RE: Parivar Mai Chudai रिश्तों की गर्मी
मैने अब अपनी गाड़ी काफ़ी दूर खड़ी की और पैदल चलते हुवे झाड़ियो को पार करके उधर पहुच गया कुछ भी तो नही बदला था वहाँ पर हर एक चीज़ खिली खिली सी हुई लगता था कि कोई बड़े ही प्यार से उस जगह को आबाद करने मे लगा हुआ था और मुझे भी बड़ा अच्छा लगता था इधर आ कर , मैं उसी बेंच पर बैठ गया और दो पल के लिए अपनी आँखे मूंद ली
कि तभी एक मिशरी सी आवाज़ मेरे कानो मे जैसे घुलती ही चली गयी मैने आँखे खोली तो मेरे ठीक सामने वो ही हसीना खड़ी थी, गोद मे एक खरगोश लिए वो मुझे देखते हुए बोली कि अरे तुमको मैने कहा था ना कि उस दिन, इधर फिर ना आना फिर क्यो चले आए, तुम मुझे जानते नही हो मैं कॉन हू मैने कहा जी आपका बगीचा है ही इतना मनमोहक कि मैं खुद को रोक ही नही पाया इधर आने से
वरना मेरी क्या मज़ाल जो हुजूर की शान मे गुस्ताख़ी कर सकूँ, तो वो बोली क्या तुम्हे अच्छा लगता है इधर आना मैने कहा जी बहुत तो वो बोली ठीक है तो तुम आ सकते हो पर रोज नही कभी कभी और हाँ इधर आओगे तो बगीचे को सँवारने मे मेरी मदद भी करनी होगी मैने कहा जी जैसा आप कहें, तो वो भी मेरे सामने वाली बेंच पर आकर बैठ गयी
और बोली तुम इधर के तो नही लगते हो तुम्हारा रंग रूप कुछ अलग सा है , तो मैने कहा जी उस दिन आपको बताया भी तो था कि मैं एक मुसाफिर हू उसने पूछा –कहाँ रहते हो मैने झूठ बोलते हुए कहा कि जी वो जो दूर पहाड़ियाँ है ना उनके पीछे जो डॅम बन रहा है उधर ही काम करता हू, वो बोली इतनी दूर से इधर आते हो मैने कहा जी अब जी इधर ही लगता है तो आ जाता हू
उसने फिर से पूछा- नाम भी होगा कुछ तूहरा,- जी नंदू, अपने आप ही मेरे मूह से निकल गया वो बोली ये कैसा ग़रीबो सा नाम है तुम्हारा नंदू पुराने जमाने वाला , मैने कहा जी अब जो है वो ही है अगर आप चाहे तो आप किसी और नाम से बुला सकती है तो वो बोली नही मैं भी नंदू ही बुलाउन्गी, मैने कहा अगर आपकी आग्या हो तो मैं एक बात पुछु
वो बोली कहो- मैने कहा जी आपका नाम क्या है तो वो मुस्कुराते हुए बोली क्या करोगे मेरा नाम जानकर, मैने कहा जी करना तो कुछ नही है पर अगर नाम पता होता तो ठीक रहता तो वो बोली मेरा नाम दिव्या है और यही कुछ दूरी पर मेरा घर है तुम देखोगे मैने कहा जी ज़रूर तो उसने कहा फिर मेरे पीछे आओ, तो मैं चुप चाप से उसके पीछे-पीछे चलने लगा
करीब 15 मिनिट तक हम खामोशी से पेड़ो के बीच बने कच्चे रास्ते पर चलते रहे, फिर एक झुर्मुट के पीछे से उसने मुझे कहा देखो ये है मेरा घर तो मैने देखा कि एक बेहद ही विशाल सफेद संगमरमर की चमकती हुई इमारत खड़ी थी जिसे देख कर मेरी आँखे चौंधियाँ गयी मैने कहा तो आप इस महल की मालकिन है , तो वो हँसते हुए बोली नही रे,
