Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
12-10-2018, 02:17 PM,
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -58 

गतान्क से आगे... 


मुझे उस आदमी पर गुस्सा आने लगा. लग रहा था जैसे मैं बेकार ही मेहनत कर रही हूँ. उनमे शायद अब कोई उत्तेजना बाकी नही रही थी. 

काफ़ी कोशिशों के बाद लिंग मे कुच्छ तनाव आया तो मैं वहीं फर्श पर चौपाया बन कर उसे जैसे तैसे अपनी योनि मे लेकर खुद ही धक्के मारने लगी. पूरी तरह खड़ा ना होने की वजह से बार बार उनका लिंग मेरी गीली योनि से फिसल कर बाहर आ जाता था. मुझे लग रहा था कि उस बुड्ढे को एक लात मार कर अपने जिस्म से हटा दूं और कमरे से निकल जाऊ. लेकिन मुझे तो अपना काम निकालना था. मुझे उनका वीर्य चाहिए था. 



जब उनका लिंग योनि मे नही घुस पाया तो मैने उनके लिंग से मुख मैथुन कर वीर्य निकालने की ठान ली. मैं उनके लिंग को वापस अपने मुँह मे लेकर ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी. उनके लिंग पर मैं अपने होंठों से और अपनी जीभ से दबाव बना कर रखी थी. वो मेरे बदन को पूरी ताक़त से मसल रहे थे. कुच्छ ही देर मे उन्हों ने अपना पानी छ्चोड़ दिया. जिसे मैने अपने उस कलश मे इकट्ठा कर लिया. 

उनके साथ संभोग कर मेरी आग तो बुझी नही लेकिन उस थोड़े से समय मे उन्हों ने मेरे पूरे बदन को तोड़ मरोड़ कर रख दिया. उनके दाँतों के निशान मेरे स्तनों पर और मेरी जांघों पर चमक रहे थे. 

मैं उठ कर बाहर आई. दो ही संभोग ने मुझे इतना थका दिया था कि मैं खड़ी भी ठीक से नही हो पा रही थी. अब और मुझमे हिम्मत नही थी कि किसी और के पास जाऊ. सुबह से मैं सात लोगों से संभोग कर चुकी थी. कुच्छ लोगों ने तो मुझे बुरी तरह तोड़ कर रख दिया था. एक एक अंग फोड़े की तरह दुख रहा था. मैं बाहर निकल कर लड़खड़ा गयी. मैने दीवार का सहारा ले लिया. रत्ना कुच्छ ही दूर बैठी थी. वो दौड़ कर मेरे पास आइ. 

मैने रत्ना से अपनी अवस्था के बारे मे बताया और अगले संभोगो के लिए जाने मे अपनी असमर्थता जताई. उसने इशारा किया तो दो सेवक मुझे दोनो ओर से सहारा देते हुए एक कमरे मे ले गये. वहाँ खूबसूरत सा एक बिस्तर लगा हुआ था. रत्ना मेरे लिए तरह 
तरह का नाश्ता लेकर आ गयी. मैने नाश्ता करके वापस वही शरबत पिया जिससे जिस्मानी भूख बढ़ जाती है. रत्ना ने मुझे बिस्तर पर लिटा कर एक चादर से मेरे नंग बदन को ढक दिया. वो मुझे लिटा कर कमरे से बाहर निकल गयी. मैं वापस गहरी नींद मे डूब गयी. सपने मे भी मैं अपने आप को किसी के द्वारा भोगे जाते हुए ही देख रही थी. 

काफ़ी देर बाद रत्ना जी के पुकारे जाने पर ही नींद खुली. एक नींद लेने के बाद शरीर मे काफ़ी ताज़गी आ गयी थी. मैं सुबह से उन सात शिष्यों से संभोग करते हुए करीब बारह बार स्खलित हुई थी. किसी नॉर्मल महिला के लिए ये एक काफ़ी मुश्किल बात है. 



“ रत्ना मैं नहाना चाहती हूँ जिससे जिस्म मे कुच्छ ताज़गी आए.” मैने उससे कहा. 



