RE: non veg story एक औरत की दास्तान
"हां सर.. वो जो औरत खड़ी है(लाइन मे खड़े नौकरों की तरफ इशारा करते हुए) वो यहाँ नौकरानी का काम करती है.. उसी ने सबसे पहले लाश देखी थी.. उसने बताया कि वो सुबह जब ठाकुर साहब के लिए चाई लेकर आई तो उसने उनका दरवाज़ा खुला पाया.. फिर वो जब अंदर आई तो पाया कि पूरा कमरा खून से भरा पड़ा है और ठाकुर साहब यहाँ कमरे मे मरे पड़े हैं.. ये देखकर वो ज़ोर से चिल्लाने लगी जिसे सुनकर घर मे मौजूद सभी लोग यहाँ पहुँच गये और फिर उन्होने पोलीस को फोन करके बुला लिया.." कॉन्स्टेबल ने अपनी बात पूरी की..
"और कुछ मिला क्राइम सीन से..?"
"जी नही सर... हाथापाई के भी कोई निशान नही हैं.. जिससे साफ पता चलता है कि खूनी कोई घर का आदमी ही है.." कॉन्स्टेबल ने जवाब दिया..
"हां यानी वोही हुआ जो हर घिसी पीटी कहानी मे होता है.." इनस्पेक्टर ने बड़बड़ाते हुए कहा..
"जी सर..? आपने कुछ कहा.." कॉन्स्टेबल ने इनस्पेक्टर को बड़बड़ाते हुए सुनकर कहा..
"नो नतिंग.. तुम ऐसा करो.. इस लाश को पोस्टमारटोम के लिए भिजवा दो.. तब तक मैं भी तो देखूं कि आख़िर माजरा क्या है..?" ये बोलकर इनस्पेक्टर उस तरफ बढ़ चला जिधर सब लोग खड़े थे.. उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी जैसी हर केस के दौरान होती थी.. इनस्पेक्टर जावेद ख़ान आज तक किसी भी केस को सुलझाने मे फैल नही हुआ था मगर शायद ये केस इस बात को बकवास साबित करने वाला था..
"ह्म्म तो क्या कहना है आप लोगों का इस बारे मे..?" इंसेक्टोर जावेद ने अपनी च्छड़ी हवा मे लहराते हुए कहा जिसे सुनकर सब लोग एक दूसरे का चेहरा देखने लगे..
"जी इनस्पेक्टर साहब.. जैसा कि शायद आपक कॉनसॅटब्ल ने बताया ही होगा कि इस नौकरानी ने सबसे पहले लाश देखी.. इसके बाद ही हमे पता चला अंकल का खून हो चुका है..ये ज़रूर किसी बाहर वाले का काम है.. किसी ऐसे आदमी का जो ठाकुर साहब का दुश्मन हो..और उनकी जान लेना चाहता हो.." राज ने इनस्पेक्टर से खुद बात करना ही ठीक समझा..
"आपने ग़लत बोला मिस्टर...."
"जी मुझे राज कहते हैं और ये है मेरी बीवी और ठाकुर साहब की बेटी स्नेहा" राज ने इनस्पेक्टर को अपना और स्नेहा का इंट्रोडक्षन दिया..
"हां तो ऐसा है राज जी कि ये किसी घर वाले का ही काम है क्यूंकी हमे ना तो किसी बाहर वाले के आने का कोई निशान मिला है और ना ही कमरे मे हाथापाई के कोई निशान हैं.. आंड बाइ दा वे क्या आप यहीं इसी घर मे रहते हैं ?" इनस्पेक्टर ने राज से सवाल किया..
"जी नही.. मैं तो कल ही यहाँ आया था स्नेहा की ज़िद पर.. हम यहा 2-3 दिनो के लिए अंकल से मिलने आए थे और फिर ये सब हो गया.." राज ने कंधे उचकाते हुए कहा..
"सो मिस्टर. राज ईज़ इट जस्ट ए कोयिन्सिडेन्स ओर ए प्लॅंड कॉन्स्पिरेसी.. कि जिस दिन आप दोनो आए उसी दिन ठाकुर साहब का खून हो गया..? इफ़ यू नो व्हाट आइ मीन ?" इनस्पेक्टर ने मुस्कराते हुए कहा..
"आप कहना क्या चाहते हैं इनस्पेक्टर साहब की हम दोनो ने अंकल को मारा है..? आप जानते हैं कि आप क्या बकवास कर रहे हैं ?" राज ने आवेग मे आते हुए कहा..
"कूल डाउन मिस्टर. राज.. मैं जानता हू कि मैं क्या बोल रहा हूँ.. हम पोलीस वालों का तो काम ही यही है कि मुजरिम को जैल के अंदर डालना.. और फिलहाल तो इस घर मे मौजूद हर एक बंदा शक़ के दायरे मे है.." इनस्पेक्टर की ये बात सुनकर सब लोग एक दूसरे की तरफ देखने लगे..
"एनीवे मुझे अब चलना चाहिए.. आंड येस आप लोगों मे से कोई भी इस शहर से बाहर नही जाएगा.. माइंड इट.." ये बोलकर इनस्पेक्टर ने अपनी टोपी पहनी और अपनी जीप की तरफ चल दिया..
सब लोग उसे पीछे से जाते हुए देख रहे थे केवल एक को छ्चोड़ कर और वो थी स्नेहा जो अब भी अपने पिता को खोने के गम मे आँसू बहा रही थी और वो रात वाली बात उसे बार बार याद आ रही थी..
रात को वो जैसे ही उठी तो खुद को बिस्तर पर अकेला पाया.. उसने सर उठाकर इधर उधर देखा तो उसे कोई नही दिखा..
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