RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
अशोक अंकल तारथराते स्वर मे बोले. "आंटी, आप के ये मम्मे चूसने का
मन हो रहा है. इतने फूले हुए मुलायम और गुदाज मम्मे मैने कभी नही
देखे, और ये निपल! इतने मोटे, जामुन जैसे और ये गोले, आप के मम्मे तो सिर्फ़
चूसने को बने है मम्मी."
मा अपनी छाती उनके मूह के पास ले आई. वे जब उसपर लपके की मूह मे लेकर
चूस सके तो मा खिलखीलाकर पीछे हो गयी. "अभी नही अशोकजी, पहले अपनी
मलाई खिलाइए हमे. मैं भी आपको शहद चखाउन्गि. बहुत अच्छा है, मैं
फालतू मे घमंड नही कर रही हू, मेरा बेटा और आपकी बेटी, दोनों दीवाने
है इसके." कहते हुई मा ने एक पैर उठाकर अशोक अंकल बैठे थे उस कुर्सी
के हत्थे पर रख दिया. अब उसकी चूत खुलकर साफ दिख रही थी. चूत ठीक
अशोक अंकल के मूह के पास थी.
घने काले बालों मे घिरी मा के वह लाल रिसति बुर देखकर उनका जो हाल
हुआ, वह देखते ही बनता था. बेचारे लपक कर मा की जांघों के बीच मूह
डालने की कोशिश करने लगे. मा हंस कर पीछे हो गयी, उनके बालों मे
उंगलियाँ चलाती हुई बोली. "रुक जाइए अशोकजी, मैं कही भाग थोड़े ही रही हू,
आपको बहुत सा शहद चखाना चाहती हू, अभी बन तो जाने दीजिए, आपकी
बेटी ने जितना था, सब ले लिया है, पर आपको मैं तरसाउन्गि नही, लीजिए, चख
लीजिए स्वाद कैसा है"
मा ज़रा सा आगे हुई, बस इतना की अशोक अंकल की जीभ उसकी बुर तक पहुँचे.
अशोक अंकल की जीभ की नोक मा की बुर से छूटे रस से लगी और वे आँखे बंद
करके लंबी साँसे लेते हुए उसे चखने लगे. मा ने बड़े प्यार से उनके सिर
को पकड़कर उन्हे कुछ देर बुर चटाई और फिर अलग हो गयी.
"मम्मी, दीदी .... प्लीज़, मत तरसाओ मुझे" अशोक अंकल बोले. मा कुछ नही
बोली, मुस्काराकर उनके सामने नीचे बैठ गयी. उसकी आँखे अब अशोक अंकल
के फनफनाते लंड पर टिकी थी. "कितना अच्छा और जानदार है. शशि तूने तो
बहुत मज़ा किया होगा अपने डॅडी के साथ, क्या करती थी इसके साथ? चुसती तो
ज़रूर होगी!"
|