RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
"सारी की कोई बात नही, मेरी बेटी की चूत है ही इतनी रसीली, पर अनिल, तुम्हारी मा
की चूत ज़रूर पकवान होगी पकवान, शशि कैसे मूह मार रही है देखो. और
मुझे अंकल कहो बेटे, अब फारमलिटी का कोई मतलब नही है. शशिकला को तुम
दीदी कह सकते हो, अगर तुम्हारी मा उसे बेटी कहती है तो यही रिश्ता हुआ.
वैसे तुम्हारी इस दीदी की बुर चोदने मे, चूसने मे तुम्हें बहुत मज़ा आएगा"
उन्होने कहा
"अंकल आप का मा से क्या रिश्ता है इस हिसाब से?" मैने शैतानी से पूछा. अशोक
अंकल अपनी कुर्सी मे धीरे धीरे उपर नीचे होकर अपने लंड को मुठियाने की
कोशिश कर रहे थे. मेरी ओर देखकर बोले "मैं भी उन्हें मम्मी कहना
चाहता हू, उमर मे बड़ी औरतें मेरे लिए देवी माता जैसी है. वैसे उनकी
उमर मेरी दीदी जितनी है पर वे मानें तो मैं उन्हें मम्मी या आंटी कहना
ज़्यादा पसंद करूँगा. ओह ओह वहाँ देखो अनिल, मेरी बेटी कैसे तुम्हारी मा के
स्तन गूँध रही है और उनकी चूत से मूह लगाए पड़ी है. क्या लकी लड़की
है"
हम दोनों मा और शशिकला की रति क्रीड़ा देखने लगे. उनका सिक्सटी नाइन
पूरे निखार पर था. मा नीचे थी और शशिकला उसके उपर उलटी बाजू से
चढ़ि थी. मा के सिर को जांघों मे दबाकर मा के मूह को चोद रही थी,
साथ ही अपना मूह उसने मा की टाँगों के बीच डाल दिया था. मा अपनी टाँगे
हवा मे उठाकर हिला रही थी, शशिकला के सिर को फ़ुटबाल की तरह जकाड़कर
मसल रही थी.
आख़िर एक दो बार झड़कर मा और शशि सुसताने लगी. मैने मा से मिन्नत की
"मा, प्लीज़ हमे अब मत तरसाओ. खोल दो ना"
"क्यों रे क्या हो गया? मा का स्वाद तो इतनी बार लिया है, आज ज़रा सब्र कर"
शशिकला मुझे चिढ़कर बोली.
मैं न रुक सका "दीदी, मैं तो आपके बारे मे सोच रहा था, आपका स्वाद मैं कब
चख सकूँगा इसके बारे मे सोच सोच कर मैं पागल हो रहा हू"
शशिकला उठकर मेरे पास आई. सामने से उसका नग्न शरीर मैने पहली
बार ठीक से देखा. उसके स्तन मा से काफ़ी छोटे थे पर एकदम सेब जैसे गठे
हुए थे. निपल छोटे किसमिस के दानों जैसे थे. और जांघों के बीच का त्रिकोण
एकदम चिकना था. किसी बच्ची जैसी दिख रही वह फूली गोरी बुर ऐसी लग रही थी
कि लगता था कि चबा चबा कर खा डालु.
शशिकला ने मेरे लंड को पकड़कर हिलाया और मेरी आँखों मे आँखे डाल
कर बोली. "और एक दो घंटे रुकना पड़ेगा अनिल, मैं देखना चाहती हू कि
तुझमे पेशंस कितनी है, इस खेल मे पेशंस ज़रूरी है पूरा मज़ा लेने के लिए.
है ना डॅडी? मा तो डॅडी को रात रात भर सताती थी ऐसे ही"
उसके हाथ के कोमल स्पर्श से मेरा लंड उछलने लगा. वह हंस दी, दो
उंगलियों से सुपाडे को घेर कर दबाने लगी. मेरी आँखों मे देखते हुए
वह शैतानी से हंस रही थी.
"अरे शशि, न सता उसे बेटी, बेचारा वैसे ही परेशान है तेरे इस बदन को
देखकर" मा ने शशिकला को समझाया पर वह मुस्कराती हुई मुझे
तड़पाती ही रही. जब मैं झड्ने को आ गया तो हाथ हटाकर उठ खड़ा हुई.
अपने स्तन को मेरे गालों से एक बार लगाकर वह मा के पास चली गयी.
"बहुत मज़ा आता है दीदी मुझे तो, और झूठ मत बोलो, तुम्हे भी आता होगा. हर
औरत को आता है अपने गुलामों को ऐसे तड़पाने मे. जाओ मम्मी, तुम भी
डॅडी को थोडा परेशान करके आओ, बेचारे तब से तुम्हारे इस बदन को देख
देख कर पागल हुए जा रहे है" शशिकला मा की जांघों मे अपना हाथ
डालकर बोली.
मा मूड मे थी. उठाकर अशोक अंकल के पास गयी और उनके सामने खड़ी हो
गयी "सच है क्या अशोकजी? मैं सच मे आपको अच्छी लगती हू?" थोड़े
छेड़खानी के अंदाज मे मा ने कहा. अशोकजी पास से मा के रूप को एकटक
देख रहे थे. कभी वे नज़र उठाकर मा के उन विशाल स्तनों को देखते और
कभी उनकी नज़र नीची होकर मा के पेट के नीचे के बालों मे जा टिकती.
"रीमाजी आप परी है, बस अपने इस दस पर कृपा कीजिए, मैं सह नही पाउन्गा
ज़्यादा देर" अशोक अंकल तड़प कर बोले. उनका लंड अब फिर से उपर नीचे हो रहा
था, जैसा मुठियाते वक्त होता है.
"कितना प्यारा है, पर बहुत बड़ा है. बाप रे, किसी बच्चे के हाथ जैसा है
आपका यह हथियार. मुझे तो मार ही डालेगा." मा ने अपने होंठो पर जीभ
फेरकर अशोक अंकल के लंड को धीरे से मुठ्ठी मे ले लिया और सहलाने लगी.
"कैसा उछल रहा है, नाग की तरह फूफकार रहा है, काट खाएगा लगता है"
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