RE: non veg story एक औरत की दास्तान
ट्रेन अपनी पूरी रफ़्तार से आगे बढ़ रही थी.. बाहर घना अंधेरा पसरा हुआ था.. बियाबान जंगलो से होती हुई वो रैल्गाड़ी अपनी पूरी गति से चलती जा रही थी..
ट्रेन के अंदर का द्रिश्य बिल्कुल अलग था.. ट्रेन की हल्की हल्की जलती लाइट सबके चेहरों पर पड़ रही थी.. ट्रेन के खदकड़ते हुए पंखे और लोगों की खर्राटे की आवाज़ माहौल को थोड़ा अशांत कर रही थी.. सब लोग ना जाने कब्के खाना खा कर सो चुके थे..
मगर उस लड़की की आँखों मे नींद नही थी.. वो अपने बीते दिनो के ख़यालों मे ना जाने कब से खोई हुई थी और नींद इन्ही ख़यालों के कारण उसकी आँखों से कोसों दूर थी..
तभी कुछ आदमियों के उधर आने की आहट हुई..
"है तो वो इसी ट्रेन मे.. मगर मिल नही रही.. ढूँढते रहो, बच कर जाएगी कहाँ." एक रौबदार आवाज़ आई जिसे सुनकर बहुत सारे लोगों की नींद खुल गयी..
इससे पहले कि वो लड़की कुछ समझ पाती.. वो लोग उस सीट के पास पहुँच गये जहाँ वो लड़की बैठी हुई थी..
"सर मिल गयी वो लड़की.." एक हवलदार ने चिल्लाते हुए कहा..
"किधर है..?" एक लंबा चौड़ा आदमी उधर पहुँचा जहाँ वो लड़की बैठी हुई थी.. उस आदमी ने पोलीस की वर्दी पहेन रखी थी और उसके सीने मे बाई तरफ लगे नेम प्लेट मे सफेद अक्षर चमक रहे थे.. "इनस्पेक्टर जावेद ख़ान"..
"ओह.. तो मोहतारामा यहाँ छुपकर बैठी हैं.. कहाँ तक बच पाती आप..? हम पोलीस वालों को चूतिया समझा है क्या..?" उस लड़की के पास पहुँचकर इनस्पेक्टर ने ज़ोर से चिल्लाते हुए कहा..जिससे वहाँ आस पास बैठे सभी लोग जाग गये..
"क्या बात है इनस्पेक्टर साहब..? क्यूँ इतना शोर मचा रहे हो..?" पास बैठे एक यात्री ने पूछा..
"क्या बात है..? पूछो इस लड़की से कि क्या बात है..? क्यूँ भाग रही है ये पोलीस से..?" इतना बोलकर इनस्पेक्टर ने अपने साथ आई लेडी कॉन्स्टेबल को उस लड़की को गिरफ्तार कर लेने का इशारा किया.. उसका आदेश मानकर उस कॉन्स्टेबल ने उस लड़की को खीच कर सीट से उठाया और उसके हाथ मे हथकड़ी पहना दी.. वो लड़की जो अब तक बिल्कुल शांत थी.. उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े..
"मैने कुछ नही किया इनस्पेक्टर साहब.. मैने उसे सिर्फ़ सेल्फ़ डिफेन्स के लिए मारा था.. मैं निर्दोष हूँ.. मुझे छ्चोड़ दीजिए.." उस लड़की ने गिड़गिदाते हुए कहा..
"तुम्हारा खेल ख़तम हुआ.. बहुत दौड़ाया तुमने हम लोगो को लेकिन क़ानून के हाथ से ना आजतक कोई बचा है और ना कोई बचेगा.. तो तुमने ये कैसे सोच लिया कि तुम हम से बचकर फरार हो जाओगी.. हमारे पास पक्की खबर थी कि तुम इसी ट्रेन मे हो.. और हम ने पहले तुम्हें यहाँ खोजा लेकिन तुम नही मिली.. हमे पता चल गया था कि तुम कहीं छुप गयी हो.. इसलिए हम ने भी सोचा कि क्यों ना तुम्हारे साथ भी एक खेल खेला जाए.. और हम भी शांति से ट्रेन मे बैठ गये किसी यात्री की तरह.. और अब तुम यहाँ हमारे कब्ज़े मे हो.. यू आर अंडर अरेस्ट मिस स्नेहा..
तुम निर्दोष हो या नही इसका फ़ैसला अदालत करेगी मगर मेरा काम पूरा हुआ.." तभी ट्रेन किसी बड़े स्टेशन पर रुकी.. और पोलीस वाले वहाँ उसे लेकर उतर गये.
फिर अगले दिन वो लोग उसे लेकर वापस राजनगर रवाना हो गये जहाँ पहुँचने मे उन्हे करीब 12 घंटे लग गये..
राजनगर स्टेशन पर उतरने के बाद स्नेहा के दिमाग़ मे बस ये कुछ अल्फ़ाज़ घूम रहे थे..
"ले आई ये किस मोड़ पर ज़िंदगी..,
ना इधर के रहे, ना उधर के"
स्टेशन से उसे सीधा पोलीस स्टेशन ले जाया गया.. जहाँ उससे थोड़ी बहुत पूछताछ की गयी और फिर उसे एक लॉकप मे बंद कर दिया गया.. जहाँ वो आँखों मे आँसू लिए एक बार फिर अपने अतीत की याद मे खो गयी..
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बड़े अच्छे गुज़र रहे थे उन दोनो के दिन.. शादी को भी अब एक साल से ज़्यादा हो गया था.. सब कुछ अच्छा चल रहा था.. शादी के बाद दोनो हनिमून के लिए स्विट्ज़र्लॅंड गये.. इसी दौरान वो दोनो बहुत सारे देशों मे घूमे.. ज़िंदगी मे अनेक रंग भर गये थे.. उनकी ज़िंदगी ऐसी कट रही थी कि जैसे वो दोनो किसी सपनो की दुनिया मे जी रहे हों..