“ नही अभी नही. तुम अपना कार्य पूरा होने से पहले नहा नही सकती. इससे हम जिस कार्य के लिए निकले हैं उस कार्य मे विघ्न पैदा हो जाएगा.” रत्ना ने मुझे साफ साफ मना कर दिया. 

रत्ना ने मुझे वापस उसी वस्त्र को पहनाया. मेरे पूरे बदन पर और उन वस्त्रों पर वीर्य के धब्बे और पपड़ियाँ दिख रही थी. मेरे बाल बिखरे हुए थे. वो भी वीर्य से संकर लाटो जैसे हो गये थे. मुझे पूरा कार्यक्रम ख़त्म होने से पहले अपने शरीर को सॉफ करने या नहाने की इजाज़त नही मिली थी. मुझे पूरे दिन उसी तरह रहना 
था. यहाँ तक की चेहरा भी साफ नही कर सकती थी. 



रत्ना मुझे लेकर अगले कमरे तक गयी. कमरे मे घुसने से पहले ही उसने मुझे चेता दिया. 

" दिशा अब जिस के पास जा रही हो ये स्वामीजी कुच्छ अलग हैं औरों से. इन्हे योनि से ज़्यादा गुदा का शौक है. इस लिए इनसे मिलने से पहले अपने गुदा मे क्रीम लगा लेना. नही तो हालत खराब हो जाएगी. इनका लिंग लंबा और पतला है. जब अंदर घुसता है तो लगता है मानो पेट फाड़ कर ही निकलेगा." 

"दीदी क्रीम लाकर दो ना. आप ही लगा दो." मैने कहा. 

"अंदर सब मिल जाएगा. उनसे ही माँग लेना. जो इस तरह का शौक रखते हैं वो इनके सारे साधन भी साथ रखते हैं." रत्ना ने कहा. 

मैं चुप चाप दरवाजा खोल कर अंदर गयी. सामने ज़मीन पर एक शिष्य बैठे थे. उनकी आँखें बंद थी और वो शायद ध्यान मे लीन थे. मेरे अंदर आने की आवाज़ से उन्हों ने आँख खोल कर मुझे देखा. फिर आँखें बंद कर ली मैं उनके सामने आकर बैठ गयी. 



कुच्छ देर तक चुप चाप हाथ जोड़े बैठी रही फिर मेने अपने बदन पर ओढ़े हुए वस्त्र को हटा दिया. मैं अब उनके सामने पूरी तरह नग्न बैठ गयी. मैने इधर उधर अपनी नज़रें दौड़ाई क्रीम की शीशी के लिए मगर कुच्छ नज़र नही आया. 



तभी उन्हों ने दोबारा आँखें खोली और मेरे बदन से उनकी नज़रें चिपक कर रह गयी. मैने आगे की ओर झुक कर उनके चरण च्छुए. उन्हों ने मेरे नग्न कंधों पर अपने हाथों को रखा और फिर उन्हे सरकाते हुए मेरे स्तनो को च्छुआ. एक बार उन्हे मसल कर मेरे दोनो निपल्स को अपने हाथों से पकड़ कर उमेथ्ने लगे. मेरे मुँह से उत्तेजना और दर्द से मिली जुली "आआआहह" निकलने लगी. 



उन्हों ने अचानक मेरे दोनो निपल्स को अपने मुत्ठियों मे भर कर अपनी ओर एक झटके से खींचा. मैं घुटने के बल चल कर उनके समीप आ गयी. 

" आआहह स्वामीजी म्‍म्म्मममम बस….बस….आज माइईइ बहुत थक गयी 
हूँ. इनपर आज बहुत अत्याचाार हो चुक्काआअ हाीइ. मेरे दोनो स्तन फोड़े की तरह दुख रहीए हाऐं. प्लीईईसए अभी भी काफ़ी लोगों के पास जाना है" मैने कहा. 



“ देवी फिर मेरे पास आने की ज़रूरत ही क्या थी.” उनकी आवाज़ मे हल्की सी नाराज़गी झलक रही थी. 



“ आअप के लिंग का प्रसाद लेने आइ हूऊं. आप का प्रसाद मुझे देदेन प्रभुऊऊ.” मैने अपने हाथ मे पकड़े कलश को उपर उठाया. 



