RE: Parivar Mai Chudai रिश्तों की गर्मी
करीब 40-45 मिनिट तक हम दोनो ऐसे ही एक दूजे मे समाए रहे इस बीच पुष्पा झड चुकी थी पर फिर भी मेरा साथ दे रही थी और फिर मेरे लंड से वीर्य की धारे निकल कर उसकी चूत मे गिरने लगी तो मैं भी आनंद के सागर मे जैसे डूब गया मैं उसके उपर ही पड़ा रहा जब तक कि उसकी छूट ने वीर्य की अंतिम बूँद तक को अपने अंदर ना सोख लिया फिर पुष्पा उठी और बोली मालिक आपने अंदर ही छोड़ दिया , कुछ दिनो पहले ही मेरा महीना हुआ है कही बच्चा ना ठहर जाए मैने कहा चिंता ना कर कुछ नही होगा
और अगर कुछ होगा तो मैं हूँ ना तू क्यो फिकर कर रही है तो फिर उसने अपने कपड़े पहने और जाने लगी तो मैने कहा यहीं सो जा तो वो बोली नही मालिक रात को गेट पर रहने वालों को चाइ देनी पड़ती है कही आँख लग गयी तो फिर परेशानी होगी तो वो चली गयी और मैं बिस्तर पर अकेला रह गया
अगले दिन मैं पैदल ही हवेली से निकल गया और पीछे पहाड़ो की तरफ चल पड़ा मेरे मन मे कई तरह के सवाल थे जिनके जवाब मुझे तलाश करने थे हर हाल मे आख़िर कॉन था जो इतनी घहरी पैठ रखता है कि हवेली की इतनी कड़ी सुरक्षा होने के बाद भी ये खत छोड़ जाए कि देव ठाकुर हवेली का सूरज जल्दी ही अस्त हो जाएगा दरअसल बात ये थी कि कल रात पुष्पा के जाने के बाद मैं तो सो गया था
पर जब मनोहर जो कि हवेली की चोकीदारी का काम कर रहा था वो पेशाब करने के लिए जब कुँए की पिछली तरफ उगी हुई झाड़ियो मे गया तो उसे एक पोटली मिली जिसमे वो खत था जाहिर है ये मेरे लिए परेशानी वाली बात थी क्योंकि चार दीवारी भी काफ़ी उँची करवा दी गयी थी फिर भी को हवेली मे घुसकर कैसे वो पोटली छोड़ कर जा सकता था मैं सवालो में बुरी तरह से उलझा हुआ था
किस पर भरोसा करू किस पर नही करू कुछ समझ नही आ रहा था हवेली के चारो और मजबूत बौंडरी बनवा दी गयी थी तो मतलब ही नही पैदा होता था कि कोई बाहर से या दीवार फाँद कर घुस सके तो इसी कशमकशम मे मैं उलझा हुआ था आख़िर जब कोई अंदर घुस सकता है तो कल को कोई कांड भी कर सकता है देव ठाकुर इन सवालो की भूल भुलैया मे उलझ कर रह गया था आख़िर कोई तो मदद गार मिले जो इस मुसीबत का हाल निकालें
तराई मे दूर दूर तक मैदान था जो कि झाड़ झंखाड़ और पेड़ो से ढका हुवा था तो मैं उधर ही चलने लगा करीब 1 कोस के बाद इलाक़ा और भी गहराई मे जाने लगा तो पेड़ पोधो की कतार और भी लंबी होने लगी थी सुनसान इलाक़ा और दूर दूर तक किसी इंसान का पता नही मेरे माथे से पसीना चू निकाला पर मैं आगे और आगे चलता रहा और फिर मुझे कुछ ऐसा दिखा जिसकी मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नही थी मैं तेज़ी से दौड़ ते हुए उस ओर गया
ये तो सफेद कलर की फ़ोर्ड गाड़ी थी गाड़ी को इस तरह से छुपाया गया था कि बिल्कुल पास आने पर ही पता चले वरना बाहर से तो किसी को सपना भी ना आए कि इधर एक गाड़ी छुपाई गयी है देखने से ही पता चलता था कि गाड़ी कई दिनो से इधर ही खड़ी होगयि थी टायरो मे हवा भी कम कम ही लग रही थी मैने गाड़ी की नंबर प्लेट पर पड़ी धूल हटाई तो मेरी आँखे चमक उठी
