर आकर रुक गया,उसकी गहरी नाभि में उसने अपने जीभ डाली और थूक से उसे गिला कर दिया ,मेरी के साड़ी को खोलने तक का सब्र विजय में नहीं था वो अपने हाथ निचे कर मेरी के साड़ी को ऊपर सरका दिया उसके ,गोर गोरे जांघ अपनी पूरी गोलइयो में अब विजय के सामने थे वो अपने जीभ से उनका स्वाद चख रहा था वही मेरी अपने आनद के शिखर पर अपनी आँखे बंद किये उसके दांतों को अपने जन्घो पर महसूस कर रही थी,उसने अपने दांत गडा दिए ,
"अआः मादर आह बहन चोओओओओ द "मेरी दर्द और लिज्जत से चीख पड़ी विजय अपने सर को उसकी साड़ी के अंदर घुसा दिया बिलकुल साफ सुथरी चिकनी और पानी से भीगी हुई रसदार मलाई की तरह उसकी चुद की पंखुडियो ने विजय को अपना रस पिने का आमंत्रण दिया ,उसकी मादक गंध विजय के लिए असहनीय हो रही थी ,वो उनपर ऐसे टुटा जैसे कोई भूखा कुत्ता हड्डी पर टूटता है ,उसने उसे मुह में भरकर अपनी जीभ से पूरा काम रस पि गया ,
"आआआआ आआआआअ आआआ आआआआअ म्म्मम्म्म्मम्म म्मम्मम्मम्म विजय आआअ आअह्ह्ह्ह विजय "मेरी के मादक लिज्जत भरी सिसकिया पुरे कमरे को भर रही थी ,विजय ने चूसते हुए ही अपने कपडे उतारे उसका लिंग ऐसे अकड़े था जैसे कोई लोहे का गर्म सरिया हो,वो जल्दी से उठा और पाने सरिये को मेरी के नर्म नर्म और गर्म गर्म छेद में घुसा दिया ,
"आअह्ह्ह्ह कितना टाइट है तेरा "विजय के मुह से अचानक ही निकल पड़ा ,ना जाने कितने दिनों बाद उसने इतने टाइट योनी में अपना लिंग घुसाया था ,
"अआह्ह्ह मेरे मालिक ,आआह्ह्ह "मेरी की एक चीख निकली और वो निढल होकर गिर पड़ी उसने अपने कामरस से विजय के लिंग को भीगा दिया था ,लेकिन खेल तो अभी शुरू हुआ था ,विजय के धक्के तो अभी अभी शुरू हुए थे ,वो अपने लिंग को बहार निकल कर पहले अच्छे से उसके चिपचिपे कामरस में भिगोता है और फिर से अपना मुसल उसके योनी में घुसा देता है ,
"आआह्ह्ह्ह विजय आह्ह्ह "
"मेरी रंडी आज तो तुझे तबियत से चोदुंगा "विजय ने अपनी स्पीड बडाई हर धक्का रक सिसकारी छोड़ जाती थी कभी कभी विजय का ताकतवर धक्का मेरी की चीख भी निकल देता था ,
"ह्ह्ह्ह ह्ह्हम्म्म्म ह्म्म्म आह्ह आह्ह आह्ह्ह नहीं नहीं आह्ह अहहह विजय आह्ह विजय माँ माँ मर गयी आह्ह आह्ह नहीं नहीं धीरे ना कमीने आह जोर से जोर से "मेरी बडबडा रही थी 
"आह्ह मदेरचोद आह्ह तेरी माँ की आह्ह "विजय भी अपनी पूरी ताकत से उसे पेले जा रहा था,
विजय उसे पलटता है ,कभी दीवाल से लगता है कभी जमीन पर ,कभी बिस्तर के कोने में ,कभी कुतिया की तरह कभी पर उठाकर ,विजय जैसे मन में आता उसे वैसे भोगे जा रहा था ,लेकिन साला झड नहीं रहा था ,मेरी को भी इसकी चिंता होने लगी की ये झड क्यों नहीं रहा है ,वो एक समय के बाद बिलकुल बेसुध सी हो गयी थी ऐसी हैवानियत भरी चुदाई का उसके लिए पहला अनुभव था ,वो कई बार झड चुकी थी और अब उसे दर्द भी होने लगा था पर वो विजय के झाडे बिना ये खेल खत्म नहीं करना चाहती थी ,विजय ने जब देखा की ये बहुत जादा दर्द में है तो किसी तरह अपने को सम्हाला ,और उसके होठो में अपने होठो को घुसा दिया ,
"आआह्ह पता नहीं जान आज क्यों नहीं झड पा रहा हु ,"मेरी और विजय की सांसे उखड़ी हुई थी मेरी निढल होने के बावजूद आपने हाथो को उसके सर पर ले आती है और उसके बालो को सहलाती है ,
"जितना समय लेना है ले लो पर अब थोडा प्यार से आराम से करो ना "विजय के चहरे पर एक मुस्कान आ जाती है वो उसके चहरे को देखता है और उसे जोरदार किस करता है ,अब वो उठकर एक तेल की शीशी लाता है और अपने लिंग में तेल की मालिश कर उसे फिर से उसके अंदर घुसता है ,
"इससे तुम्हे दर्द कम होगा "मेरी बड़े प्यार से उसके सर को अपनी ओर खिचती है दोनों अपने होठो को एक दुसरे के होठो में समां लेते है और विजय अब धीरे धीरे अंदर बहार करने लगता है ,नहीं पता कितने देर तक जब तक की वो उसके अंदर झड नहीं जाता ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,....................

