RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
मेरा लंड फनफना रहा था. मैं शशिकला पर चढ़ गया. उसकी गान्ड मे
लंड पेला तो लंड एक बार मे पूरा धँस गया. गान्ड क्या थी, नरम नरम चूत
थी. आख़िर अंकल के उस मूसल से रोज मरवाती थी. मैं शशिकला पर लेट गया और
उसके स्तन हाथ मे लेकर गान्ड मारने लगा "अरे यह तो शुरू भी हो गया! बड़ी
चालू चीज़ है मम्मी तुम्हारा बेटा. मेरे डॅडी देखो अब तक वैसे ही बैठे
है" शशिकला चहकि.
मा कराहती हुई बोली "अरे बैठे है पर लंड को देखो कैसे मुठिया रहे है,
मेरी गान्ड मे उपर नीचे कर रहे है, क्या कंट्रोल है इनका, मान गयी अशोक
मैं तुझे"
"मम्मी, बस थोड़ा खेल रहा था आपकी इस लाजवाब गान्ड से, अब मारता हू. आपकी
गान्ड की ऐसी सेवा करूँगा कि आप को शिकायत का मौका नही आएगा" अंकल बोले और
मा पर लेट कर उसके मासल बदन को बाहों मे भरकर गान्ड मारने लगे.
अगले आधे घंटे मे मैने खुद देख लिया कि वे क्या मँजे खिलाड़ी थे. गान्ड
मारने का वह मानों एक तजुर्बा था, हर तरह से उन्होने मा की मारी.
कभी धीरे धीरे प्यार से, बस एक इंच अंदर बाहर करके. कभी धीरे धीरे पर
पूरे लंड के साथ, धीरे धीरे अपना लंड सुपाडे तक बाहर खींचते और फिर धीरे
से अंदर गाढ देते. साथ साथ मा की चूंचियाँ दबाते जाते और उसके कंधों
और बालों को चूमते जाते. कभी अचानक ज़ोर से मारने लगते, वहशी की तरह
सपासप अपना लंड मा की पूरी गान्ड मे तेज़ी से अंदर बाहर करते. जब मा
छटपटा उठती तो एकदम धीमे होकर मा की बुर को उंगली से मस्त करने
लगते. बीच मे मा के चूतड़ पकड़ लेते और आपस मे दबाकर फिर मारते जिससे
मा की गान्ड उनके लंड के आस पास और कस जाती.
मा तीन चार बार झड़ी. वह लगातार कराह और सिसक रही थी जैसे कोई उसे रेप करा
हो. पर मुझे समझ मे नही आया कि दर्द से कराह रही थी या मस्ती से. शायद
दोनों. कभी मा अंकल को रुकने को कहती "बस अशोक, प्लीज़, अब नही, बहुत
दुख रहा है, मैं मर जाउन्गि, सच मे अशोक, निकाल लो ना, मेरी कसम" और कभी
ज़ोर से चोदने को कहती "हे अशोक, और ज़ोर से चोदो ना प्लीज़, मैं मर जाउन्गि,
बहुत अच्छा लग रहा है, प्लीज़ मुझे झड़ो ना प्लीज़" पर मा ने कभी
मुझे नही कहा कि अनिल मेरे बेटे, मुझे बचा या अंकल को रोक. मैं उसीसे
समझ गया कि मा मज़े मे है.
मैने भी शशिकला की मखमली गान्ड का पूरा आनंद लिया. गान्ड ढीली होने से
मैं सतसत मार रहा था, गान्ड मे लंड ऐसे चल रहा था जैसे गान्ड न हो,
चूत हो, शशिकला बीच बीच मे गान्ड सिकोड लेती, बला की कलाकार थी, अपनी ढीली
गान्ड को कस लेती और मेरे लंड को ज़ोर से पकड़ लेती. पर अंकल ने यह काम अच्छा
किया था कि मेरे लंड को क्रीम लगा दी थी, मेरा लंड उसकी गुदा की पकड़ाई मे
नही आता था, फिसलता रहता, नही तो मैं ज़रूर दो मिनित मे झाड़ जाता.
मैं आख़िर झाड़ ही गया, पंद्रह मिनित से ज़्यादा मैं इसे मीठे आनंद को नही सह
पाया. पर बाद मे पड़ा पड़ा मा की गान्ड मारी जाती हुई देखता रहा. अंकल ने
पूरी जान लग दी, आधा घंटा नही झाडे और लगातार मारते रहे, साथ ही मा की
चूत मे पूरे समय उंगली करके मा की मूठ मारते रहे. आख़िर मा ने
झाड़ झाड़ कर सिर डाल दिया और लस्त हो गयी तब अंकल झाडे.
दस मिनित सब पड़े रहे जैसे जान निकल गयी हो. फिर अंकल और मैं उठे. लंड
एकदम साफ थे, पूरा वीर्य उन प्यासी गान्डो ने सोख लिया था. मेरा कुछ वीर्य
शशिकला की गुदा मे दिख रहा था पर मा का गुदा एकदम साफ था, बस खुल
गया था लाल मूह जैसा. बहुत गहरे जाकर अंकल ने वीर्य छोड़ा था, शायद मा के
पेट मे गया होगा सीधा.
कुछ कहने की ज़रूरत नही थी. हम सब एक दूसरे को लिपटाकर सो गये, इतने
थक गये थे पता ही नही चला कि कब नींद लग गयी.
रविवार सुबह सब देर से उठे. सुबह सुबह कोई चुदाई नही हुई. नौकर आ गया
था. मा और शशिकला नहाने और तैयार होने मे लग गये. ब्रांच करके
नौकर को छुट्टी दे दी गयी. मुझे लगा कि अब फिर खेल शुरू होगा. पर
शशिकला ने मा को तैयार होने को कहा. "चलो मम्मी, यहाँ माल मे होकर
आते है. बहुत अच्छी कलेक्शन है वहाँ लिंगरी की. मैने कुछ देख रखी है
तुम्हारे लिए, डॅडी ने भी कैटालोग देखकर तुम्हारे इस गदराए बदन के लिए
कुछ स्टाइल पसंद की है, अब तो उनकी पसंद की लेना ही पड़ेंगी, आख़िर तुम्हारे
पति बनने वाले है"
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