और मन परेशान होगया ये कार तो लक्ष्मी की थी और अगर कार यहाँ है तो फिर लक्ष्मी कहाँ है मेरा दिल जोरो से धड़कने लगा मैने जेब से फोन लिया और लक्ष्मी का नंबर मिलाया पर उस जगह पर नेटवर्क था ही नही तो मैं सोचने लगा कि इतनी झाड़ झंखाड़ वाली जगह पर कोई इस गाड़ी को लेकर आया कैसे रास्ता इधर ही कही होगा तो मैं गाड़ी को छोड़ कर रास्ता ढूँढने लगा
थोड़ी देर बाद मुझे एक कच्ची सड़क दिखाई दी जिज्ञासा वश मैं उधर ही चल पड़ा घने पेड़ो के बीच से ये रास्ता बनाया गया था और इतना अंधेरा था पेड़ो की वजह से की सॉफ सॉफ दिखना बड़ा ही मुश्किल था पर मैं धीरे धीरे आगे चला जा रहा था टेढ़ा मेढ़ा होते हुए वो रास्ता जब ख़तम हुवा तो मैने देखा कि एक झोपड़ी सी थी पर वहाँ कोई दिखाई नही दे रहा था तो मैं अंदर चला गया वहाँ जाकर देखा
तो खाने पीने का समान पड़ा था जैसे कि कोई कल या परसो ही यूज़ किया गया हो मेरे दिमाग़ की सारी नसें जैसे फटने को ही हो रही थी मैं झोपड़ी की तलाशी लेने लगा तभी मेरा पैर किसी चीज़ से टकराया तो मैं दर्द से बिल बिला उठा ये कोई कुण्डा सा था जो फर्श मे लगाया गया था मैने उसे खोला तो
तो देखा कि नीचे की ओर जाने के लिए सीढ़िया बनी हुई थी तो मैं नीचे उतर गया रास्ता सांकरा सा था पर इतना था कि आदमी सीधा होकर चल सके तो मैं आगे आगे बढ़ता गया कुछ अंधेरा सा था तो मैने मोबाइल की टॉर्च जला ली करीब 30 मिनिट तक मैं नाक की सीध मे चलता रहा फिर जाके थोड़ा थोड़ा सा उजियारा दिखाई देने लगा और उपर जाने के लिए सीढ़िया भी
तो मैं उपर चढ़ने लगा जब मैं उपर चढ़ा तो देखा कि मैं तो हवेली मे ही वापिस आ गया हू अब बारी मेरे आश्चर्यचकित होने की थी ये हवेली का वो कमरा था जिसमे दादा जी रहा करते थे अब मेरी समझ मे एक बात तो आ गयी थी कि जो भी हवेली मे आया था वो इसी रास्ते से आया था क्योंकि जो भी चौकीदार थे वो सब गेट पर ही बने कमरों मे रहते थे हवेली मे आने का हक़ बस मुझे और पुष्पा या कुछ ही लोगों को ही था
लेकिन वो रास्ता किसने बनाया ज़रूर वो पुराना रास्ता होगा क्योंकि अक्सर ऐसी जगहों मे ख़ुफ़िया रास्ते भी बनाए जाते रहे है पर लक्ष्मी की कार वहाँ पर क्या कर रही थी मैने लक्ष्मी को फोन किया तो पहली ही घंटी मे फोन उठ गया मैने सीधा पूछा कहाँ हो तुम और कब तक आओगी तो उसने कहा कि मैं मेरे बेटे के पास हूँ और दो चार दिन मे आ जाउन्गी
मेरे दिमाग़ मे कुछ शक़ का कीड़ा बुलबुलाने लगा था तो मैने तुरंत ही गोरी को बुलावा भेजा तो पता चला कि वो स्कूल गयी हुई है तो मैं सीधा स्कूल के ही पहुच गया मैने कहा गोरी तेरा भाई जहाँ पढ़ता है उधर का अड्रेस दे अभी और इस बारे मे किसी को मत बताना तो उसने कुछ नही पूछा और पता दे दिया मैं उसी टाइम उस शहर के लिए निकल पड़ा
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