इधर सभी लोग जंगल में पहुच जाते है ,वो पहाड़ी इलाका है जिसमे घने तो नहीं पर मध्यम और आबादी वाले जंगल है ,कही कही कुछ बस्तिया मिल जाती है पर जादा आबादी नहीं है ,निधि बार बार गाड़ी से झाककर बाहर की ओर देख रही थी ,बाहर का मौसम और नजारा बहुत ही सुहाना था,छोटे छोटे पहाड़ जो की निधि ने अपने घर से देखे थे ,लेकिन कभी उसे इनके पास जाने का मौका ही नहीं मिला गाड़ी पहसो को कटते हुए बने सडक पर चल रही थी ,ये अटल बिहारी की प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का परिणाम था की देश के सुदूर इलाको में भी पक्की सड़के बन गयी है ,ऐसे यहाँ आवाजाही कम ही होती है पर जरुरत तो है ,ये जगह नक्साली और खतरनाक जंगली जानवरों के प्रकोप से बची हुई थी ,इसलिए यहाँ घुमना भी बहुत अच्छा सौदा था,उनके घर से कुछ 5-6 किलोमीटर दूर ही एक पहाड़ो में चदते हुए वो एक पहाड़ी के पास रुके ,जो लोग ऐसे इलाको में जा चुके है उन्हें ये पता होगा की सडको के किनारे पर से निचे की खाई को देखना कितना अद्बुत नजारा होता है, पहाड़ी तक बस गाड़ी जाती थी आगे उन्हें खुद ही चढ़ाई करनी थी बार बार चलने और दुपहिया वाहनों की आवाजाही के कारन एक पगडण्डी सी पेड़ो के बीच से बनी थी ,बाली ने सभी को पहाड़ी के ऊपर बने एक मंदिरनुमा जगह को दिखाया ,
"वो देखो वहा मिलेगा कलवा "सभी के चहरे पर एक ख़ुशी के भाव तैर गए,
"लेकिन चाचू वहा तक जायेंगे कैसे ,वो तो बहुत ऊपर दिख रहा है ,"निधि ने स्वाभाविक सा प्रश्न दागा,क्योकि वो कभी इस इलाके में नहीं आई थी उसका ये प्रश्न स्वाभाविक था 
"अरे रास्ता है ना ,सीढि नहीं है पर चढ़ जाओगे फिकर मत करो ,जादा दूर नहीं है ,"सभी वहा चड़ने लगे पास में ही एक मनमोहक सा झरना था जिसके कलकल की आवाजे सभी के कानो तक पहुच रही थी ,निधि ने ये झरना देखने की जिद की पर अजय ने उसे मना लिया पहले चाचा से मिलकर आते है ,
जैसे तैसे सभी ऊपर पहुचे डॉ और लडकियों की हालत ही ख़राब हो चुकी थी ,बाली और अजय तो मेहनत करके ही बड़े हुए थे और उनका रहना बसना भी इसी इलाके में हुआ था ,उनके लिए तो ये बच्चो का खेल था ,पर बाकियों की सांसे फुल गयी थी ,वो थककर चूर हो जाते,और आराम करने बैठ जाते ,कोई सीढि नहीं होने के कारन उनके लिए ये और भी मुस्किल हो रहा था ,
लेकिन वहा पहुचने के बाद प्रकृति का नजारा और वहा बहती ताज़ी और ठंडी हवा ने सबकी थकान मिटा दि ,एक छोटा सा मंदिरनुमा ईमारत थी ,वो एक आश्रम की तरह लग रहा था ,कुछ स्थानीय गाव वाले भी वहा दिखाई दे रहे थे ये वही लोग होंगे जिनकी गाड़िया निचे खड़ी थी ,वो वह प्रवेश किये देखा की वहा एक साधू जैसा दिखने वाला शख्स बैठा है और उसके आसपास कुछ लोगो की भीड़ लगी हुई है ,बाली आगे बढकर उसे प्रणाम करता है जिसका अनुसरण सभी लोग करते है ,सभी वैसे ही वह बैठ जाते है जैसे की बाकि सभी बैठे थे ,वहा कोई मूर्ति नहीं थी बस ये साधू ही थे ,बढ़ी हुई दाढ़ी विशाल सीना जिसमे बालो का जंगल था ,बड़े बड़े बाल जो फैले हुए थे माथे पर चन्दन का टिका और बस एक धोती पहने हुए ,चहरे का तेज ही उनकी सिद्दी का बयान कर रहा था,आँखे अधमुंदी सी थी मानो गहरे ध्यान की अवस्था में बैठे हो ,तेज ऐसा था की वहा पहुचने पर ही सभी के मन में शांति के भाव आ गए ,वो वहा बैठे ही थे की एक वक्ती आकर बाली के सामने हाथ जोड़कर उसे प्रणाम करता है बाली उसे देखकर मुस्कुराता है पर किसी में कोई बात नहीं होती बाली सबको इशारा कर वही बैठने को कहता है और उसके साथ बहार आ जाता है,
"नमस्कार ठाकुर साहब बड़े दिनों बाद पधारे आप "
"हा यार कलवा से मिलने आये है सभी कहा है वो "
"अरे वो तो पता नहीं धयान में बैठा होगा कही पर आप यहाँ महाराज के पास बैठिये मैं लड़के भेज देता हु उसे बुलाने के लिए "वो उस आश्रम का एक सेवक था जैसे कलवा भी वहा एक सेवक की तरह ही रहता था ,बाली फिर जाकर अपने स्थान में बैठ गया ,अजय और डॉ की आँखे बंद हो चुकी थी इतनी शांति इतना गहरा अनुभव दे रही थी जैसे दुनिया में कुछ और ना हो बस बस बस सांसे हो ,धड़कने हो ,एक भाव हो और आप हो .................
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