RE: vasna kahani चाहत हवस की
''आप बहुत मस्त हो मम्मी, झड़ते हुए आप एक दम मदमस्त हो जाती हो,'' वो मेरी जाँघों को सहलाते हुए मुस्कुराते हुए बोला।
''मूउआआ… मेरा प्यारा बेटा,'' मैं बुदबुदाई। ''तू तो मेरा बहुत प्यारा बेटा है, मेरी कितनी तारीफ़ करता है और कितना अच्छा सैक्स करता है, मैं तो झड़ने को मजबूर हो जाती हूँ बेटा!"
ये सुनकर वो थोड़ा हँसा, मैं भी उसके साथ हँस पड़ी। मैंने उसकी नजर को मेरे चेहरे से हटकर मेरे मम्मों को घूरते हुए पाया, और उसके लण्ड को चूत की लालसा में फ़ुँकार मारते हुए देखकर मुझे मन ही मन खुशी हो रही थी। वो थोड़ा गम्भीरता से बोला, ''सचमुच मम्मी, मुझे आपके साथ प्यार, सैक्स करने में बहुत मजा आता है। जब आप झड़ती हो ना, तब आप के चेहरे पर सुकून और प्रसन्नता देखकर मुझे अच्छा लगता है।
उसकी आवाज में और आँखों मुझे सच्चाई प्रतीत हो रही थी, और शब्द मानो उसके दिल से निकल रहे थे। मैंने उसकी बात सुनकर सहमती में बस ''हाँ बेटा,'' ही बोल पायी। मैं उसके प्यार का कोई सबूत नहीं माँग रही थी, लेकिन उसकी बातें मुझे अच्छी लग रही थीं। अपनी बाँहें फ़ैलाकर और टाँगें चौड़ी कर के मैं उसको आमंत्रित करने लगी, और मुस्कुराते हुए फ़ुसफ़ुसाते हुए बोली, ''आ इधर आ, चिपक जा मुझसे, जकड़ ले मुझे।''
विजय ने मेरे ऊपर आते हुए, अपनी माँ के खूबसूरत गठीले बदन को अपनी बाँहों में भर कर जकड़ लिया, और मैं भी उससे लिपट गयी। हमारे होंठ स्वतः ही पास आ गये, और हम दोनों प्रगाढ चुंबन लेने लगे। मेरे मम्मे उसकी छाती से दब रहे थे, मैं चूमते हुए कराह रही थी और उसका लण्ड मेरी पनियाती चूत के मुखाने पर टकरा रहा था। जब हम माँ बेटे कामक्रीड़ा में मस्त थे, तब मैं अपनी गाँड़ को ऊपर ऊँचकाते हुए अपनी चूत की दोनों भीगी हुई फ़ाँकों को उसकी लण्ड की पूरी लम्बाई पर घिसते हुए, फ़ड़क रहे चूत के दाने को लण्ड के दबाव से मसलने लगी। ऐसा करते हुए हम दोनों मस्ती में डूबकर, एक दूसरे के जिस्म की जरूरत को पूरा करने का मनोयोग से प्रयास कर रहे थे। मेरी चूत में तो मानो आग लगी हुई थी।
अब और ज्यादा बर्दाश्त करना मेरे लिये असम्भव होता जा रहा था। मैंने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर विजय के लण्ड को पकड़कर उसके सुपाड़े को मेरी चूत के मुखाने का रास्ता दिखाने लगी। जैसे ही उसके लण्ड ने पहली बार किसी चूत के छेद को छुआ तो विजय गुर्राने लगा। उसने मेरी टाँगों को थोड़ा और फ़ैला कर चौड़ा किया, जिससे उसको मेरी पनिया रही चूत में लण्ड घुसाने में आसानी हो सके।
"आह मम्मी…'' वो हाँफ़ते हुए बोला, और फ़िर अपने होंठों को मेरे होंठों से दूर करते हुए, मेरी आँखों में आँखें डालकर देखने लगा। ''मम्मी…'' उसके लण्ड का सुपाड़ा मेरी चूत के छेद की मुलायम, गीली गोलाई को अपने साइज के अनुसार खुलने पर मजबूर कर रहा था, विजय बुदबुदाते हुए बोला, ''आप बहुत अच्छी मम्मी हो, आई लव यू, मम्मा!"
