RE: Parivar Mai Chudai रिश्तों की गर्मी
मैने कहा दिव्या तुम्हे जो भी पता है क्या तुम मुझे बताओगी मुझे बहुत ही उत्सुकता हो गयी है उसने एक ठंडी आह भरी और कहा कि देखो मुझे पक्का ये तो नही पता कि आख़िर ठाकुर वीरभान और भीमसेन के बीच ऐसी कॉन सी बात थी जिस से वो एक दूसरे से नफ़रत करने लगे थे पर ये भी सच है कि वीरभान और वसुंधरा एक दूसरे से प्रेम करते थे
और फिर इसी बात को लेकर काफ़ी बड़ा कांड भी हो गया था पर फिर भी दोनो प्रेमियो का ब्याह हो गया था और उनका बेटा भी हो गया था पर फिर एक दिन वसुंधरा को उनकी माँ सारी बाते भूलकर इधर यानी नाहरगढ़ ले आई और फिर वसुंधरा जी की मौत हो गयी जिसका इल्ज़ाम उनकी माँ पर लगा मैने कहा हम इतना तो पता है मुझे और फिर उनकी माँ को जैल हो गयी थी
वो बोली हाँ पर जैसा कि सब मानते है कि उनको जहर उनकी माँ ने दिया था पर वास्तव मे ऐसा कुछ हुआ ही नही था
मैने कहा दिव्या क्या तुम मुझे पूरी कहानी शुरू से बताओगी तो उसने कहा कि नही वो उस सब के बारे मे बात नही करना चाहती है पर उसके चेहरे पर एक गुस्से की लकीर को मैने देख लिया था मैने कहा मैने कभी भी ज़िंदगी मे महल नही देखा है क्या तुम मुझे दिखाओ गी तो उसने कहा कि वो कैसे तुम्हे दिखा सकती हूँ अगर मालिक लोगो ने देख लिया तो उसकी नौकरी पे बन आएगी तो मैने भी फिर कुछ ना कहा उसके साथ वक़्त बिता कर बड़ा ही अच्छा लग रहा था मुझे पर फिर अंधेरा घिरने लगा था तो घर आना ही था
दो चार दिन ऐसे ही गुजर गये और फिर हवेली मे लक्ष्मी आई मैने कहा कहाँ गयी थी तुम कितने दिन लगा दिए आने मे तो उसने बताया कि वो बेटे से मिलने गयी थी जबकि मुझे पहले से ही पता था कि वो कहीं और से आ रही है मैने पर कुछ भी जाहिर नही होने दिया और उस से बाते करता रहा अब कैसे उगलवाऊ उस से कि वो कहाँ गयी थी बात करते करते मुझे कुछ सूझा तो मैने कहा कि मुझे शहर तक जाना है पर मेरी गाड़ी मे कुछ प्राब्लम है तो क्या तुम्हारी कार ले जाउ
उसने कहा ये भी कोई पूछने की बात है मेरा सब कुछ तुम्हारा ही तो है मैने गाड़ी ली और स्टार्ट कर के बाहर निकल गया सुनसान जगह में आते ही मैने गाड़ी को चेक करना शुरू किया आख़िर कुछ तो मिले जिस से पता चले कि आख़िर ये गयी कहाँ थी पर इधर भी हताशा ही हाथ लगी कुछ नही मिला दो-तीन बार अच्छे से चेक किया पर रह गये खाली हाथ पर कुछ तो खिचड़ी पक ही रही थी जिसमे लक्ष्मी भी शामिल थी पर डाइरेक्ट्ली उस से कुछ पूछ नही सकता था
एक एक दिन बड़ा भारी सा हो रहा था पर फिर एक रोज नाहरगढ़ से ठाकुर राजेंदर की तरफ से निमंत्रण आया कि उनकी बेटी संयोगिता का जनमदिन है तो ज़रूर शिरकत करें मैं सोचने लगा कि जाउ या नही , जाउ या नही मुनीम जी से बात की तो वो बोले आपको बिल्कुल भी नही जाना चाहिए पिछले 19 बरस से इधर से कोई उधर नही गया है पर अगर आप जा ही रहे है तो अपने साथ कुछ आदमी ज़रूर ले जाएँ ना जाने कोन घड़ी क्या हो जाए मैने कहा नही जाउन्गा तो मैं अकेला ही अब जब उन्होने आगे से खुद न्योता भेजा है तो हमारा जाना भी बनता है
मैं मुनीम जी के घर से निकल कर कुछ दूर चला ही था कि मुझे कुछ याद आया तो मैं अंदर कमरे मे पैर रखने ही वाला था कि मैने सुना मुनीम फोन पर कह रहा था कि हाँ अब सही समय आ गया है अपना काम भी हो जाएगा और शक़ भी नही होगा , अब ये कॉन सा काम कर रहा है कहीं ये भी कुछ प्लॅनिंग तो नही कर रहा है मैं हैरान परेशान पर फिर उसकी बाते सुन ने के बाद मैं वहीं से ही मूड गया दो रोज बाद मुझे नाहरगढ़ जाना था
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