RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
मैं क्या कहता, मुझे दीदी ने बहुत तड़पाया था पर सुख भी उतना ही दिया
था. मैं उसका एक मुलायम स्तन मूह मे लेकर चूसने लगा.
"चलो अब नहा लेते है, फिर आराम करेंगे." शशिकला ने कहा.
मा बोली "देख, मेरी बुर मे कितना वीर्य भर गया है, बेकार जाएगा, मैं अशोक
का लंड चूस लेती तो सब मुझे मिल जाता"
"तुम्हारे नही, यह मेरे भाग्य मे था मम्मी. और तेरे बेटे की जो मलाई है
मेरे अंदर वो तेरे लिए है, ज़रा चख ले, बेटी और बेटे का मिला जुला रस" कहकर
शशि उठाकर मा के पास गयी और डॅडी को उठाकर मा पर सिक्सटी नाइन के
अंदाज मे लेट गयी. मा समझ गयी और शशि की बुर से बह रहे मेरे वीर्य को
चाटना शुरू कर दिया. शशि तो पहले ही मा की बुर से चूस चूस कर अपने
डॅडी की मलाई खा रही थी.
हम सब नहाने लगे. बहुत थक गये थे पर खुश थे. सब ने एक दूसरे को
साबुन लगाया. साबुन लगाते समय मेरा हाथ एक बार अशोक अंकल के लंड पर पड़
गया. वह आधा खड़ा हो गया था. बड़ा अजीब सा लगा. मैने हाथ हटा लिया, वे
भी कुछ नही बोले, बस मुझे देख कर हंस दिए.
नहाने के बाद हमने आराम किया. रात के दो बज गये थे. आपस मे लिपट कर
हम सो गये. मा और शशि लिपट कर सोई थी और एक तरफ से मैं और एक तरफ से
अशोक अंकल उन्हे चिपटे थे.
सुबह उठे तो लंड ऐसे मस्त तन्नाए थे कि हमने तुरंत एक चुदाई कर ली. मैं
दीदी पर चढ़ गया और अंकल फिर मा पर सवार हो गये. यह बड़ी मीठी हौले
हौले मज़ा ले कर की गयी चुदाई थी. तृप्त होकर हम उठ बैठे.
चाय नाश्ते और नहाने मे दो तीन घंटे लग गये. तब तक मैने घर का
चक्कर लगाया. बड़ा आलीशान घर था. मुझे उत्सुकता थी शशिकला का
बेडरूम ठीक से देखने की. जब तक बाकी सब लोग तैयार हो रहे थे, मैने
शशिकला का वार्डरोब खोल कर देखा. एक से एक ड्रेस वहाँ थी. मेरा ध्यान
उसकी ब्रा और पैंटी पर था. शशिकला के पास चालीस पचास जोड़े थे, एक से एक
खूबसूरत. उन तरह तरह की ब्रा और पैंटी को देखकर ही मेरा लंड खड़ा हो
गया. लग रहा था कि उनसे खेलने लग जाउ, लंड मे लपेट लू पर शायद वहाँ
बाकी के लोग मेरा इंतजार कर रहे होंगे यह सोच कर मैने कोई गड़बड़ नही
की.
अब मैने शशिकला के सॅंडल रखने के रैक को खोला. वहाँ बीस पचीस
संडलों के और स्लीपरों के जोड़े थे. एक से एक खूबसूरत सॅंडल थे. मेरा
उछलने लगा. ऐसा लग रहा था जैसे अलादीन का खजाना देख रहा होऊ.
मुझसे नही रहा गया. सफेद रुपहले रंग की एक नाज़ुक सॅंडल मैने हाथ मे
ली और उसपर उंगलियाँ फेरी. बहुत मुलायम और चिकने सोल थे. नाक के पास ले
जाकर मैने सूँघा, शशिकला के शरीर की सौंधी सौंधी खुशबू आ रही
थी. मन न माना तो मैने जीभ निकालकर सॅंडल के पत्ते और पैर रखने का
चिकना भाग चाट लिया.
किसी ने मेरे कान पकड़कर मरोड़े तो घबरा कर मैने सॅंडल वापस रखी.
देखा तो शशिकला थी, शैतानी से मुस्करा रही थी. "क्या कर रहा है रे
बदमाश? मेरी चप्पलो से खेल रहा है? खानी है क्या? खिलाऊ?"
मैं चुप रहा. बड़ी शरम आ रही थी. लंड बैठने लगा तो शशिकला ने हाथ
मे पकड़ लिया. फिर से बोली "शरमाता क्यों है? किस कर रहा था ना? बोल
खाएगा क्या? मैं खिलाउन्गि अपनी चप्पल तुझे" और एक रबर की चप्पल
उठाकर धीरे से मेरी पीठ पर जड़ दी. "वैसे भी खिलाउन्गी ..." और फिर उसे मेरे
मूह से सटा कर बोली "और ऐसे भी खिलाउन्गी"
फिर मुझे चूम कर बोली "शौकीन लगता है इनका, सच बोल. डॅडी भी शौकीन
है, घबरा मत, वैसे सच मे तुझे इसमे मज़ा आता है?"
"हाँ दीदी, मैं मा की चप्पलो का भी दीवाना हू, उसके पैर इतने खूबसूरत
है. और दीदी तुम्हारे तो और भी प्यारे है, कल से मुझे लग रहा है कि तुम्हारे
पैरों को चुमू, उन प्यारे संडलों को चाटू" मैने सिर नीचे करके बता
दिया.
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