RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
मैने मस्ती मे भरकर उन्हे चिपकाते हुए कहा "हां अंकल ... मेरा मतलब
है डॅडी. मुझे बहुत अच्छा लगा. बहुत मज़ा आया. मैने कभी सोचा भी नही
था कि सेक्स के इतने तरह के आनंद हो सकते है"
मुझे पकड़कर अपने पास सोफे पर बिठाते हुए अंकल बोले "अरे अभी तूने देखा
ही क्या है, ये दुनिया बहुत रंगीन है. आज दिन भर तुझे प्यार करूँगा यार"
हम लिपट कर चूमा चाटी करने लगे. दोनो के लंड कस कर खड़े थे. डॅडी
सहसा इधर उधर देखने लगे. कुछ खोज रहे थे, फिर उनकी आँखे दीदी और
मा की उन हाई हिल स्लीपरों पर पड़ी जो उन्होने हनीमून की रात को पहनी थी और
जिन्हे वे घर मे हरदम पहनती थी.
उठाकर वे उन्हे उठा लाए "यही ढूँढ रहा था कि शशिकला ने कहाँ रख दी.
उसे याद था, देखो हमारे सामने वाले टेबल पर ही छोड़ गयी हमारी सहूलियत
के लिए. आ तुझे एक चीज़ दिखाता हू" मा की एक स्लीपर लेकर उन्होने उसे प्यार से
चूमा, लंड पर रगड़ा, फिर उसकी हील पकड़कर खींची. हील अलग हो गयी, उसके
साथ स्लीपर के निचले भाग पर लगी पूरी एक काली प्लास्टिक की परत निकल आई. अब
उनके हाथ मे सिर्फ़ एक पतला सोल और उसपर लगे पतले पतले स्ट्रेप थे.
"ये प्लास्टिक की हील है, प्लास्टिक का ही निचला सोल है. ये हमारे किसी कम का नही,
क्योकि ये नीचे ज़मीन से लगते है. अब जो असली भाग बचा है वह है हमारा
खजाना. यह पहनने वाले के तलवों से लगा रहता है. इसे देख, कितनी प्यारी
और नाज़ुक है. तू समझा ना, यह भाग है जिसमे तेरी मा के तलवों का स्वाद लग
चुका है. अब ज़रा चख के देख"
कहते हुए उन्होने स्लीपर का पँजा मूह मे लिया और दाँतों से एक चोथा
टुकड़ा काट लिया. उसे मूह मे लेकर चूसते हुए बोले "तू भी ट्राई कर. समझ
मे आ रहा है ना? तुझे इसलिए बता रहा हू कि तू भी औरतों की चप्पलो का
रसिक है मेरे जैसा. जिसे इनकी फेटिश है वे मस्ती मे अक्सर सोचते है कि इन्हे
खा जाउ. अब रबड़ या लेदर की चप्पले तो खाई नही जा सकती ना. इसलिए अब इस तरह
के स्लीपर निकाले है. खास इस तरह की मस्ती के लिए"
मैने मा की स्लीपर ली और हील का एक ठुकड़ा तोड़ा मूह मे जाते ही समझ मे आ
गया. ये भी एडाइबॉल स्लीपर थी, इन्हे भी खाया जा सकता था, वही स्वाद, बस मा के
पैरों की खुशबू से और मस्त हुआ स्वाद था. मेरा सिर चकरा गया.
मेरी खुशी पर हँसते हुए डॅडी बोले "ये हमारा आज का स्नैक मैने इन्हे कहा
था कि तीन चार दिन पहनो, फिर स्वाद आएगा."
मेरा लंड अब तन कर उछल रहा था. मा और दीदी की वे खूबसूरत स्लीपरे सिर्फ़
देखने, चूमने और चाटने की नही थी, उन्हे खाया भी जा सकता था. मैं
मस्त हो गया. डॅडी ने मा की दूसरी स्लीपर की हील भी निकाल दी. मैने शशिकला
की स्लीपरों को सोल से अलग किया. उन्हे सूँघा और चाटा. लग रहा था कि अभी खा
जाउ, लंड बहुत तकलीफ़ दे रहा था.
"अभी नही अनिल, जब मस्ती मे आपस मे काम करेंगे तब खाएँगे. इन्हे मूह मे
भरके गान्ड मारने मे या मरवाने मे बहुत मज़ा आता है. पिछले महीने
मे ही पहली बार शशिकला ऐसी स्लीपरे लाई थी. मज़ा आ गया अनिल, मेरी बेटी की
स्लीपर मेरे मूह मे थी और मैं उसकी गान्ड मार रहा था. खाने मे आधा घंटा
लगा, ये काफ़ी मोटी होती है, उस आधे घंटे मे स्वर्ग हो आया मैं. दूसरी स्लीपर
शशिकला ने मेरे मूह मे अगले दिन दी जब वह डिल्डो से मेरी मार रही थी. जब
तुम्हारी मा से उसका चक्कर चालू हुआ, तभी से उसने तुरंत दो दर्जन
मँगवा कर रखी है, उसे मालूम था कि मुझे लगेंगी. अब तेरे भी काम आएँगी,
तू भी मेरी तरह ही भक्त निकला लेडीज़ स्लीपरों का"
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