RE: non veg story एक औरत की दास्तान
एक औरत की दास्तान--2
गतान्क से आगे...........................
"और बेटा.. बताओ घर मे सब कैसा चल रहा है..?"
"सब ठीक है अंकल... आप तो जानते ही हैं कि मा पिताजी के मरने के बाद.. मैं कितना अकेला हो गया हूँ... बिज़्नेस का सारा बोझ मुझपर ही आ गया है... बहुत अकेला महसूस करता हूँ.. इसलिए अकेलापन दूर करने के लिए कुछ दिनो के लिए अमेरिका से राजनगर आ गया हूँ अपने पापा के पुराने बंग्लॉ पर.."
"हां..ये तुमने बहुत अच्छा किया बेटा... किसी भी चीज़ की दिक्कत हो तो बेहिचक मुझे बताना.. मैं तुरंत ही उसका निवारण कर दूँगा.."
"हां अंकल... बिल्कुल.. इसमें भी कोई कहने वाली बात थोड़े ही है... ये भी अपना ही घर है..." उसकी लालची नज़रें पूरे घर को देख कर मंन ही मंन उसकी तारीफ़ किए बिना ना रह सकी.... वो खुद एक बहुत बड़े बिज़्नेसमॅन का बेटा था पर आख़िर था तो इंसान ही.. और वैसे भी उस आलीशान घर को देखकर ईमानदार से ईमानदार व्यक्ति की नियत डगमगा सकती थी तो फिर वो क्या चीज़ था...
"बेटा एक बार फिर बोलता हूँ.. मुझे बताने मे किसी प्रकार का संकोच ना करना..." तभी ठाकुर साहब को अपनी बेटी आती हुई दिखाई दी... उसने पिंक कलर का टॉप और ब्लू कलर की जीन्स पहन रखी थी..जिसमे से उसके उभार सॉफ झलक रहे थे...
वहाँ पर बैठे लड़के ने मंन ही मंन उसके वाक्सों का साइज़ नापना शुरू कर दिया..
"36... नही नही... 34... नही 36..तो ज़रूर होंगे इसके बूब्स" उसके मंन मे जंग सी छिड़ गयी थी... कि उसके बूब्स 36 के हैं या 34 के... तबतक वो लड़की पास आ चुकी थी..
"बेटी इनसे मिलो ये हैं हमारे दोस्त के एकलौते बेटे.. वीर प्रताप सिंग.." ठाकुर साहब ने परिचय कराते हुए कहा...
"हेलो..." स्नेहा ने सुरीली आवाज़ मे कहा...जिसका उत्तर देना वीर के बस के बाहर था... वो भी सभी लोगों की तरह उसके रूप के जाल मे फँस गया था और उसके रूप के द्वारा सम्मोहित होकर उसे देखे जा रहा था... स्नेहा ने देखा कि वो कोई 25-26 साल का नौजवान था... उसका कद कोई 6 फिट. था.. रंग बिल्कुल गोरा और रोबदार चेहरा.. देखने से ही मर्द का बच्चा लगता था वो..
"और ये है मेरी बेटी स्नेहा... शायद तुम इससे मिल चुके हो.." ठाकुर साहब ने अपनी बेटी का परिचय करते हुए कहा...
"हां बिल्कुल मिल चुका हूँ.. पर तब ये छोटी हुआ करती थी.. इसलिए शायद इन्हे याद ना हो... और मुझे भी ज़्यादा कुछ याद नही है..." वीर ने अपना ध्यान स्नेहा पर से हटाते हुए कहा...
"पापा फिलहाल तो मुझे एक पार्टी मे जाना है... मैं आपसे बाद मे मिलती हूँ... बाइ..." स्नेहा ने अपने पिता से विदा लेते हुए कहा..
"जल्दी आ जाना बेटी... मुझे तुम्हारी फिकर होने लगती है...."
"हां पिताजी... जल्दी आ जाउन्गि... आइ लव यू.. बाइ..." ये बोलकर स्नेहा बाहर की तरफ चली गयी.. पीछे से वीर की नज़र उसके बड़े बड़े मटकते हुए चुतदो को लगातार निहार रही थी...
उसके मंन मे अभी सिर्फ़ एक ही बात आ रही थी...
"हाए.. कोई तो रोक लो...."
वो दिन राज के लिए बहुत भारी था... स्नेहा की याद मे अब उसका जीना मुश्किल हो रहा था... हर तरफ उसे वोही चेहरा नज़र आता था... ऐसा लगता था जैसे वो कह रही हो..."मुझे अपनी बाहों मे ले लो राज.."
पार्टी शाम के 7 बजे शुरू होने वाली थी पर वो 4 बजे ही पहुँच गया रवि के घर..
दरवाज़ा खाट खटाते ही रवि की मा बाहर आई....
"अरे बेटा तुम...? इस वक़्त..?"
"वो आंटी... रवि रेडी हो गया क्या.... वो आज हमारे प्रिन्सिपल की बेटी की बर्तडे पार्टी है ना तो वहीं जाने वाले हैं हम.." राज ने रवि की मम्मी के गेट पर आने की बात नही सोची थी... हर बार जब वो रवि के घर आता था तो वो खुद ही दरवाज़ा खोलता था..
राज की पार्टी वाली बात सुनकर रवि की मा एक बार सोच मे पड़ गयी...
"क्या सोच रही हैं आंटी...?"
"कुछ नही बेटा.... पर रवि ने तो मुझे बताया था कि पार्टी 7 बजे शुरू होने वाली है..." रवि की मा ने राज़ खोला...
ये सुनकर राज अपनी घड़ी की तरफ देखने लगा..तो पाया कि अभी तो घड़ी मे 4 ही बजे थे... वो लोग 2:30 मे कॉलेज से वापस आए थे और फिर स्नेहा के प्यार मे पागल राज बिना टाइम देखे ही पहुँच गया था रवि के घर...
"कौन है मा..?" दरवाज़े पर नॉक होने के कारण रवि की नींद टूट गयी थी जो अभी घोड़े बेच कर सो रहा था... वो आँख मलते मलते बाहर आया तो पाया कि दरवाज़े पर राज खड़ा है...
ये देखकर उसे ये समझते देर ना लगी कि राज पागल हो चुका है स्नेहा के प्यार मे... सो उसने अपने मा से बहाना बनाने की सोची ताकि राज किसी तरह के सवाल से बच जाए...
"अरे राज तू...? अंदर आजा... चल कमरे मे चलते हैं... तूने जो कॉपी मुझे दी थी असाइनमेंट कॉपी करने के लिए वो अभी कंप्लीट नही हुई है... आ जा अंदर...पहले वो कंप्लीट कर लूँ..फिर चलेंगे रिया की बर्तडे पार्टी मे..." रवि ने बात को संभालते हुए कहा...
पर एक लड़की का नाम सुनकर उसकी मा के कान खड़े हो गये...
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