RE: non veg story एक औरत की दास्तान
"अरे बेटवा इतना सवेरे सवेरे काहे नाहत हो..? कहीं जाए का है का...?"
"हां काका कॉलेज जाना है... इसलिए आज सुबह सुबह नहा लिया..
"पर अभी तो सुबह के 4 बजल हैं.. अभी कौन कॉलेजेवा चलत होयहैं..?"
"अरे काका.. आज हमारी एक्सट्रा क्लास है.. इसलिए हमे आज 5 बजे ही बुला लिया है कॉलेज मे... इसलिए अभी ही नहा रहा हूँ ताकि 4 बजे तक कॉलेज पहुँच सकूँ.."
"अच्छा बेटा जैसन तोहार मर्ज़ी.." जग्गू काका ने भी अब ज़्यादा सवाल जवाब करना ठीक नही समझा... आज राज फिर पागलों की तरह सुबह 4 बजे ही नहा रहा था... हहालाँकि कॉलेज 10 बजे शुरू होता था और उसके घर से कॉलेज तक का रास्ता सिर्फ़ 20 मिनिट का था...फिर भी आज उसे कॉलेज जाने की इतनी जल्दी थी कि वो सुबह 4:30 मे ही घर से निकल गया... अभी बाहर पूरा अंधेरा ही था... सभी लोग अभी घर मे रज़ाई मे दुबक कर सोए हुए थे..पर प्यार मे पागल राज निकल गया कॉलेज के लिए...
अब उसे बस एक चिंता खाए जा रही थी..कि वो रवि के घर कैसे जाए...? उसकी मा अगर उससे सवाल जवाब करेगी तो वो क्या जवाब देगा...? वो अभी अपनी बाइक से कुछ ही दूर गया था कि उसे एक चाई की दुकान दिखी.. उसने सोचा कि क्यूँ ना यहाँ पर थोड़ा वक़्त बिता लिया जाए...
वो बाइक से उतरा और चाई की दुकान पर बैठ गया.. गनीमत थी कि वो दुकान इतनी सुबह सुबह खुल गयी थी वरना आज उसे रवि की मम्मी की डाँट सुननी पड़ती... उसने वहाँ बैठते ही चाई का ऑर्डर दिया... और पास मे ही पड़ा न्यूसपेपर उठा कर पढ़ने लगा.. न्यूसपेपर की हर फोटो मे उसे स्नेहा का चेहरा दिख रहा था... उसने न्यूसपेपर के अक्षर पढ़ने की कोशिश की पर आज पता नही क्यों उसे न्यूसपेपर पढ़ने मे भी मन नही लग रहा था.. उसके दिमाग़ मे बस एक ही शब्द था... बस एक ही नाम था...."स्नेहा स्नेहा..." इसी दौरान वहाँ पर चाई भी आ गयी... उसने बड़ी मुश्किल से चाई पी..क्यूंकी चाई भी आज उसके हलक से नीचे नही उतर रही थी... एक एक पल उसके लिए कैसा गुज़र रहा था ये तो सिर्फ़ उसका दिल ही जानता था.... जब उससे और ज़्यादा बर्दाश्त ना किया गया तो वो वहाँ से उठ गया और अपनी बाइक पर बैठकर बाइक स्टार्ट कर दी... अब उसे लग रहा था कि वो एक पल भी स्नेहा के बिना नही रह पाएगा... उसे कैसे भी उसका चेहरा देखना था.. कुछ भी करना था पर जिसे उसने अपने मन मे देवी के रूप मे बसाया है उसका चेहरा देखना है... उसका दिल ज़ोर से धड़क रहा था और दिमाग़ भारी असमंजस मे था कि अब वो क्या करे और क्या ना करे... अंत मे उसने एक फ़ैसला कर ही लिया जिससे वो कम से कम कॉलेज जाने से पहले ही स्नेहा का चेहरा देख सकता था... और इसी फ़ैसले पर अमल करते हुए उसने अपनी गाड़ी घुमा दी "ठाकुर विला" की तरफ...
