RE: Hindi Porn Story मीनू (एक लघु-कथा)
“तुझे.. अभी तक यही लगता है की आदित्य तेरा पति है..?”
“माँ, ‘वो’ (उस समय शादी-शुदा लडकियाँ अपने पति का नाम नहीं लेती थीं) बहुत ही अच्छे इंसान हैं। कोई भी लड़की उनको पा कर खुद को बहुत भाग्यशाली समझेगी। मुझे भी ऐसा ही लगता है। लेकिन.. लेकिन मैं कैसे भूल जाऊं! कैसे भूल जाऊं आदित्य को? उनकी यादें अभी तक ताज़ा हैं...”
लक्ष्मी देवी ने उसको बीच में ही टोक दिया,
“बिटिया, मैं तेरी बात समझती हूँ। ये भी समझती हूँ की अपने पहले प्यार को भुला पाना नामुमकिन है। लेकिन आदित्य तेरा अतीत था। आदर्श तेरा वर्तमान और भविष्य है। उसके बारे में सोच! और किसने कहा कि आदित्य को भूल जा? वो मेरा भी तो बेटा था.. है न? क्या मैं उसको भूल सकती हूँ? लेकिन, हम हमेशा अतीत में तो ठहरे नहीं रह सकते.. है न! और, अतीत तेरे जीवन का एक छोटा सा हिस्सा है। वो तेरा पूरा जीवन तो नहीं बन सकता। और, ये मत भूल कि आदर्श भी तो तेरी इस मूर्खता के कारण दुःख झेल रहा होगा! सोच! कैसी ज़िन्दगी है!”
मीनू कुछ बोल न सकी। बस सर झुकाए, अपनी सास की बातें सुनती रही।
“एक बात बोल मेरी बच्ची, तू कब तक इस तरह रहेगी? तू अभी जवान है! जवान शरीर की अपनी ज़रूरतें होती हैं। मैं खुद भी घर बार की देखभाल में ऐसी फंसी, और तेरे बाबूजी भी खेती बाड़ी में ऐसे फंसे, कि हम तो वह सब बातें भूल ही गए। लेकिन फिर तू आई, और तेरे कारण से हमको एक दूसरे के लिए समय मिल सका। और हमने हमारा खोया हुआ प्यार वापस पा लिया। जब हमको, इस उम्र में शारीरिक ज़रूरतें हैं, तो क्या तुझे नहीं हैं? क्या आदर्श को नहीं हैं? सोच बच्चे, अपने बारे में सोच! तुम दोनों अभी बहुत छोटे हो.. बहुत जवान हो!”
मीनू खामोशी से रो रही थी। आंसू बह रहे थे, लेकिन कोई आवाज़ नहीं।
“बिटिया, तुझे कभी जवानी का आनंद लेने का मन नहीं होता? हम्म? कैसी कमानी की तरह देह है! तेरा मन नहीं होता कि कोई इसकी कसावट ढीली कर दे? तेरा मन नहीं होता कि कोई इस देह को इस तरह मसले कि इसके पोर पोर से मीठा सा दर्द उठने लगे? तेरा मन नहीं होता कि कोई मर्द तेरे बदन को छुए? हम्म?”
“अम्मा! आप ऐसे मत कहिए..”
“लेकिन क्यों बेटी?”
“मैं कुछ नहीं कर सकती अम्मा.. कुछ नहीं!”
“मेरी बच्ची, जोड़े तो वहाँ, ऊपर बनते हैं.. स्वर्ग में! जब भोलेनाथ ने स्वयं आदर्श को तेरे लिए चुन लिया, तो तू इस सम्बन्ध को पूरा होने में क्यों विघ्न डाल रही है?”
