RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
मा मुस्करा दी "बिलकुल करो अशोक, मैं कब की समझ गयी थी, जिस तरह से तुम
अनिल को देखते थे उससे मुझे इसका अंदाज़ा हो गया था. अनिल मेरा बेटा है और
मुझे बहुत अच्छा लगा कि वो इतना खूबसूरत है कि तुम्हे भी अच्छा लगता
है. मैं चाहती हू कि आज तुम अपने मन की हर मुराद पूरी कर लो. अनिल, तुझे
अंकल ... मेरा मतलब है डॅडी अच्छे लगते है ना? मैं चाहती हू कि तुझे
भी हर तरह का यौन सुख मिले, जैसा मुझे मेरी बेटी के साथ मिला"
मैं थोड़ा शरमा रहा था. अंकल मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे खा जाएँगे.
उनकी निगाहों मे बेहद प्यार और वासना थी. मैं बोला "हाँ मा, अंकल बहुत
हॅंडसम है, मुझे मंजूर है अगर वे मुझसे भी .... मैं तैयार हू."
अंकल ने खुश होकर मुझे और मा को पकड़ा और सोफे पर बैठ गये. उनके एक
तरफ मा थी और एक तरफ शशिकला. मुझे उन्होने गोद मे ले लिया. "ये सब से
छोटा है, मेरी गोद मे बैठेगा." उनका खड़ा लंड मेरी पीठ पर दब गया. वे
बारी बारी से हम तीनों को चूमने लगे. कभी मा के होंठ चूमते, कभी
अपनी बेटी के और कभी बीच मे मेरे होंठ अपने होंठों मे लेकर किस
करने लगते. मेरे तने लंड पर उनका पूरा ध्यान था, उसे वे मुठ्ठी मे
पकड़कर धीरे धीरे उपर नीचे कर रहे थे.
चूमाचाटी के साथ साथ हमारी वासना बढ़ती गयी. हम चारों आपस मे
लिपटे थे. कोई किसी को किस करने लगा, कोई किसी को. सबके हाथ उन मुलायम
स्तनों और जांघों पर घूम रहे थे. मैने बीच मे हाथ पीछे करके अंकल
का लंड पकड़ लिया. एकदम लोहे के डंडे जैसा सख़्त हो गया था.
बीच मे मेरा हाथ मा की ब्रा पर लगा. बहुत मुलायम ब्रा थी, लगता था जैसे
पतले रबड़ की बनी हो. मैने शशिकला की पैंटी को छुआ तो वो भी वैसी ही थी.
मैने पैंटी उतारने की कोशिश की तो शशिकला ने मेरे हाथ पर चपत मार दी.
मा के मूह से मूह अलग करके बोली "हाथ मत लगाना! ये अभी नही उतरेगी."
मैने चुदासी से व्याकुल होकर कहा "आज नही उतारोगी दीदी तो कब उतारोगी? आज की
रात का तो मैं कब से इंतजार कर रहा हू!"
शशिकला ने जवाब दिया. "जब भूख लगेगी तब उतरेगी ये. पर तू फिकर मत कर,
तेरे काम के लिए इसे उतारना ज़रूरी नही है, खास इसीलिए तो पहनी है ये तंग
स्टाइल की पैंटी, देख!" और उसने पैंटी की पत्ती हाथ से अलग करके दिखाई. सच
मे इतना सी पत्ती थी, रीबन जैसी कि दो इंच खिसकते ही शशिकला दीदी की बुर
दिखने लगी.
"देखा?" मुस्काराकर दीदी बोली "काम रुकेगा नही हमारा. मम्मी की भी ऐसी ही
है"
डॅडी ... अशोक अंकल...अब तक व्याकुल हो गये थे. मा को उठाकर बिस्तर पर ले
जाते हुए बोले "डार्लिंग, पहले ज़रा स्वाद तो चखा दो अपने अमृत का, हफ़्ता हो
गया. मैं तो तरस गया इस शहद के लिए"
मा ने लेटते हुए अपनी टांगे फैलाई और बड़ी शोख अदा से अपनी पैंटी की
पत्ती बाजू मे की "लो अशोक, जितना चाहे पी लो मेरा रस. हफ्ते से जमा हो रहा
है इस अमृत कुंड मे, सब तुम्हारे लिए है, सुहागरात की भेंट मेरे प्यारे पति
को"
अशोक अंकल तुरंत मा की बुर मे मूह डाल कर पेट पूजा मे जुट गये.