एक साल होने को हो रहे थे उनकी शादी को..तभी एक दिन स्नेहा ने अपने राज को ज़िंदगी की सबसे बड़ी खूसखबरी दी.. ना जाने कब से इंतेज़ार मे थे वो दोनो अपने इस प्यार के तोहफे के.. चारों तरफ ख़ुसीया ही ख़ुसीया फैल गयी थी.. इस खूसखबरी के बारे मे सुनते ही ठाकुर साहब ने भी एक बहुत बड़ी पार्टी रखकी थी जो सहेर मे हुई अभी तक की सबसे बड़ी पार्टी थी.. सब लोग काफ़ी खुस थे और उन सब मे सबसे ज़्यादा राज और स्नेहा.. मगर ना जाने किसने उनकी ख़ुसीयों को नज़र लगा दी.. और फिर उनकी ज़िंदगी मे एक ऐसा भूचाल आया जिसने सब कुछ तबाह कर दिया..
"क्या जानते हो तुम मेरे मा बाप की मौत के बारे मे..? किसने मारा उन्हे..?" राज फोन पर किसी से बातें कर रहा था और अपने ऑफीस के कॅबिन मे लगातार इधर उधर घूम रहा था.
"देखो, तुम्हें जितने पैसे चाहिए मैं देने के लिए तैय्यार हू.."
"क्या मुझे कहीं पैसे लेकर आना पड़ेगा..? कहाँ आना पड़ेगा.. जल्दी बताओ.."
"ठीक है मैं कल ही पैसे लेकर वहाँ पहुँचता हूँ.. तुम सारी जानकारी मुझे दे देना.." राज का पूरा चेहरा पसीने से लत्पत था और वो बोलते हुए हाँफ रहा था..
कुछ दिनो से लगातार उसके पास फोन आ रहे थे जिसके ज़रिए कोई आदमी रोज़ उसे लगातार उसकी मा बाप की मौत के बारे मे बोलता रहता और कहता कि उसे उसकी मा बाप की मौत के बारे मे सब पता है..
और आज पहली बार उस फोन वाले आदमी ने उसके सामने पैसों की माँग रखी थी जिसे राज ने स्वीकार कर लिया था.. मगर उसे नही पता था कि ये स्वीकृति उसे बहुत महेंगी पड़ने वाली थी.. ऑफीस से वो सीधा बॅंक चला गया ताकि वो पैसों का इंतज़ाम कर सके.. मगर शायद पैसे तो सिर्फ़ एक बहाना था राज को फसाने का..
बॅंक से उसने 5 लाख रुपीज़ निकाले और उन्हे एक बॅग मे भर कर घर की तरफ चल दिया.
"अरे वाह.. ये बॅग मे क्या भर के लाए हो जनाब.." घर पहुँचते ही स्नेहा ने राज से मज़ाक करते हुए कहा..
"इस बॅग मे पैसे हैं.." राज स्नेहा से कोई बात नही छुपाता था इसलिए उसने सीधा बता दिया..
"पर इतने सारे पैसे..? इतने सारे पैसों का क्या करोगे तुम..?" स्नेहा का ये सवाल सुनकर राज ने पूरी कहानी बता दी जो कुछ पिछले दिनो हुआ था..
"अगर ये आदमी तुम्हारे मा बाप के कातिल को जानता है तो फिर इतने सालों तक चुप क्यूँ था.. नही मुझे तो इसमें बहुत बड़ी गड़बड़ लग रही है राज.. तुम वहाँ मत जाओ प्लीज़.. तुम्हारी जान को ख़तरा भी हो सकता है." स्नेहा के चेहरे पर चिंता का भाव सॉफ देखा जा सकता था..
"मगर मुझे एक बार जान तो लेना चाहिए ना कि आख़िर ये आदमी चाहता क्या है और इतने सालों बाद अचानक कहाँ से आ टपका.. मुझे हर हाल मे इस आदमी से मिलना होगा.." राज जो अभी तक बिस्तर पर बैठा हुआ था उसने उठाते हुए कहा..
"अगर ऐसी बात है तो फिर मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी.. प्लीज़" स्नेहा ने गिड़गिदाते हुए कहा..
"तुम मेरे साथ नही आ सकती स्नेहा.. वहाँ ना जाने कौन लोग हों... और मैं नही चाहता कि मेरी वजह से तुम्हारी जान ख़तरे मे पड़े.." राज ने स्नेहा के गालों पर हाथ रखते हुए कहा..
"मगर राज..."
"चुप.. बिल्कुल चुप.." स्नेहा ने कुछ बोलने के लिए मूह खोला ही था कि राज ने उसके मुह्न पर हाथ रखकर उसे चुप करा दिया.. इसके बाद वो धीरे धीरे अपना हाथ स्नेहा की ब्लाउस पर ले गया और अपना हाथ धीरे धीरे उसके उरोजो पर चलाने लगा.. फिर उसने धीरे धीरे उसकी ब्लाउस के सारे बटन खोल दिए जिससे स्नेहा के पूरे शरीर मे सनसनाहट दौड़ गयी..और उसकी हालत खराब हो गयी.. इसके बाद राज ने धीरे धीरे उसके सारे कपड़े उतार दिए.. फिर उसने स्नेहा को बिस्तर के किनारे से उठाकर बिस्तर पर सुला दिया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए. स्नेहा और राज दोनो के शरीर की गर्मी इतनी ज़्यादा थी कि पूरे रूम के वातावरण को गरम कर रही थी..
क्रमशः........................
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