''मैं भी तुझे बहुत प्यार करती हूँ बेटा,'' मैं उसके होंठों पर अपने होंठ रखकर प्यार से बारम्बार चूमते हुए बोली। जब मैंने अपनी टाँगें विजय की मजबूत पींठ के गिर्द लपेटीं, और उसको अपनी तरफ़ खींचा, जिससे उसका लण्ड पूरा मेरी चुदने को बेकरार चूत में घुस सके, तो एक बार को तो मानो मेरी साँस ही रुक गयी।
जैसे ही मेरी चूत के अंदरूनी होंठों ने खुलते हुए उसके लण्ड के अंदर घुसने के लिये रास्ता बनाया, और फ़िर ईन्च दर ईन्च अंदर घुसने लगा, तो हम दोनों कराह उठे। जब हम दोनों एक दूसरे की जीभ के साथ चूमा चाटी कर रहे थे, तब विजय का मोटा लण्ड आराम से मेरी पनिया रही चूत में धीमे धीमे अंदर घुस रहा था।
मेरे होंठों को चूसते हुए प्यार से धीमे धीमे, पूरे मजे लेते हुए, विजय अपना लण्ड अपनी माँ की चूत में घुसा रहा था। जैसे ही उसने अपने फ़नफ़नाते लण्ड का जोर का झटका मेरी चूत में मारा, उसकी आँखें बंद हो गयी। उसकी उम्र में दुनिया में सबसे ज्यादा एहमियत चूत की थी, और मेरी गीली चूत में अपना लण्ड अंदर और फ़िर और ज्यादा अंदर घुसाकर मुझे चोदने में जो मजा उसको आ रहा था, वो उसके लिये अकल्पनीय था। हाँलांकि पिछले हफ़्तों में विजय कई बार मेरी गाँड़ में अपना लण्ड घुसा चुका था, और मेरे मुँह में तो अनगिनत बार अपने लण्ड का पानी निकाल चुका था, लेकिन चूत का मजा अलग ही था।
मेरी चूत ने मेरे बेटे के लण्ड का स्वागत कम से कम अवरोध के साथ किया था, और जैसे ही उसने अपना लोहे जैसा कड़क लण्ड मेरी चूत में घुसाया था, मेरी गीली चूत ने उसको जकड़कर अपने अंदर समाहित कर लिया था। मेरी चूत किसी कुँवारी लड़की की तरह टाईट तो नहीं थी, लेकिन ज्यादा ढीली भी नहीं थी, गीली, भीगी हुई और उसके लण्ड को जकड़े हुए थी। मेरी चूत विजय के लण्ड को गर्माहट दे रही थी, और उसका स्वागत कर रही थी, और चूत की मखमली चिकनाहट उसके लण्ड का पूरा ख्याल रख रही थी, और उसके लण्ड की मोटाई के अनुसार अपने आप को ऐडजस्ट कर रही थी। विजय के लिये ये सब किसी सपने से कम नहीं था, वो अपने लण्ड से उस औरत की चूत को चोद रहा था, जिसको वो सबसे ज्यादा प्यार करता था। और वो औरत कोई और नहीं उसकी सगी माँ थी, जिसने उसे जीवन दिया था और अब उसको वो शारीरिक सुख देकर उसके जिस्म की पूरी कर रही थी, जो उसको कहीं और मिल पाना असम्भव था।
जब उसने पुरा लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया, तो मैं अपने होंठ चुसवाते हुए ही कराह उठी, क्योंकि मेरी चूत ने इतना बड़ा लण्ड कभी अंदर नहीं लिया था, विजय का लण्ड उसक पापा के लण्ड से कहीं ज्यादा बड़ा था। विजय अपना पूरा लण्ड मेरी मखमली मुलायम चूत में घुसाकर, अंदर बाहर करते हुए मुझे तबियत से चोद रहा था। हम दोनों मस्त होकर चुदाई का मजा ले रहे थे, तभी हाँफ़ते हुए विजय ने अपनी आँखेंकर देखा।जैसे ही हम दोनों की नजरें मिलीं, तब मुझे यकायक वास्तविकता का एहसास हुआ कि मेरे सगे बेटे का लण्ड मेरी चूत के अंदर गर्भाशय पर टक्कर मार रहा था। समाज की मर्यादा, वर्जना को लांघकर हम दोनों के शारीरिक सम्बंध, एक पल को सब कुछ मेरे दिमाग में कौंध गया।
''विजय बेटा, आहह्ह्ह्… बेटा विजय!"