मैने भी शशिकला दीदी की बुर से मूह लगा दिया. इन कुछ दिनों मे न झड़ने
से उसका रस और गाढ़ा हो गया था, चासनी की तरह रिस रहा था.
दस मिनिट दीदी की बुर चूसने के बाद मुझसे नही रहा गया. मैं उठकर
उसपर चढ़ गया. वह हंस कर मुझे बाहों मे लेती हुई बोली "इतने मे ही
पेशंस चला गया मेरे भैया! चलो कोई बात नही, आओ, चोद लो पर एक बात.
झड़ना नही! झड़ने के लिए मैं कहूँगी तुझे एक खास मौके पर. अपनी इस
मलाई को बचा कर रख ज़रा. डॅडी...आप तैयार है ना?"
अशोक अंकल भी मा की जांघों के बीच बैठकर अपना जंघिया उतार रहे थे.
"डॅडी, भूल गये, मैने उतारने को मना किया ना था? सामने के फ्लैप मे से
निकाल लीजिए ना, उतारने की ज़रूरत नही है. मैं उतरवाउन्गा जब मुहूरत आएगा"
अशोक अंकल ने बड़ी मुश्किल से जंघीए के फ्लैप मे से अपना लंड निकाला. वह
इतनी ज़ोर से खड़ा हो गया था कि मूड कर फ्लैप मे से निकल ही नही रहा था. किसी
तरह मा की मदद से उन्होने आख़िर लंड निकाला और तुरंत मा की बुर मे
घुसेड कर उसपर लेट कर अपने अंदाज मे चोदने लगे. शशिकला ने प्यार से
मेरा लंड बाहर निकाला और खुद ही अपनी चूत मे डाल लिया. मैं शशिकला को
चोदने लगा.
हनीमून की इस चुदाई मे मज़ा आ रहा था. पर मुझे बार बार लग रहा था कि आज
कुछ खास होगा, ऐसी चुदाई तो हमने कई बार की थी.
कुछ देर बाद जब मैं झड़ने को आ गया तो शशिकला ने मुझे रोक दिया. अशोक
अंकल से बोली " क्यो डॅडी? चोदते ही रहेंगे या आगे भी कुछ करेंगे? हम
लोगों को भी आना है आप दोनों के साथ"
डॅडी हाम्फते हुए बोले "हा बेटी, अब आ जाओ, तुम्हारी मम्मी आज बला की
नमकीन है, मैं झाड़ जाउन्गा. चूत मैं बहुत चोद चुका, अब उसे आराम देना
चाहता हू कि बाद मे चूस सकु. मेरी जान ..." मा को वे बोले "अब ज़रा गान्ड मार
लेने दो प्लीज़, आज की हनीमून की रात मे तुम्हारी गान्ड मारने मे बहुत मज़ा
आएगा."
"आप गान्ड मारिए डॅडी, मैं रीमा मम्मी की चूत चूसति हू." शशिकला
उठाकर मा के पास जाकर सो गयी.
मा उसे बाहों मे लेकर बोली "आ जा बेटी पर दूसरी तरफ से आ. मुझे प्यासा
रखेगी क्या? मुझे भी तो ज़रा शहद चखने दे अपने बदन का"
शशिकला चित लेट गयी. मा उसपर उलटी तरफ से लेट गयी. शशिकला ने
जंघे खोलकर मा का सिर उनके बीच ले लिया और अपनी बुर पर उसका मूह दबा
लिया. खुद उसने मा की जंघे फैलाई और प्यार से उंगलियों से मा की बुर
खोलकर चाटने लगी. "बढ़िया माल बनाया है आज मम्मी ने, मुझे तो घंटे
भर की फुरसत हो गयी डॅडी. चलिए आप अपने मन की कर लीजिए."
मई लंड हाथ मे लिए बाजू मे बैठा था. समझ मे नही आ रहा था की क्या
करू. मुझे देखकर शशिकला मुस्काराई "धीरज रखो मुन्ना भैया. अभी
तेरा और डॅडी का साथ मे इंतज़ाम कर देती हू. तू डॅडी की मदद कर मा की
गान्ड मारने मे. पहले जाकर वहाँ फ़्रिज़ मे से वो सफेद कृमि बटर का डिब्बा ले
आ. आज से अब क्रीम के बजाय मख्खन लगाया जाएगा चुदाई के लिए. क्रीम मूह मे
जाती है तो बड़ा कड़वा मूह हो जाता है. और आज तो अब मम्मी के बदन की हर
जगह का स्वाद लेना है"
|