RE: non veg story एक औरत की दास्तान
"जग्गू काका.." किसी ने कमरे पर दस्तक दी तो जग्गू काका की तंद्रा टूटी जो किन्ही ख़यालों मे खोए हुए थे..
"अरे दीपक बेटा तुम..? आव आव.. अंदर आव.. कहो कैसे आना पड़ गया आज घर हमरे..?" जग्गू काका ने दरवाज़े की तरफ देखा तो पाया कि वहाँ उनके ऑफीस का मॅनेजर दीपक खड़ा था..
वो आज तक कभी घर नही आया था मगर पता नही पहली बार क्यूँ उसे उनके घर आने की ज़रूरत पड़ गयी थी..
"मैं ठीक हूँ जग्गू काका.. इधर से गुज़र रहा था तो सोचा कि आपसे मिलता चलूं.." दीपक ने पास ही पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए कहा..
"आफिसे मे सब ठीक ठाक तो चलत है ना..?" जग्गू काका ने ऑफीस का हाल चाल पूछा तो दीपक के चेहरे पर थोड़े भय और थोड़ा बहुत असमंजस की मिली जुली भावनाएँ आ गयी..
"काका.. अगर आप मुझसे पूछें तो कुछ ठीक नही चल रहा ऑफीस मे.." दीपक ने धीरे से कहा..जैसे उसकी बात कोई सुन रहा हो..
"क्यूँ बेटा ऐसन का हो गया..?" जग्गू काका ने असचर्या चकित होते हुए पूछा..
"अरे काका.. ये पूछिए कि क्या नही हुआ.. आज कल राज साहब बिल्कुल बदले बदले हुए से लगते हैं.. जब मन तब किसी पर भी हाथ उठा देते हैं.."
"ई का कहत हो तुम..? ऊ आफिसे के लोगन पर हाथ उठा देता है..?" जग्गू काका की हैरानी की सीमा ना रही..
"काका.. ये तो बहुत कम है.. कल उन्होने हमारे सबसे बुजुर्ग एंप्लायी शर्मा जी को धक्के मारकर ऑफीस से बाहर निकल दिया.. बेचारे रोते रोते घर गये.. इसलिए मुझे आज ना चाहते हुए भी यहाँ आना पड़ा.. क्यूंकी उनकी रोज़ रोज़ की किच किच से सारे वर्कर काम छोड़ड़कर भाग रहे हैं.. और पता नही अगर ऐसा ही चलता रहा तो हमारा बिज़्नेस रहेगा भी या नही.." दीपक के चेहरे पर चिंता की भावना सॉफ देखी जा सकती थी..
ये सब सुनकर जग्गू काका को बहुत अफ़सोस हो रहा था और गुस्सा भी आ रहा था..
"एक बात और काका.." ये बोलते ही जग्गू काका दीपक की ओर देखने लगे..
"हमारे कंपनी के अकाउंट्स मे भी भारी भरकम घपले हो रहे हैं.. और सारे पैसे किसी अमेरिकन बेस्ड कंपनी के अकाउंट्स मे ट्रान्स्फर हो रहे हैं जो कि किसी वियर सिंग नाम के एनआरआइ की कंपनी है.."
ये सब सुनकर जग्गू काका को चक्कर आने लगा.. उन्हें समझ नही आ रहा था कि आख़िर ये सब हो क्या रहा है.. अब उन्हें समझ आया कि राज ने अचानक उनका ऑफीस जाना क्यूँ बंद करवा दिया..
"ई ता बहुत बुरा हो रहा है बेटा.. राज को आने दो . हम खुद ऊकरा से बात करेंगे और ई सब के कारण का पता लगाएँगे.." जागू काका ने कहा तो दीपक के चेहरे पर थोड़ी संतोष की भावना देखी जा सकती थी क्यूंकी वो जानता था कि जग्गू काका की बात राज कभी नही टालता और ना टालेगा.. मगर होने तो कुछ और ही वाला था..
"अच्छा काका अब मैं चलता हूँ.."
