Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
12-10-2018, 02:16 PM,
#92
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रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -50 

गतान्क से आगे... 
रत्ना ने आगे बढ़ कर अपने हाथों से मेरे कंधे पर टिकी मेरी सारी के आँचल को हटा 
दिया. मेरी नग्न चूचियाँ बाहर बेपर्दा हो गयी. मैने जल्दी से अपनी सारी के आँचल से अपनी चूचियों को वापस ढक लिया. लेकिन स्वामीजी की नज़र उन नाज़ुक फूलों को देख चुकी थी. 

" सुंदर…….बहुत सुंदर. देवी तुम्हारा योवन तुम्हारे जिस्म का हा रंग अपनी अद्भुत चटा बिखेर रहा है. देवी रत्ना कहाँ छिपा रखा था इस सोन्दर्य की मूरत को? " स्वामी जी ने मेरे माथे पर अपना हाथ रख कर मुझे आश्रर्वाद दिया. 



“ स्वामी जी ये महिला बहुत दिनो से किसी चकोर की तरह आस लगाए बैठी है की कब आपके दर्शन होंगे. आपने इसके जीवन को सफल कर दिया स्वामी आपने इसका उद्धार कर दिया.” रत्ना ने कहा. 

" रत्ना हमारे मेहमान को हमारा प्रसाद दो." रत्ना एक कटोरे मे वही शरबत जो मैने पहले भी पी रखी थी, लेकर आई. उसने वो कटोरा मुझे दिया. उसके इशारा करते ही मैने उसे पूरा पी लिया. उस शरबत का स्वाद कुच्छ ज़्यादा तेज था. मुझे एक बार खालकी सी उबकाई भी आई मगर मैने अपने आप को कंट्रोल किया और बिना कुच्छ कहे उसे पूरा पी लिया. 

उस शरबत को पीने के बाद पूरे शरीर मे सिहरन सी दौड़ने लगी. इस दौरान स्वामीजी अपने हाथ से मेरे माथे को छू कर कुच्छ बुदबुदा रहे थे. कुच्छ देर बाद वो मेरे सिर को सहलाने लगे. मैं उनके सामने घुटने के बल बैठी हुई थी उस वक़्त मेरे स्तन बेपर्दा उनके सामने उन्मुक्त भाव से खड़े उन्हे ललकार रहे थे की आओ और इन फूलों को अपने हाथों से मसल दो. 



उस शरबत को पीने के बाद से ही पूरे बदन मे एक अजीब सी बेचैनी सी होने लगी. ये उसी प्रकार का शरबत था जो मुझे पहली बार आश्रम मे आने पर पीने को मिला था. इसे पीने के बाद शरीर मे सेक्स की भावना बहुत तीव्र हो जाती थी. पीने वाले का अपनी इच्च्छाओं से कंट्रोल हट जाता था. उसके जिस्म पर चींटियाँ चलने लगती थी. योनि मे इतनी तेज खुजली होती थी अपने ऊपर कंट्रोल करना ही मुश्किल हो जाता था. बस ऐसा लगता था कि कोई उसे यूही प्यार करता रहे. ऐसा लगता कि कोई उसके साथ दिन भर सेक्स करे. मेरी भी वही हालत हो रही थी. 

"हां अब बोलो क्या चाहती हो? रत्ना…..पूछ इससे." उन्हो ने अपनी आँखें बंद कर ली. 

"ज....ज्ज.जीि " मेरी ज़ुबान तो जैसे शर्म से चिपक गयी थी. मैं बिल्कुल नही बोल सकी. 

" स्वामी जी इसे आपका आशीर्वाद चाहिए. ये आश्रम की नयी मेंबर है. इसे आपका महा प्रसाद चाहिए" रत्ना ने कहा. 

"हुउऊँ" कहकर स्वामीजी ने एक हुंकार छ्चोड़ी. 

" अब ये आपकी छत्र छाया मे है इसकी इच्च्छाओं की पूर्ति करना आपका धर्म है. आप इसे अपना आशीर्वाद दे दें" रत्ना ने कहा. 

" ये महिला नयी है. इसे समझा दो रत्ना कि मेरा आशीर्वाद या महाप्रसाद हर किसी को नही मिलता. इसे लेने के लिए काकी कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है और अपने काफ़ी कुच्छ इच्च्छाओं की तिलांजलि देनी पड़ती हैं. ये कर सकेगी ऐसा?" 

"मैने इसे पहले ही समझा दिया है गुरुदेव" रत्ना ने कहा. 

" देवी तुमने अच्छे से सोच तो लिया है ना कि अगर तुम्हारे पति को पता चल जाए तो अनर्थ भी हो सकता है. उनकी अनुमति ली हो क्या? देवी मेरा महाप्रसाद लेने के लिए इस पूरी दुनिया को भूल कर सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी बन कर रहना होगा. तुम एक बार अगर ठान लॉगी तो उससे मुँह मोड़ कर वापस नही जा सकती." उन्हों ने मुझ से कहा. 