मीनू कुछ कह नहीं पा रही थी। कुछ बातों पर तर्क वितर्क नहीं किया जा सकता! उसुसे सिर्फ कुतर्क निकल कर आता है! वो सिर्फ रो रही थी – पूरा शरीर हिचकियाँ ले रहा था। ऐसी प्यारी बिटिया की ऐसी हालत देख कर लक्ष्मी देवी का दिल भी पसीज गया। उनको समझ आ गया कि कुछ ज्यादा ही हो गया। उन्होंने लपक कर मीनू को अपने सीने में भींच लिया और उसके माथे को चूमा।
“मेरी प्यारी बिटिया.. मेरी गुड़िया.. मैं अपने दोनों बच्चों की खुशियाँ ही चाहती हूँ बस.. इसीलिए ऐसी हिमाकत की! मैंने पहले भी कहा था, आज भी वही बात दोहरा रही हूँ.. बस धीरज रखो। प्रभु सब ठीक करेंगे।“
मीनू अपनी अम्मा के गले से लिपटी, बहुत देर तक रोती रही।
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इस घटना के कुछ दिनों के बाद मीनू की अम्मा उससे मिलने के लिए आईं। मीनू उनको देख कर घोर आश्चर्यचकित हुई। सबसे अधिक आश्चर्य उसको इस बात का हुआ कि उसकी अम्मा की हालत पहले से कहीं अधिक अच्छी लग रही थी। अच्छी क्या – वो पूरी तरह स्वस्थ लग रही थीं। वो वहां अधिक रुक तो नहीं सकती थीं (बेटी के घर का पानी खाना नहीं खाया जाता), लेकिन जितनी भी देर रहीं, बस अपने दामाद आदर्श के नाम की माला जपती रहीं। उन्होंने मीनू को बताया की कैसे आदर्श ने उनकी देखभाल का, और खेती बाड़ी की देखभाल का इंतजाम कर के रखा है। अपना बेटा भी क्या ऐसा करता! और तो और, दूर दूर तक आदर्श की चर्चा है! सभी उसका नाम इज्ज़त से लेते हैं। भगवान्! न जाने कौन से कर्म किया थे की ऐसा देवता जैसा दामाद मिला! ऐसा दामाद तो सभी को दे प्रभु! उन्होंने यह भी कहा कि मीनू सच में बहुत भाग्यवान है कि उसको आदर्श जैसा पति मिला। ऐसे ही आदर्श आदर्श रटते रटते वो वापस घर चली गईं।
इस घटना का मीनू पर गहरा प्रभाव हुआ। पहली बार उसने आदर्श को उसके गुणों के कारण समझा... और एक पुरुष के गुणों के कारण जाना। उसने बाद में आदर्श से पूछा की उसने उसको क्यों नहीं बताया कि वो उसकी अम्मा की देखभाल कर रहा है। इसके जवाब में आदर्श ने कहा, कि अम्मा तो उसकी खुद की अम्मा के ही तो जैसी हैं! और अपनी अम्मा की देखभाल के लिए उसको किसी से बताने पूछने की क्या ज़रुरत?
मीनू को अब जा कर समझ आया की उसका पति सचमुच बहुत ही नेक है! उसको इस बात पर शक नहीं था – एक ही कमरे में सोते हुए भी आदर्श ने कभी भी उसको छूने की कोशिश नहीं करी। उसका मन तो करता ही होगा .. लेकिन उसने किया कभी नहीं! लेकिन उसने इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया – हो सकता है कि उसके डर से आदर्श उससे दूर रहता हो! लेकिन आज अम्मा की बात ने शक के सारे बादल हटा दिए। उसका पति उसको तभी छुएगा, जब वो खुद उसको प्रेम करेगी!
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“अम्मा, मुझसे गलती हो गई। बहुत बड़ी गलती हो गई, अम्मा! पाप हो गया! इसका प्रायश्चित कैसे करूँ?” मीनू ने लक्ष्मी देवी से कहा। वो समझ गईं कि किस बारे में बात हो रही है।
“बिटिया, प्रेम में न कोई पाप होता है, और न कोई प्रायश्चित! सिर्फ प्रेम होता है। प्रेम – बिना शर्तों का! पूरी निष्ठा के साथ। तूने आदित्य से प्रेम किया था, और आदर्श ने तुझसे। अरे, वो तो तेरी पूजा करता है! सच बता, क्या उसने कभी भी तुझे छूने की भी कोशिश करी है? तुमने माना किया था न? अगर ये प्रेम नहीं है, तो क्या है? ... और मैं तुमको एक बात बताऊँ? तुम भी उसको चाहती हो.. बस तुमको अभी तक ये बात मालूम नहीं है।“
मीनू जानती थी, कि लक्ष्मी देवी सही कह रही थीं।
“लेकिन अम्मा, मैं उनसे अब आँखें भी कैसे मिला पाऊंगी?”
“क्यों”
“इतना सब कुछ हो गया...”
:क्या इतना कुछ हो गया? कुछ भी नहीं हुआ। तूने कुछ भी गलत नहीं किया – मैंने पहले भी तुमको कहा है। बस, आदर्श को पूरी निष्ठा से प्रेम कर.. बस, प्रेम कर..”
मीनू ने लक्ष्मी को कहा की काश, आदर्श ही पहल कर ले; क्योंकि वो कुछ कर नहीं पाएगी। उसका लज्जा भाव काफी बढ़ गया है, और अब उसकी हिम्मत लगभग ख़तम है। लेकिन लक्ष्मी देवी ने कहा कि आदर्श ऐसा कभी नहीं करेगा। वो मीनू से बहुत प्रेम करता है, और उसका प्रेम उसे ऐसा कुछ भी करने से रोक लेगा। पहल तो मीनू को ही करनी होगी। लेकिन मीनू के अन्दर अपराध-बोध घर कर गया था.. उसके लिए भी कुछ संभव नहीं था।
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