RE: Desi Sex Kahani मुहब्बत और जंग में सब जाय�...
उस रात गुल नवाज़ और सुल्तान, दोनो कज़िन्स ने एक दूसरे की बेहन की चूत के कंवारे पन को अपने अपने लंड से फाड़ कर मुझे और नुसरत को एक लड़की से औरत बना दिया.
नुसरत की तरह मेरे लिए भी चुदाई का ये पहला तजर्बा था. मुझ नुसरत का तो पता नही मगर चुदाई के इस खेल में पहले पहले तो मुझ को बहुत दर्द हुआ.
लेकिन फिर जब कुछ देर चुदाई के बाद दर्द जब कम होने लगा तो मैने अपने शोहर गुल नवाज़ की बाहों में अपनी सुहाग रात का खूब मज़ा लिया.
उस दिन के बाद अक्सर रात को गुल नवाज़ और सुल्तान दोनो पी कर घर आते और कमरे में आते ही नशे की हालत में अपनी अपनी बीबीयों पर चढ़ दौड़ते.
एक तो दिन भर बाहर खेतों में काम करने की थकान और दूसरा शराब के असर की वजह से चुदाई सेफ़ारिग होते ही गुल नवाज़ थक कर मेरे पहलू में गिर जाता और दूसरे ही लम्हे उस के खर्राटे मेरे कानू में गूंजने लगते थे.
शादी के ठीक 9 महीने बाद नुसरत ने एक बच्चे को जनम दिया जब कि मेरी कोख अभी तक खाली थी.
ऐसा नही था कि में और गुल नवाज़ बच्चा नही चाहते थे. या बच्चा पैदा करने की कोशिश नही कर रहे थे.
गुल नवाज़ तो सिर्फ़ और सिर्फ़ उन दिनो ही मेरे साथ चुदाई का नागा करता जब मेरी “माहवारी” चल रही होती थी. इस के अलावा तो वो हर रात दिल भर का मुझे चोदता था.
इस दौरान दो साल मज़ीद गुज़र गये और नुसरत ने एक और लड़की को जनम दे दिया.
मगर लगता था कि बच्चों की खुशी अभी मेरे नसीब में नही थी.
शादी के तीन साल बाद…
अब मेरी और नुसरत की उमर 26 साल हो चुकी थी. जब कि मेरे शोहर की उमर अब 27 साल और भाई सुल्तान अब 28 साल का हो चुका था.
में और नुसरत कजिन्स होने के साथ साथ एक दूसरे ही निहायत अच्छी दोस्त तो पहले ही थी. और फिर एक दूसरे की भाभी बनने के बाद हम दोनो एक दूसरे के दुख सुख को मज़ीद अच्छी तरह से समझने लगी थीं.
एक दिन दुपहर को में और नुसरत अकेली सहन में चार पाई पर बैठे इधर उधर की बातें कर रही थीं. जब कि नुसरत के दोनो बच्चे साथ वाली चार पाई पर लेटे सो रहे थे.
“अम्मी जी कोशिस कर रही हैं कि भाई गुल नवाज़ तुम को तलाक़ दे दें” नुसरत ने बातों बातों के दौरान मेरी तरफ बहुत संजीदा अंदाज़ में देखते हुए कहा.
“तलाक़ मगर क्यों”नुसरत की ये बात सुन कर मेरा कलेजा हिल गया और मेरी आँखों में आँसू उमड़ आए.
“क्यों कि तुम्हारी शादी को अब काफ़ी टाइम हो गया है और अभी तक तुम्हारा कोई बच्चा नही हुआ इस लिए” नुसरत ने मुझे जवाब दिया.
“नुसरत मुझे पता है कि तुम्हारे दो बच्चे होने के बाद तुम्हारी अम्मी और मेरी सास मेरे बच्चे ना होने की वजह से परेशान हैं. लेकिन अगर मेरे बच्चे नही हो रहे तो इस में मेरा क्या कसूर है” मैने परेशानी की हालत में अपनी कजिन से कहा.
“रुखसाना तुम को कोई बीमारी तो नही और अगर है तो तुम ने इस के इलाज के लिए कोई दवाई वगेरह ली है” नुसरत ने मुझ से पूछा.