मैं अब तक चुप थी आख़िर मे मैने बोला, " स्वामीजी मैं कुच्छ भी करने के लिए तैयार हूँ. आप जैसा करने के लिए कहेंगे मैं वैसा ही करूँगी. आपको किसी तरह की शिकायत का मौका नही दूँगी. और रही मेरे पति की सहमति की बात तो मैं आपको बता दूँ कि वो आपके आश्रम के मेंबर बन चुके हैं और मेरे किसी भी फ़ैसले से उन्हे इत्तेफ़ाक नही 
होगा." मुझे पहली बार किसी से इस तरह का प्रण निवेदन करने मे बहुत शर्म आ रही थी. वो भी अपने हज़्बेंड के अलावा किसी और आदमी से. 

" देखो देवी…..कोई जल्दी बाजी नहीं है. अभी मैं दस दिन यहीं रहूँगा. अपने इस फ़ैसले पर कुच्छ गहन विचार कर्लो. फिर मेरे पास आना. कहीं बाद मे ऐसा ना लगे कि तुमने जल्दी बाजी मे कोई ग़लत फ़ैसला ले लिया. तुम्हे बाद मे किसी प्रकार का पछतावा ना हो इसलिए तुम अपने निर्णय पर विचार कर सकती हो." स्वामी जी ने कहा. 

" जी मैने कई दिन तक अच्छि तरह विचार करने के बाद ही ये फ़ैसला लिया है. मुझे अपने इस फ़ैसले से कोई इत्तेफ़ाक़ नही है. मैं अपनी पूर्ण रज़ामंदी से अपना जिस्म आपको सौंपती हूँ." मैने कहा. 

"ठीक है देवी" स्वामीजी ने एक लंबी साँस छोड़ी. "ठीक है अगर तुमने मन मे ठान ही ली है तो वही सही…….लेकिन रत्ना ने तुम्हे इसके कठोर नियमो के बारे मे अब तक बताया है या नही. क्यों रत्ना….तुमने इसे सॅबनियमो के बारे मे इसे समझाया है या नही." 

"जी" मैने कहा. स्वामीजी ने रत्ना को इशारा किया. 

" इसका सबसे ज़रूरी नियम है कि तुम इसे पूरे दिल से एंजाय करोगी. सब कुच्छ खुशी से होना चाहिए. किसी भी आदेश पर उसके विपरीत प्रतिक्रिया नही होनी चाहिए. तुम हमारे हर आदेश का पालन बिना किसी झिझक बिना किसी शन्सय के पूरा करोगी. मनजूर है. हो सकता है मेर कुच्छ आदेश तुम्हे पसंद नही आए. मगर उनका भी पालन तुम्हे चुपचाप सिर झुका कर करना होगा." 

" आप निसचिंत रहें स्वामीजी इसके मन मे किसी प्रकार की कोई झिझक नही आएगी. मैने इसे अच्छि तरह सब समझा दिया है. आप तो बस इसका निवेदन स्वीकार कर लें" रत्ना ने कहा. 

" ठीक है....... रत्ना ज़रा इस देवी के शारीरिक सोन्दर्य के हमे दर्शन तो कराओ… देखें तो सही ये फूल बिना आवरण के कैसा लगता है." 

"जी गुरुदेव....जैसी आपकी आग्या." कहकर रत्ना ने मेरे कंधे पर रखे सारी के आँचल को कंधे से नीचे सरका दिया. मैने अपनी नज़रें शर्म से झुका दी. मेरे स्तन युगल गुरुजी के सामने तन कर खड़े उन्हे ललकार रहे थे. मैं टॉपलेस हालत मे घुटने मोड़ कर उनके सामने बैठी हुई थी. रत्ना ने मेरे बालों को समेट कर पीछे कर दिया और मेरे हाथों को सिर से उपर कर दिया जिससे मेरे स्तन बिल्कुल नग्न स्वामी जी के सामने तने रहें. 

" अद्भुत...... .अद्भुत.. ..." गुरुजी बुदबुदा रहे थे. रत्ना ने मेरे 
स्तानो के नीचे अपनी हथेली लगा कर उनको कुच्छ उठा कर स्वामी जी को निमंत्रण सा दिया. मेरा दोनो स्तन वैसे ही काफ़ी बड़े और सख़्त थे मगर रत्ना की हरकतों ने उन्हे और सख़्त कर दिया. निपल्स उत्तेजना मे खड़े हो गये थे. यहाँ तक की उनके चारों ओर फैले गोल दायरे मे फैले रोएँ ऐसे खड़े हो गये थे कि पिंपल्स का आभास दे रहे थे. 