मैं तो इधर काम करती हू, नौकरानी का तो मालिक लोगो ने इधर ही एक कमरा रहने को दिया हुआ है और इस बगीचे की जो ज़मीन है ये भी बड़ी मालकिन ने मुझे मेरे काम से खुश होकर दी है ये बताते हुए उसकी आँखे गर्व से चमक रही थी मैने कहा पर आप नौकरानी तो लगती नही हो , मेरा मतलब आप इतनी सुंदर है आपके कपड़े इतने अच्छे
तो वो बोली तो तुम भी कॉन सा ड्राइवर लगते हो , मैने कहा पर मैं तो हूँ ही , तो वो तपाक से बोली तो मैं भी नोकरानी ही हूँ, ये सब गहने और कपड़े तो हमारी मालकिन की बड़ी बेटी की उतरन है उनके बड़े शौक है तो मुझे मिल जाते है ये कपड़े पहन ने को तभी मेरे दिमाग़ मे एक सवाल आया मैने कहा और आपके मालिक का क्या नाम है तो वो बोली ठाकुर राजेंदर
ओह ओह तो इसका मतलब था कि इस समय मैं नाहरगढ़ मे खड़ा था , कच्चे रास्ते की भूल भुलैया मुझे ये कहाँ ले आई थी फिर भी मैने कनफार्म करने के लिए पूछा जी आपके गाँव का नाम क्या था वो मैं भूल गया तो वो बोली नाहरगढ़ मे हो तुम इस समय मैने कहा हाँ याद आया काफ़ी अच्छा गाँव है आपका तो वो सवाल करते हुए बोली-तुम कब गये थे गाँव मे
मेरी चोरी पकड़ी गयी थी मैने किसी तरह बात को संभालते हुवे कहा कि जी जब आप का घर ही इतना सुंदर है तो गाँव भी सुंदर होगा इसी लिए बोल दिया वो थोड़ा सा ब्लश करते हुए बोली वैसे बाते बड़ी अच्छी करते हो तो मैने कहा आप भी तो कितनी अच्छी हो थोड़ा थोड़ा सा अंधेरा होने लगा था तो उसने कहा चलो अब मैं चली काम भी करना होगा
मैने कहा जी अच्छा मैं भी चलता हू, कुछ दूर चला ही था कि उसने आवाज़ दी तो मैं मूड गया उसने कहा वैसे मैं हर मंगल , और शनि को इधर शाम को होती हू और पलट कर तेज तेज कदमो से आगे को बढ़ चली और मैं ना जाने क्यो मुस्कुरा पड़ा और फिर मैं भी अपने आप से बाते करता हुआ कार तक आया और फिर अपने गाँव की ओर चल पड़ा
हवेली आया तो मेरा मूड बड़ा ही खुश खुश सा था पुष्पा रसोई मे थी तो मैं उधर ही चला गया और उसको अपनी बाहों मे भर लिया मैने उसको रसोई की दीवार से सटा दिया और उसके लाल लाल होटो पर किस करने लगा वो बोली छोड़िए ना कोई आ जाएगा मैने कहा किसकी मज़ाल जो मेरे और तुम्हारे बीच मे आए और वैसे भी कई दिन हो गये है तुम्हे प्यार नही किया है वो बोली पहले मुझे रसोई का काम समेट लेने दें फिर मैं आती हू आपके पास
तो मैं उसकी गान्ड पर चिकोटी काट ते हुवे बोला थोड़ा जल्दी कर के आना , वो एक आह भर कर ही रह गयी थी मैं आकर बाल्कनी मे डाली कुर्सी पर बैठ गया और दिव्या के बारे मे सोचने लगा कितनी अच्छी थी वो कितनी सुंदर कुछ तो बात थी उसमे जो मेरा मन बार बार उसकी ओर भागने लगा था ये ठंडी हवा क्या संदेशा लेकर आ रही थी मैं समझ नही पा रहा था
क्रमशः.....................
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