RE: non veg story एक औरत की दास्तान
एक औरत की दास्तान--8
गतान्क से आगे...........................
"भूओ" इस आवाज़ से किन्ही ख़यालों मे खोया राज हड़बड़ा गया. सर घूमाकर देखा तो पाया कि स्नेहा उधर खड़ी होकर ज़ोर ज़ोर से हस रही है.
"बहुत डराने का शौक हो गया है देवी जी आपको ?" राज ने उसका हाथ पकड़कर अपनी और खींचते हुए कहा,और उसे अपनी गोद पर बैठा लिया.
"छ्चोड़ो मुझे. कोई देख लेगा. ये हमारा घर नही कॉलेज है." स्नेहा ने उससे छूटने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा.
"अजी..इतनी आसानी से नही छ्चोड़ने वाले हम आपका हाथ. अब पकड़ा है तो मरने के बाद ही छूटेगा ये."
मरने वाली बात सुनकर स्नेहा ने उसके मुह्न पर हाथ रख दिया.
"दोबारा मरने की बात की ना तो मैं ही तुम्हें मार डालूंगी" स्नेहा ने मुह्न बनाते हुए कहा.
"अजी मार डालिए ना. आप इन हाथों से हमे मरना भी मंजूर है.
प्यार करते हैं हम आपसे, कोई मज़ाक नही." राज ने दाँत दिखाते हुए कहा.
"वाह क्या डाइलॉग मारा है. कहाँ से सीखा ये ?" स्नेहा को भी ये पंक्तियाँ पसंद आ गयी थी शायद.
"अरे यार. क्या बताउ तुम्हें. मुझे इंटरनेट का बड़ा चस्का लग गया है. वहीं पर राज शर्मा की कहानियाँ नाम की साइट पर एक कहानी पढ़ी थी. उसी मे थी ये लाइन्स. जहाँ राजू अपनी प्रेमिका पद्मिनी को ये पंक्तियाँ बोलता है. तुम भी ज़रूर पढ़ना ये कहानी." राज ने मुस्कुराते हुए कहा.
"ओके ज़रूर पढ़ूंगी ! बाइ दा वे तुम्हें मुझसे ये लाइन्स बोलने की कोई ज़रूरत नही है. मुझे पता है कि तुम मुझसे कितना प्यार करते हो." ये बोलकर स्नेहा ने एक चुंबन राज के होंठों पर जमा दिया.
"वैसे एक बात पूछूँ ?"अब दोनो अपनी जगह से उठ गये थे और एक गार्डन की तरफ जा रहे थे जहाँ वो अकेले मे बैठकर बातें कर सकें.
"हां. अब तुम्हें मुझसे कुछ पूछने के लिए पर्मिशन लेनी पड़ेगी ? खुल कर पूछो. क्या बताना है. कहीं मेरे शरीर के किसी अंग के बारे मे तो नही पूछना चाहती ?" राज ने दाँत दिखाते हुए कहा. जिसका मतलब समझते स्नेहा को देर ना लगी और उसने धीरे से एक प्यार भरा मुक्का उसके सीने पर जमा दिया.
"मैं कुछ और पूछना चाहती थी. मैं जब तुम्हारे पास गयी तो तुम पता नही किन ख़यालों मे खोए हुए थे. बहुत बार बोलने के बाद भी तुम जब ख़यालों से बाहर नही आए तो मुझे तुम्हें आवाज़ निकालकर डराना पड़ा. क्या सोच रहे थे तुम राज ?" स्नेहा का ये सवाल सुनकर पहले तो राज चौंक गया लेकिन फिर उसने खुदको संभाल लिया.
"अरे ऐसे ही कुछ सोच रहा था. जाने दो.." राज ने बात को टालने की कोशिश करते हुए कहा.
"ऐसे कैसे जाने दूं. जब तक तुम मुझे नही बताते मैं नही मानूँगी." स्नेहा ने ज़िद्द करते हुए कहा. राज के लाख समझने पर भी वो नही मानी.
"अच्छा तो सुनो. मैं रवि के बारे मे सोच रहा था." राज ने स्नेहा से दो कदम आगे होते हुए कहा.
"क्या सोच रहे थे रवि के बारे मे.?" स्नेहा राज को सवालिया निगाहों से देख रही थी.
"कल रवि और रिया को मैने एक साथ बाइक पर जाते हुए देखा. दोनो परेशान लग रहे थे. मैने उन्हे आवाज़ लगाई लेकिन उससे पहले ही वो दोनो निकल गये." इतना बोलकर राज साँस लेने के लिए रुका.
"तो फिर क्या हुआ ? दोनो अपने अपने घर चले गये होंगे. इसमें इतना सोचने वाली क्या बात है ?" स्नेहा ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.
"इसमें सोचने वाली बात ये है स्नेहा कि वो दोनो अब तक घर नही पहुँचे. रिया के घर वालों को तो कोई टेन्षन नही क्यूंकी रिया वैसे भी घरवालों को बिना बताए अपने दोस्तों के साथ कयि कयि दिनो तक गायब रहती है.. मगर रवि. वो कहाँ गया उसके साथ ?" राज ने कंधे उचकाते हुए कहा.
"तुमने उन्हे फोन करने की कोशिश की." स्नेहा ने पूछा.
"कोशिश तो बहुत की.. मगर दोनो का फोन बंद आ रहा है. पता नही दोनो कहाँ गायब हो गये. मैने पता लगाने की बहुत कोशिश की मगर कुछ पता ही नही चला.." राज के चेहरे पर चिंता की लकीरें सॉफ देखी जा सकती थी.
"उन दोनो का कोई अफेर वाफ़्फयर तो नही चल रहा था ?" स्नेहा ने फिर पूछा.
"अरे अफेर की तो छ्चोड़ो दोनो बस एक दूसरे को चेहरे से ही जानते थे. इससे ज़्यादा कुछ नही. मगर रवि के दिल मे रिया के लिए कुछ था. और मैने ये बात बहुत बार नोटीस भी की थी." राज अब भी चिंतित था. उसका यूँ फ़िकरमंद रवैयय्या देख कर स्नेहा ने उसे धाँढस बांधने की कोशिश की.
"अरे वो दोनो कोई दूध पीते बच्चे हैं क्या ? आ जाएँगे.. अरे हां, मैं तुम्हें एक बात बताना तो भूल ही गयी." स्नेहा ने उत्साहित होते हुए कहा.
"क्या ?" राज ने सवालिया नज़रों से देखते हुए पूछा.
"अरे यही कि पापा को हमारे अफेर के बारे मे पता चल गया है." स्नेहा ने चहकते हुए कहा.
"क्या? क्या बोला उन्होने तब ?" राज पहले शॉक्ड हो गया लेकिन फिर सँभाल गया.
"पहले तो उन्होने मुझे डरा दिया था लेकिन फिर वो मान गये और कल तुम्हें लंच पर बुलाया है. आ रहे हो ना कल लंच पर ?" स्नेहा ने पूछा.
"अरे हान बिल्कुल. तुम बुलाओ और हम ना आयें, ऐसा हो सकता है क्या ?" राज ने दाँत दिखाते हुए कहा.
"अच्छा तो कल लंच पर मिलते हैं. अभी मैं लेट हो रही हूँ. बाइ " स्नेहा ने घड़ी देखते हुए कहा.
"अरे रूको तो सही" राज ने उसे रोकना चाहा मगर तबतक वो जा चुकी थी और राज मुस्कुराता हुआ उसके हिलते हुए नितंब देख रहा था.
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