स्वामीजी ने अपने हाथ बढ़ाकर मेरे दोनो निपल्स को हल्के से स्पर्श किया. उन्हे अपने अंगूठे और उंगली के बीच लेकर हल्के से मसला. उसके बाद मेरे स्तनो पर कुछ देर तक इतने हल्के से हाथ फेरते रहे कि मुझे लगा मेरे स्तनो पर कोई रूई का फ़ाहा फिरा रहा हो. मेरा गला सूखने लगा था और मेरे पूरे बदन मे एक सिहरन सी दौड़ रही थी. मैने अपनी आँखें भींच ली और अपने दन्तो के बीच अपने होंठों को दबा लिया जिससे मेरे होंतों से सिसकारियाँ छ्छूटने ना लग जाए. 



" अद्भुत…..अद्भुत देवी अद्भुत.” उनकी आँख खुशी से भर गयी, “ ह्म्‍म्म्मम...... रत्ना…. इसे पूरा उतारो" मुझे स्वामी त्रिलोकनंद की गंभीर आवाज़ सुनाई दी. 



रत्ना ने मेरी बाँह पकड़ कर मुझे उठाया और मेरे शरीर से सारी को खींच कर उतार दिया. मैं बिल्कुल नग्न उनके सामने खड़ी थी. मेरे खड़े ललचाते उभार, पतली कमर, भरे भरे नितंब और जांघों के बीच रेशमी जंगल किसी को भी लुभाने के लिए काफ़ी था. 



रत्ना ने मेरे कंधे को हल्के से दबाया. मैं उनका इशारा समझ कर वापस स्वामीजी के सामने घुटने के बल बैठ गयी. रत्ना ने मेरे बालों को भी खोल कर बिखेर दिया. स्वामीजी ने मेरी ठुड्डी के नीचे अपना हाथ देकर मेरे चेहरे को उपर उठाया. मैने झिझकते हुए अपनी आँखे खोल दी. उनकी आँखों से आँखें मिलते ही मैं एक सम्मोहन मे बँध सी गयी. क्या तेज था उन आँखों मे ऐसा लग रहा था मानो उनकी आँखे बोल रही हों. उनकी नज़रों की तपिश मेरी आँखों से होते हुए दिल के अंदर तक उतर रही थी. उन्हों ने मेरी आँखों मे आँखें डाल कर कहा, 

"अद्भुत....अद्भुत. ....सुंदरी तुम्हारा जिस्म तो मानो देव ने बहुत तसल्ली के साथ तराशा है. किसी अप्सरा से कम नही हो तुम. तुम्हारा स्वागत है मेरी छत्र्छाया मे." कहते हुए उन्हों ने वापस मेरे स्तनो को सहलाया. इस बार उनके हाथों मे कुच्छ सख्ती थी. उन्हों ने मेरे स्तन यूगल को हल्के से दबाया. 



“देवी रत्ना….ये आज से हमारी ख़ास शिष्या हुई. तुम इस परी को मेरे समर्क मे लाई हो इसके लिए मैं तुम्हारा शुक्रिया करता हूँ.” उन्हों ने रत्ना को इशारा किया. रत्ना आकर उनके चर्नो पर झुक गयी. उन्हों ने रत्ना के बालों पर हाथ फेरा फिर मुझसे कहा, “अब बोलो तुम क्या चाहती हो?” 

मैने अपनी नज़रें उठाकर उन्हे देखा मानो पूच्छना चाहती हूँ की इतनी सारी बातें होने के बाद फिर इस प्रकार का सवाल 

" देवी तुम्हे अपनी इच्छा अपनी ज़ुबान से बतानी होगी. बिना माँगे तो उपरवाला भी कुच्छ नही देता. हम तो मनुश्य हैं. "

" दिशा तुम्हे महप्रसाद के लिए इनसे याचना करनी पड़ेगी." रत्ना ने मुझे अपनी कोहनी से एक टोहका देते हुए कहा. 

" स्वामीजी मुझे आपका महाप्रसाद चाहिए. मेरी कोख आपके अमृत का इंतेज़ार कर रही है. मुझे अपनी कोख मे आपका महाप्रसाद चाहिए" मैने अपनी नज़रें झुकाते हुए धीरे से कहा. 



“ प्रभु इन्हे अपना पौरुष तो दिखाओ. इसे भी तो दर्शन करने दो आपके दिव्य रूप का.” रत्ना ने उनसे कहा. 



“ और तुझे…..? तुझे दर्शन नही करना?” 



“ मैं तो आपकी दासी हूँ. इसको दर्शन कराएँगे तो मेरे भी भाग खुल जाएँगे. बहुत अरसा हो गया आपने मेरे जिस्म को छुये हुए. कभी हम पर भी कृपा दृष्टि डाल दिया करें.” रत्ना ने उनसे कहा. 



“ चलो आज तुम्हारी विनती मान लेता हूँ.” 

स्वामी जी ने अपने जांघों के बीच रखे तौलिए को हटाया. मेरी नज़र तो बस उस स्थान पर चिपक कर रह गयी. वो अब पूरी तरह नग्न थे. उनका लिंग पूरी तरह से खड़ा था. 
क्रमशः............ 
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