यकायक मानो किसी वज्रपात की तरह मेरा स्खलन हो गया, स्खलित होते हुए मेरा पूरा बदन काँप गया, मेरी साँसें उखड़ने लगी, और मैं अपने बेटे की मजबूत बाँहों में ही मचलने लगी, मेरी चूत में घुसे उसके मोटे लण्ड से मुझे पूर्णता का एहसास हो रहा था, और झड़ते हुए मेरी चूत उसके लण्ड को निचोड़ रही थी। चरम पर पहुँच कर मैं मस्त होकर विजय को कस कर जकड़े हुए थी, उसके कन्धों को अपने नाखून से खरोंच रही थी, और अपनी टाँगों को उसकी कमर के गिर्द लपेट कर, कुछ कुछ आनंद से भरी आवाजें निकाल रही थी।
जब मेरी चूत विजय के पूरी तरह खड़े लण्ड को ऐंठने लगी, तो विजय भी घुटी घुटी आवाजें निकालने लगा। मेरी चूत धड़कते हुए मानो उसके लण्ड की मालिश कर रही थी, और उसकी सनसनाहट उसके सारे बदन में हो रही थी। अपनी मम्मी की चूत में लण्ड घुसाकर विजय को इतना ज्यादा मजा आ रहा था कि यदि उसने कुछ देर पहले मेरे मुँह में पानी ना निकाला होता, तो वो कब का मेरी चूत में स्खलित हो चुका होता।
झड़ने के बाद जब मैं थोड़ा होश में आई तो हम दोनों माँ बेटे वासना में डूबकर चूत में लण्ड घुसाकर लेटे हुए थे। विजय का चेहरे पर चमक थी, और उसकी आँखों में वासना, मैंने उसकी तरफ़ देखते हुए कहा, ''म्म्म्ह्ह बेटा, तुम बहुत अच्छी चुदाई करते हो, मैं तो बहुत अच्छी वाली झड़ी हूँ।''
''मैं भी बस होने ही वाला था,'' विजय अपनी मम्मी की भीगी गीली चूत में अपना लण्ड थोड़ा और अंदर घुसाते हुए बोला। ''जैसा मैंने सोचा था, आप उससे भी बहुत ज्यादा अच्छी हो मम्मी…'' वो बुदबुदाते हुए बोला, और उसने मेरे मम्मों को मसल दिया, मेरी गर्म मुलायम चूत में अपना मूसल पेलते हुए बोला, ''आपकी चूत तो बहुत मस्त है!"
''ये अब तुम्हारी है बेटा, तुम्हारी मम्मी की चूत पर अब बस तुम्हारा अधिकार है बेटा,'' कसमसाती हुई किसी तरह जो आग मेरी चूत और संवेदनशील निप्पल में लगी हुई थी, उस पर काबू करते हुए मैं बोली।
विजय ने अपना पूरा लण्ड मेरी चूत में घुसा रखा था और मेरे चूत के दाने को भरपूर घिस रहा था, और धीरे धीरे झटके लगा रहा था, मानो वो हमेशा मेरी मुलायम प्यासी चूत में अपना लण्ड घुसा कर रखना चाहता था। उसकी ये कामुक हरकतें मुझे भी बहुत आनंदित कर रही थी।
मेरी आवाज भारी और घुटी हुई निकल रही थी, फ़िर भी मैं विजय से भीख माँगते हुए बोली, ''चोद दे बेटा, चोद दे अपनी मम्मी की चूत को, मार ले अपनी माँ की चूत विजय बेटा।'' मेरी बार सुनकर विजय के लण्ड में हरकत हुई, तो मुझे उत्साहवर्धन मिला, ''निकाल दे सारी गर्मी मेरी प्यासी चूत की, चोद दे इसे, निकाल दे अपने लण्ड का पानी अपनी मम्मी की चूत में, आह्ह्ह्… कब से लण्ड की भूखी है तेरी मम्मी की चूत, हाँ बेटा ऐसे ही चोद दे!"
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