"ठाकुर-विला" के बाहर पहुचते ही उसने अपनी बाइक एक साइड मे लगा दी... इसके बाद बाइक से उतर कर तेज़ धड़कनो के साथ गेट की तरफ बढ़ने लगा... उसकी साँसें आज कुछ ज़्यादा ही तेज़ चल रही थी.. ऐसा लग रहा था कि वो चाई की दुकान से बाइक पर नही बल्कि दौड़ कर यहाँ आया हो... जैसे जैसे वो गेट की तरफ बढ़ रहा था वैसे वैसे उसके दिल की धड़कनो की गति और ज़्यादा तेज़ होती जा रही थी.. उसने ऊपर वाले का नाम लिया और फिर आगे बढ़ने लगा.. वो बिल्कुल कछुए की तरह धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था.. ऐसा लग रहा था कि जैसे वो किसी जंग पर जा रहा हो.. अगर ये कोई मूवी होती तो दर्शक अभी तक चिल्ला कर बोल रहे होते... "अबे चूतिए आगे बढ़ ना..." खैर उसने अपनी गति बढ़ा ही दी.. और अब तेज़ कदमों से बढ़ने लगा दरवाज़े की तरफ... जैसा कि हर हवेली मे होता है... घर के सामने एक बड़ा लोहे का दरवाज़ा लगा हुआ था जिसपर एक गार्ड बैठकर चौकीदारी कर रहा था..
दरवाज़े पर एक बड़ा सा प्लेट लगा हुआ था जिसपर सुनहरे अक्षरों मे "ठाकुर विला" लिखा हुआ था...
पर उसके नीचे वाले प्लेट मे जो लिखा हुआ था उसे देख कर राज की हसी छूट गयी... नीचे छोटे से प्लेट मे लिखा हुआ था..."कुत्तों से सावधान"
उसने पूरे सेंटेन्स को मिलाकर पढ़ा तो वो कुछ ऐसा बना... "ठाकुर विला.. कुत्तों से सावधान"
उसने जल्दी से अपना दिमाग़ इस बकवास से हटाया और फिर अपना काम करने पर लगा दिया.. अपना मकसद पूरा करने पर...
"ओये किधर जाता है..." एक कड़क आवाज़ उसके कानो मे पड़ी... उसने सर घुमा कर देखा तो उस हवेली का गार्ड खड़ा था... करीब 7 फ्ट. लंबा कड़क आवाज़ और मर्दों वाली कड़क मूच्छे... राज की तो उसे देखते ही गंद फटने लगी... वो बिना पूछे ही अंदर घुस रहा था और उस गार्ड की नज़र उसपर पड़ गयी..
"अंकल जी.. मैं कहीं नही जा रहा हूँ.. ये तो अपना ही घर है... मैं तो बस इस घर की मालकिन स्नेहा जी से मिलने जा रहा था.." राज ने हाथ जोड़ते हुए कहा...
"ऐसे चोरों की तरह क्यूँ जा रहा था बे...?" उसने राज का कॉलर पकड़ कर उसे उठा लिया...
"मुझे छ्चोड़ दो भाई.. स्नेहा मेरे क्लास मे पढ़ती है और मैं उसका दोस्त हूँ... प्लीज़.. मैं बस उससे मिलने जा रहा था..." उसे अब साँस लेने मे तकलीफ़ हो रही थी.. उसका गला गार्ड के बड़े बड़े पंजों मे क़ैद था...
"झूट बोलता है तुम... तुम यहाँ चोरी करने आया था.. आज हम तुमको ऐसा सबक सिखाएगा कि तुम चोरी करना भूल जाएगा..." गार्ड ने उसके कॉलर पर अपनी पकड़ मजबूत कर दी...
"अरे भाई मैं चोरी करने नही आया था..." पर राज की ये बात गले मे ही अटक गयी क्यूंकी गार्ड ने उसका गला इतनी ज़ोर से पकड़ रखा था कि उसे साँस भी नही ली जा रही थी तो आवाज़ क्या निकलती...
"अबे रामू, श्यामू, मोहन... सब बाहर तो आओ... देखो आज मैने एक चोर पकड़ा है..." गार्ड ने चिल्लाते हुए कहा...
उसके इतना बोलते ही सामने बने सर्वेंट्स क्वॉर्टर से 3 मुस्टंडे बाहर निकले... उन्हें देखकर राज को पॅंट मे ही पेशाब हो गया... उसे पता था कि आज उसकी जान जाने वाली है.. उसने यहाँ आकर बहुत बड़ी ग़लती की है...
तीनो मुस्टंडे उसके सामने आए... और तीनो ने एक एक थप्पड़ उसे जमा दिया..."हमारे साहब के यहाँ चोरी करेगा साले..." इतना बोलकर तीनो ने मिलकर उसपर लात घूसों की बारिश कर दी... बेचारे के मुह्न और नाक से खून की एक धारा बह निकली... प्यार जो ना करवाए वो कम है.. उसके दिमाग़ मे बस अभी यही बात आ रही थी.. उसके मुह्न से अब घुटि घुटि चीख ही निकल पा रही थी..पर तीनो मुस्टंडे उसे मारते हुए ज़ोर ज़ोर से गालियाँ बके जा रहे थे...
क्रमशः.........................
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