"अरे बेटवा इतना जल्दी कहाँ चल दिए.. तनी चाई और ऊ का कहते हैं कॉफी हां कॉफी ता पी के जाओ.." दीपक को उठते हुए देखकर जग्गू काका ने कहा..
"अरे नही काका.. रहने दो.. फिर कभी.." ये बोलकर दीपक ने उनसे इज़ाज़त ली और वहाँ से चला गया..
मगर अपने पीछे छ्चोड़ गया एक आने वाला तूफान जो सब कुछ तभा करने वाला था.. और ना जाने इस तूफान मे कितनी ज़िंदगियाँ तबाह होने वाली थी..
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"चल बता अब.. क्यूँ मिलाया ज़हेर ठाकुर साहब के खाने मे.." एक लेडी कॉन्स्टेबल उस नौकरानी से सख्ती से पूछताछ कर रही थी..
चाकू पर अभी तक किसी उंगली के निशान नही मिले थे इसलिए ये बता पाना मुश्किल था कि वो दूसरा आदमी कौन था जो ठाकुर साहब को मारना चाहता था इसलिए पोलीस वालों ने असली कातिल तक ही पहुँचने का प्लान बनाया..
"मुझे नही पता.." उस नौकरानी के ऐसा बोलते ही चटाक़ की आवाज़ से पूरा पोलीस स्टेशन गूँज उठा..
"बतात है कि नही.. वरना तुझे आज इतना मारूँगी की तू बोलने लायक नही रहेगी.." यूयेसेस लेडी कॉन्स्टेबल ने उसके बालों को खींचते हुए कहा जिसके कारण उस नौकरानी को बहुत दर्द हो रहा था और उसकी आँखों से आँसू निकल गये थे..
"ठीक है ठीक है.. बताती हूँ मैं.. मेरे बाल छ्चोड़ दो.." उस नौकरानी ने अंततः हार मान ही ली..
"ठीक है चल बता अब.." ये बोलकर लेडी कॉन्स्टेबल ने उसके बाल छ्चोड़ दिए और वहीं कुछ दूर बैठे इनस्पेक्टर जावेद को गर्दन हिला कर इशारा किया जिसके बाद वो धीरे धीरे चलकर उनके पास आकर खड़ा हो गया..
"चल अब जल्दी तोते की तरह बोलना शुरू कर.." लेडी कॉन्स्टेबल ने फिर कहा..
"जी मैने ये काम पैसों के लिए किया था.. इसके लिए मुझे किसी ने 5 लाख रुपये(रुपीज़) दिए थे.." नौकरानी ने ये बात बोली तो वहाँ खड़े पोलीस वाले मुस्कराने लगे क्यूंकी उन्हे पता था कि ये काम किसी दूसरे ने ही करवाया है..
"तो तूने पैसों के लिए एक इंसान की जान ले ली.. खैर अब जल्दी बता दे कि वो था कौन वरना अभी तेरे सारे दाँत तोड़ दूँगी" लेडी कॉन्स्टेबल ने घूँसा दिखाते हुए उसे धमकाया..
"जी मुझे इसके लिए राज जी ने पैसे दिए थे.." उस नौकरानी ने डरते डरते कहा.. जिसे सुनकर वहाँ खड़े सभी पोलिसेवालों के चेहरों पर एक आसचर्या की भावना छा गयी जैसे किसी ने उनके ऊपर एक बॉम्ब फोड़ दिया हो..
"तुम जानती हो कि तुम क्या कह रही हो..?" इस बार जावेद ने अपनी ज़ुबान खोली..जिसे सुनकर नौकरानी और डर गयी..
"जी मैं बिल्कुल सच बोल रही हूँ.. मेरा यकीन कीजिए.." नौकरानी ने हाथ जोड़ते हुए कहा और फिर मुहन छुपा कर रोने लगी..
"कॉन्स्टेबल इस औरत को हवालात मे बंद कर दो और गाड़ी निकालो.. हमे अभी निकलना होगा.." ये बोलकर जावेद ने अपनी टोपी पहनी और पोलीस स्टेशन से बाहर निकल गया..
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