RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
मा की उस सिसकी मे जो मादकता थी उससे मैं उत्तेजित हो उठा. मैं समझ गया
कि कौनसी बिल्ली थी और क्या कर रही थी. कई बार मैने खुद मा के मूह से ऐसी
आवाज़ सुनी थी, जब वह ज़ोर की झड़ती थी. मा के नंगे बदन को आँखों के
सामने ला कर वही जंगल मे जाकर मूठ मारी तब शांति मिली. बुरा भी लगा,
मा के लिए मैं अपनी वासना बचा कर रखना चाहता था, कि जब सोमवार को
मिलू तो ऐसे चोदु की मिन्नते करने लगे पर कोई चारा नही था, मा और
शशिकला के बारे मे सोच सोच कर लंड पागल सा हो गया था.
उसके बाद न मैने फ़ोन किया न मा ने. मैं रविवार रात घर पहुँचा, थका
था इसलिए तुरंत सो गया.
सोमवार सुबह नींद तब खुली जब मा ने चाय के साथ जगाया. सूरज चढ़
आया था और नौ बज गये थे.
मा को देखकर मैं खुशी से झूम उठा "अरे मम्मी, तुम कब आई? मुझे
लगा सीधे शाम को आओगी. बेल भी नही बजाई" मैने उससे लिपट कर पूछा.
"अभी आठ बजे आई हू बेटे, शशिकला को सुबह सुबह दिल्ली जाना था इसलिए
मैं भी निकल आई. वह होती तो शायद आज भी नही आती, वह आने ही नही देती
मुझे. मेरे पास चाबी थी इसलिए बिना बेल बजाए दरवाजा खोल कर आ गयी कि
तेरी नींद न खुले."
मैने मा को देखा. वह एकदम खुश लग रही थी. उसकी आँखों मे एक असीम
तृप्ति और कामना के मिले जुले भाव थे. काफ़ी ताकि भी लग रही थी, जैसे सोई न
हो.
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