“ देवी किसी चीज़ को पाने के लिए मेहनत तो करनी पड़ती है. कुच्छ समर्पित करना पड़ता है तो कुच्छ बर्दास्त भी करना पड़ता है. इन्सब का असर हमारे जिस्म पर पड़ता ही पड़ता है. बिना मेहनत किए तो आदमी के मुँह तक रोटी ही नही पहुँचती. देवी जितना तुम्हारा जिस्म टूटेगा उतना ही तुम्हे मज़ा आएगा.” उन्हों ने मुझे कहा. 



“ जी गुरुदेव….मैं तो बस आपको इनपर थोड़ा प्यार दिखाने के लिए ही याचना कर रही थी.” मैने अपने सिर को उनके कदमों पर झुकाते हुए कहा. 

"चलो वहाँ तिपाई पर रखी तेल की शीशी ले आओ." मैं उठी और तिपाई तक गयी तेल की शीशी लाने के लिए.जब मैं जा रही थी वो बड़ी गहरी नज़रों से मेरे नितंबों की थिरकन का मज़ा ले रहे थे. 



“ अद्भुत देवी…अद्भुत.” मैने अपनी गर्देन घुमा कर उन्हे देखा,” देवी तुम्हारे बदन का गठन बड़ा ही उत्तेजक है. जितनी तुम सुंदर हो तुम्हारे शरीर की बनावट उतनी ही आकर्षक है. लगता है देवताओं ने बड़ी तसल्ली से गढ़ा है तुम्हारा जिस्म.” 



मैने मुस्कुरा कर उन्हे देखा और ला कर तेल की शीशी लाकर उन्हे दी. 

" देवी अब तुम किसी कुतिया की तरह अपने हाथों और पैरों के बल झुक जाओ. मेरा लिंग तुम बिना चिकनाई के नही झेल पओगि. तुम्हारी योनि की जगह मैं तुम्हारे गुदा मे प्रवेश करना चाहता हूँ. तुम्हे कोई आपत्ति तो नही" उन्हों ने कहा.

उन्हों ने जैसा कहा मैने वैसा ही किया. मैने देखा की उन्हो ने तेल की शीशी से कुच्छ तेल अपनी हथेली पर लिया और एक उंगली उसमे डुबो कर मेरे गुदा द्वार पर फेरने लगे. 



मैं पहले से ही इस हमले के लिए तैयार थी. पहले एक फिर दो उंगलियाँ मेरे गुदा द्वार से प्रवेश कर अंदर तक की दीवारो पर तेल मालिश करने लगी. ऐसा करते समय मुझे 
दर्द हो रहा था. मैं बार बार चिहुनक कर कभी अपनी नितंबों को भींच लेती तो कभी इधर उधर सरक जाती तो वो ज़बरदस्ती मुझे वापस उसी पोज़िशन मे कर देते. 



वो मेरी परेशानी को भाँप गये और मेरे ध्यान को वहाँ से हटाने के लिए वो ज़ोर ज़ोर से मेरे स्तनो को मसल्ने लगे. उनके मसल्ने से स्तनो मे ज़्यादा दर्द होने लगा इसलिए मेरा ध्यान स्वतः ही गुदा से हट कर स्तनो पर आ गया. 



मेरे गुदा के बाहर और अंदर काफ़ी देर तक तेल लगाने के बाद उन्हों ने अपने बदन से 
धोती को हटा दी. उनका तना हुआ लिंग देख कर मेरा कलेजा छलक गया. उनका लिंग दस इंच के करीब लंबा था. ये किसी आदमी का नही बल्कि किसी गधे के लिंग जितना मोटा था. ये लिंग जब मेरे गुदा मे घुसेगा तो सब कुच्छ चीरता हुआ पेट तक चला जाएगा. 

" स्वामी…आपका तो काफ़ी बड़ा है. मैं इसे नही ले पाउन्गी. ये मेरी अंतदियों को चीर कर रख देगा. एम्म मुझे घबराहट हो रही है." मैने डरते हुए उनसे कहा. 

