RE: Desi Chudai Kahani हरामी मौलवी
फारिग होने के बाद जाकर अपना लण्ड धोया। जब लण्ड धोकर वापिस आया तो इशरत बेडशीट पे देख रही थी जिस पे दो बूँद खून लगा हुआ था।
मौलवी-“बेटी, ये निशानी है तुम्हारी कुाँवारेपन की मुझे तुमने अपने आप दिया उसके लिए शुकिया…”
इशरत-“अब्बू, जब आपका हुकुम होगा ये फुद्दी आपके सामने थाली में पेश कर दूंगी…”
मौलवी-शाबाश… मुझे यही उम्मीद थी।
इशरत-वैसे अम्मी की फुद्दी भी लेते हैं या नहीं?
मौलवी-तुम्हारी अम्मी की फुद्दी का अपना मजा है रोजाना लेता हूँ।
इशरत-वैसे अब्बू, आपका लण्ड है भी बहुत अच्छा।
मौलवी-चलो अभी घर चलते हैं। मैं रास्ते में एक टेबलेट ले देता हूँ वो खा लेना, ताकी कल को कोई मसला न हो…”
उसके बाद दोनों बाप-बेटी उस जगह से निकल जाते हैं और मौलवी ने मेडिकल स्टोर से निकलकर इशरत को टेबलेट लाकर दी और इशरत को घर से थोड़ा पीछे उतार दिया। मौलवी नहीं चाहता था कि दोनों बाप-बेटी घर एक साथ जायें। मौलवी घर आ गया। उसका थोड़ी देर के बाद इशरत भी घर आ गई। उसने चाय पी और चुदाई की वजह से थक चुकी थी तो मजे से नींद की आगोश में चली गई।
***** *****
रात के खाने पे इशरत को उसकी बड़ी बहन ने आकर जगाया कि उठ जाओ खाना खा लो। इशरत उठती है लेकिन उसको महसूस हो जाता है कि आज वाकई ही उसकी सील टूट गई है। उसकी फुद्दी में दर्द थोड़ा थोड़ा हो रहा था लेकिन स्वेलिंग हो चुकी थी। जब इशरत खाने के लिए आई तो एक बार उसने अपने बाप को देखा और मौलवी के साथ उसकी नजर मिली। उसके बाद सबने खाना खाया। खाना खाते हुये मौलवी साहब ने कहा कि रुखसाना बेगम, कुछ याद है कल क्या तारीख है? और कल के दिन किया हुआ था?
रुखसाना सोच में पड़ जाती है। पता नहीं मौलवी साहब क्या कह रहे हैं? आखिर कल क्या हुआ? वो एकदम निदा की तरफ देखती है तो रुखसाना को याद आ जाता है कि कल के दिन उसका बड़ा बेटा पैदा हुआ था और साथ ही रोना शुरू हो गई। निदा उठकर अपनी माँ के पास जाकर रुखसाना को चुप करवाती रही-अम्मी चुप हो जायें, ये हमारी किस्मत ऐसी थी। ये सब किस्मत में लिखा था। काश कि नाना जी भाई को अपने साथ मेले में ना लेकर जाते।
रुखसाना के दो बेटे थे एक बेटा फ़रदीन जो के 6 बहनों के बाद पैदा हुआ और बड़ा बेटा निदा से भी बड़ा था जिसका नाम काशिफ रखा था। जब वो 3-4 साल का था कि काशिफ के नाना और रुखसाना के अब्बू उसको मेले में ले गये मेला दिखाने। वो बच्चा नासमझ था, मेले में वो कहीं आगे पीछे हो गया। काशिफ को बहुत ढूँढा पर आज तक वो न मिल सका।
काशिफ के गुम हो जाने के बाद मौलवी टूट सा गया था फिर रुखसाना ने कहा-“आज काशिफ मेरे पास होता तो वो 34 साल का होता। पता नहीं मेरा बेटा कहाँ हो गया, जिंदा भी है या की?”
सबने खाना खाया। उसके बाद मौलवी के लिए उसके रूम में निदा चाय लेकर आई। चाय पीने के बाद मौलवी ने रुखसाना को बाहों में प्यार करते हुये कहा-“अब दुखी मत हो, जो हो चुका है सो हो चुका। भूल जाओ काशिफ को, अगर हमारी किस्मत में होगा तो जरूर मिलेगा। मेरा दिल कहता है कि वो हमें जरूर मिलेगा…” उसके बाद मौलवी ने इशरत का बताना शुरू कर दिया।
और धीरे-धीरे रुखसाना की आाँखें खुलती गई और आखिर में रुखसाना बोल ही पड़ी-“मौलवी साहब, अपनी ही बेटी के साथ आपने ऐसा क्यों किया?
मौलवी-बस इसका हल यही था। अब मैं जो करूँगा उसे सबको मानना पड़ेगा, क्योंकी मुझे मेरे एक जान पहचान वाले आदमी ने कहा है कि ऐसे रिश्ते आसानी से हो जायेंगे…” लेकिन मौलवी ने शफ़ीक़ का नहीं बताया कि उसे इशरत के साथ देखा था। काफ़ी देर तक मौलवी उससे बात करता रहा।
रुखसाना-अच्छा, अब मिशा की शादी में 4 दिन रह गये हैं। मैं सोच रही हूँ कल गाँव जाकर शादी के पैगाम दे आउ।
मौलवी-रहने दो, फ़ोन पे कह देते हैं जिसने आना होगा आ जाएगा।
रुखसाना-नहीं पहली शादी है घर में इसलिए खुद जाना बेहतर है।
मौलवी-ठीक है, कल शाम को जो 5 बजे गाँव को बस जाती है उस में बिठा दूँगा रात गुजार कर दूसरे दिन आ जाना।
रुखसाना-अच्छा ठीक है, बेहतर है।
उसके बाद मौलवी सो जाता है। लेकिन रुखसाना सोचती है कि मौलवी साहब कितने शरीफ होते थे। ये बाबाजी ने इन्हें क्या बना दिया है। फिर रुखसाना सोचती है-जब मौलवी साहब ऐसा कुछ कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं कर सकती। यही सोचते हुये रुखसाना भी सो जाती है।
दूसरे दिन मौलवी इशरत को कहता है-“बेटी, तुम शफ़ीक़ से कहो कि मैं उससे मिलना चाहता हूँ और उसी होटल का टाइम रख दो…”
इशरत ने शफ़ीक़ को फ़ोन करके बता दिया कि मेरे अब्बू आपसे मिलना चाहते हैं।
तो शफ़ीक़ ने कहा-“वो उस होटल में आ जाएगा…”
फिर मौलवी तैयार होकर उस होटल की तरफ निकल गया जहाँ शफ़ीक़ पहले से बैठा था। मौलवी के साथ इशरत भी आई थी। मौलवी ने बात शुरू की।
|