RE: Chudai Story ज़िंदगी के रंग
किरण:"चल तू फ्रेश हो जा फिर थोड़ी देर मे काम पे भी जाने का वक़्त होने वाला है. मैं चाइ बनाती हूँ." मोना मुँह हाथ धोने के बाद रसोई मे चली गयी. किरण ने भी चाय पका ली थी. वो दोनो ड्रॉयिंग रूम मे आकर छेड़ छाड़ करने लगी. मोना ने अपना मोबाइल फोन खोला तो उसमे अली की 16 मिस कॉल्स आई हुई थी. "क्या मुझे उससे बात करनी चाहिए." वो अभी ऐसा सौच ही रही थी के मोबाइल बजने लगा."
किरण:"अली का फोन है ना? उठा ले वो भी तेरे लिया परेशान होगा." ये सुन कर मोना ने फोन उठा लिया.
मोना:"हेलो"
अली."मोना खुदा का शूकर है तुम ने फोन तो उठाया. मैं तो बहुत परेशान हो गया था. कहाँ हो तुम बताओ मैं तुम्हे लेने आ रहा हूँ. मेरे भाई की तरफ से मे माफी माँगता हूँ. अब्बा ने भी उसे खूब डांटा है. हो सके तो माफ़ कर दो प्लीज़."
मोना:"माफी कैसी अली? ठीक ही तो वो कह रहे थे."
अली:"बहुत नाराज़ हो ना? बताओ तो सही हो कहाँ?"
मोना:"मैं किरण के घर मे हूँ और अब यहीं रहोँगी. प्लीज़ अली बहस नही करना पहले ही मेरे सर मे दर्द हो रही है. हम कल कॉलेज मे बात करते हैं." ये कह कर उसने फोन काट दिया. कोई 15 मिनिट बाद जब वो दोनो घर से निकलने लगी तो घर की घेंटी बजी. किरण ने दरवाज़ा खोल के देखा तो अली के वालिद असलम सहाब वहाँ खड़े थे.........
किरण:"जी?"
असलम:"बेटी मे अली का बाप हूँ. क्या आप मोना हो?"
किरण:"आरे अंकल आइए ना. मैं किरण हूँ पर मोना भी इधर ही है. मोना देखो कौन आया है?" असलम साहब घर मे दाखिल जैसे ही हुए तो उनकी नज़र मोना पर पड़ी. जब उसे देखा तो देखते ही रह गये. यौं तो देल्ही ख़ौबसूरत लड़कियो से भरी पड़ी है पर पर ये नाज़-ओ-नज़ाकत भला कहाँ देखने को मिलती थी? हुष्ण के साथ अगर आँखौं मे शराफ़त भी दिखे तो ये जोड़ लाजवाब होता है. उन्हे अपने बेटे की पसंद को देख कर बहुत खुशी हुई और अपनी मरहूम बीवी की याद आ गयी. मोना ने आगे बढ़ कर उनसे आशीर्वाद लिया. वो उसके सर पर प्यार देते हुए बोले
असलम:"उठो बेटी हमरे यहाँ बच्चो की जगा कदमो मे नही हमारे दिल मे होती है और बडो का अदब आँखौं मे."
मोना:"हमारे यहा दुनिया भर की ख़ुसीया माता पिता के चर्नो मे ही होती हैं."
असलम:"जीती रहो बेटी. आज कल के दौर मे इतना मा बाप का अहेत्राम करने वाले बच्चे कहाँ मिलते हैं?" उन दोनो को इतने जल्दी घुलते मिलते देख किरण को बहुत अच्छा लग रहा था.
किरण:"आप दोनो बैठ कर बाते करे मैं कुछ चाइ पानी का बंदोबस्त करती हूँ."
असलम:"आरे बेटी इस तकलौफ की क्या ज़रोरत है?"
किरण:"आरे अंकल तकलौफ कैसी? मैं बस अभी आई." ये कह कर वो रसोई की ओर चली गयी.
असलम:"मोना बेटी सब से पहले तो मैं आप से जो बदतमीज़ी इमरान ने की उसके लिए माफी चाहता हूँ."
मोना:"आप क्यूँ माफी माँग के मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं?
वैसे भी उन्हो ने ऐसा तो कुछ नही कहा."
असलम:"नही बेटी उस दिन आप घर मे पहली बार आई थी और उसे आपसे इस तरहा से नही बोलना चाहिए था. इन की मा के गुज़रने के बाद मा बाप दोनो की ज़िमेदारी मैने अकेले ने ही उठाई है पर जिस तरहा से वो आप से पेश आया उसके बाद सौचता हूँ शायद मेरी परवरिश मे ही कोई कमी रह गयी है."
मोना:"नही आप प्लीज़ ऐसे मत कहिए. ग़लती तो सब से हो जाती है ना?"
असलम:"तो फिर क्या आप उस नलायक की ग़लती को माफ़ कर सकती हो?"
मोना: मैं उस बात को भूल भी चुकी हूँ."
असलम:"तुम्हारे संस्कार के साथ साथ तुम्हारा दिल भी बहुत बड़ा है. देखो बेटी मुझे नही पता के आप और अली केसे मिले या आप को वो गधा केसे पसंद आ गया लेकिन एक बाप होने के नाते से बस ये कहना चाहूँगा के आप दोनो अभी अपनी तालीम पे ध्यान दो. ये प्यार मोहबत, शादी बिवाह के लिए तो पूरी ज़िंदगी पड़ी है लेकिन अगर इस समय को आप ने यौं ही बिता दिया तो इसकी कमी पूरी ज़िंदगी महसूस करोगे. आप समझ रही हो ना जो मैं कह रहा हूँ?"
मोना:"ज..जी."
असलम:"मैं समझ सकता हूँ के शायद आप को मेरी बाते कड़वी लगे पर मेरा मक़सद वो है जिस मे हम सब की भलाई हो. आप के पिता के बारे मे भी सुना है के वो टीचर हैं और एक टीचर से बढ़ के तालीम की आहेमियत भला कौन जान सकता है? मुझे पूरा यकीन है के वो भी चाहांगे के पहले आप अपनी तालीम मुकामल करो. और रही बात आप की ज़रूरतो की तो वो सब आप मुझ पे छोड़ दो. मैं वादा करता हूँ के अब आप पे कोई परेशानी का साया भी नही पड़ने दूँगा."
क्रमशः....................
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