"ऐसा कुच्छ भी नही होगा देवी तुम डरो नही. मैं अब तक कई महिलाओं को संतुष्ट कर चुका हूँ. शुरू मे हो सकता है कुच्छ दर्द हो लेकिन बहुत जल्दी तुम मेरे लिंग की अभ्यस्त हो जाओगी." कहते हुए वो पीछे से मेरे दोनो घुटनो के बीच आ गये. 



सामने लगे बड़े से शीशे मे मुझे हम दोनो का अक्स दिख रहा था. वो भी शीशे मे मेरे नग्न बदन को मेरे झूलते हुए स्तनो को और मेरे खुले हुए 
होंठों को देख कर मुस्कुरा रहे थे. 



उन्हों ने ढेर सारा तेल लेकर अपने उस मोटे लिंग पर लगाया और अपने हाथों से मेरे नितंबों को फैला कर मेरे गुदा द्वार पर अपने लिंग को सताया. मैं अपने सिर को झुका कर आने वाले दर्द का इंतेज़ार कर रही थी. उन्हों ने अपने लिंग से एक ज़ोर का धक्का मारा और मैं दर्द से बिलबिला उठी," उवूऊयियैआइयैयीयीयियी म्‍म्म्माआ" 



लेकिन उनका लिंग एक मिलीमेटेर भी अंदर नही घुस पाया. मेरे गुदा द्वार का मुँह इतना संकरा था कि उस मोटे लंड को कहाँ से ले पाता. उन्हों ने वापस मेरे नतंबों को फैला कर एक और ज़ोर का धक्का मारा. ऐसा लगा मानो मेरी गुदा आज फट जाएगी. लेकिन फिर भी उनका लिंग अंदर नही गया. दर्द इतना ज़्यादा हुआ कि मैं अपनी चीख नही रोक सकी ऐसा लग रहा था मानो कोई मेरे गुदा मे डंडा करना चाहता हो. 

" माआआआआआआअ" मैं ज़ोर से चीख उठी. 

"तुम्हारा गुदा बहुत टाइट है देवी." उन्हों ने दोबारा तेल लेकर मेरे गुदा के अंदर तक लगाया. मेरी आँखों से दर्द से आँसू निकल आए थे. वो लुढ़क कर मेरे गालो तक आ रहे थे. इस बार मैने अपने दोनो नितंबों को दोनो हाथों से पकड़ कर और चौड़ा किया और उन्हों ने अपने हाथों से अपने लिंग को मेरे छेद पर लगा कर एक ज़ोर का धक्का दिया. 



मैं दर्द से चीखने लगी, " उईईईईईईईईईईइमाआ आअहह मैं मर गइईई" कहते हुए मैं मुँह के बल ज़मीन पर गिरगई क्योंकि मेरे हाथ नितंबों पर थे. मैने जल्दी से अपने हाथ वहाँ से हटा कर ज़मीन पर टिकाए. 

उनके लिंग का सूपड़ा मेरे गुदा मे धँस चुका था. मेरी आँखें दर्द से बाहर को उबल आ रही थी. मैं घबरा कर उठना चाहती थी लेकिन वो मुझसे काफ़ी ज़्यादा बलशाली थे. उन्हों ने मुझे दबोचकर हिलने तक नही दिया. इतना लंबा लिंग मैने कभी अपने गुदा मे नही लिया था. ऐसा लग रहा था जैसे उनका लिंग पेट को फाड़ता हुआ गले तक 
पहुँच जाएगा. मेरे गुदा मे उनके लिंग का अभी तक सिर्फ़ टोपा ही गया था. जब पूरा लिंग जाता तो मेरी क्या हालत होती. 

"आआहह स्वामीजीीइईईईई…….स्वामीजी…….प्लीईईसए……..ईसीईए बहाआअर निकऊऊओ" मैं दर्द से छॅट्पाटा रही थी. वो पूरी ताक़त से अपने लिंग को मेरे गुदा मे दबा रखे थे. वो अपने उस लंबे लंड के टोपे को किसी भी कीमत पर बाहर निकालने को तैयार नही थे. उन्हों ने मेरी कमर को ऐसे पकड़ रखा था कि मैं अपनी कमर को हिला भी नही पा रही थी. 

क्रमशः............ 
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