“नही मुझे कोई बीमारी नही क्यों कि मैने गाँव की “दाई” (मिड वाइफ) से अपना मुआईना (चेकप) भी करवाया है और उस की दी हुई दवाई भी इस्तेमाल की है मगर अभी तक उस का कोई असर नही हुआ” मैने जवाब दिया.
“तो फिर क्या वजह है कि तुम अभी तक माँ बनने से महरूम हो?”नुसरत ने सवालिया अंदाज़ में पूछा.
“में तो तुम्हारे भाई को अपने साथ हम बिस्तरी करने से कभी नही रोकती. मगर इस के बावजूद अभी तक बच्चा ना होने की समझ मुझे भी नही” मैने अपनी आँखें झुकाते हुए आहिस्ता से रंजीदा लहजे में अपनी कजिन को जवाब दिया.
“मुझे अंदाज़ा है मेरी बेहन के बच्चे होना या ना होना नसीब की बात है. अब मुझे ही देख लो,हालाँकि में अपने बेटे की पैदाइश के बाद मजीद कोई बच्चा पैदा नही करना चाहती थी.
और इस लिए तुम्हारा भाई मुझ से हम बिस्तरी करते वक़्त “अहतियातन” हमेशा बाहर ही फारिग होता है. मगर शायद तुम्हारे भाई के हर कतरे में इतनी ताक़त है कि बाहर निकालते निकालते भी उस का आख़िरी क़तरा अपना काम कर जाता है और इसका नतीजा “मुन्नी” की शकल में तुम्हारे सामने माजूद है”.
नुसरत ने एक हल्की और शरारती मुस्कुराहट के साथ मेरी तरफ देखते हुए मुझे बताया.
“तुम अभी बच्चे नही चाहती मगर क्यों” मैने हैरानी से नुसरत की तरफ देखते हुए पूछा.
“हाए तुम को तो जैसे पता ही नही मेरी भोली बानो” नुसरत ने मुझे छेड़ते हुए कहा.
“नही मुझे वाकई ही नही अंदाज़ा कि तुम क्यों अभी बच्चे नही चाहती” मैने अंजान बनते हुए दुबारा पूछा.
“वो इस लिए कि में अभी अपनी शादी शुदा जिंदगी के शुरू में तुम्हारे भाई के साथ मज़े करना चाहती हूँ. मगर हर वक़्त हमला (प्रेग्नेंट) होने का ख़ौफ़ मेरे दिमाग़ पर छाया रहता है. जिस की वजह से में तुम्हारे भाई के साथ हम बिस्तरी का पूरा मज़ा नही ले पाती” नुसरत ने मेरी तरफ देखा और हल्के से आँख मारते हुए मेरी बात का जवाब दिया.
“ये अजीब बात है कि एक में हूँ जो हर कीमत पर बच्चा पैदा करना चाहती हूँ और इस लिए अपने शोहर को कभी इनकार नही करती और एक तुम हो कि हमला होने के खोफ़ से ही चुदाई के सही मज़े नही ले पा रही हो.
अगर बच्चा होने का इतना ही डर है तो तुम लोग “साथी” (कॉंडम) इस्तेमाल कर लिया करो”: मैने नुसरत से कहा.
“वो तो तुम्हारा भाई अब इस्तेमाल करता है मगर सच कहूँ मुझे “साथी” के साथ हम बिस्तरी का मज़ा नही आता” नुसरत बोली.
“मगर क्यों” मैने तजसोस करते हुए पूछा.
“ वो इस लिए के मेरा दिल करता है की साथी के बगैर चुदाई का खुल कर मज़ा लूँ. क्यों कि रब्बर के बगैर जब गरम लंड का फुददी के गोश्त से टकराता है तो उस का स्वाद ही कुछ और होता है और में वो मज़ा लेना चाहती हूँ मेरी “बानो” मगर मज़ीद बच्चों होने के डर से नही ले पाती”
नुसरत के मुँह से आज पहली बार इस तरह की गंदी बात सुन कर हम दोनो कज़िन्स खिलखिला कर हँसने लगी.
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