RE: non veg story एक बार ऊपर आ जाईए न भैया
सुबह जब मेरी नींद खुली तब मुझसे पहले हीं वो मड़वाड़ी दमपत्ति ऊठ चुका था। गुड्डी मेरे साथ हीं उठी, मुझे देख कर मुस्कुराई और मेरे नीचे उतरने से पहले हीं उठ कर बाथरूम की तरफ़ चली गई। उसकी मम्मी अपने बाल कंघी कर रही थी, जबकि उसके पापा हमारे बर्थ के सामने वाले बर्थ पर नीचे बैठे थे और हमारी बर्थ की तरफ़ देख रहे थे। स्वीटी अपने बाँए बाँह को मेरे सीने से लपेते हुए थी। उसके एक पैर मेरे कमर को लपेटे हुए था और वो अभी भी बेसुध सोई थी। इस तरह सोने से उसकी नाईटी उसके आधे जाँघ से भी उपर उठ गई थी और गुड्डी का बाप मेरी बहन की नंगी जाँघों को घुर रहा था। मैंने स्वीटी की पकड़ से अपने को आजाद किया और फ़िर हल्के से उठ कर घड़ी देखा। ६:३० हो चुका था, और डब्बे में हलचल शुरु हो गया था। मुझे जागा देख कर उस माड़वाड़ी ने मुझे "गुड-मार्निंग" कहा, मैंने भी जवाब देते हुए नीचे उतरा। पेशाब जोरों की लगी हुई थी, सो मैं अपना ब्रश-टौवेल ले कर टायलेट के तरफ़ चला गया। लौट कर आया तब तक स्वीटी भी जाग गई थी, और मुझसे नजर भी नहीं मिला रही थी। मेरा भी यही हाल था। रात की सारी चुदाई याद आ रही थी। गुड्डी को इस सब से कोई फ़र्क नहीं पड़ा था। वो मुस्कुराते हुए बोली, "रात अच्छी कटी...है न?" मैं कुछ बोलूँ उसके पहले ही उसके पापा ने कहा, "रात कौन कराह रहा था....हल्के हल्के किसी लड़की की आवाज थी...आआह्ह आअह्ह्ह जैसा कुछ...मुझे लगा कि रीमा (गुड्डी की मम्मी) की आवाज है, सो एक बार उसकी तरफ़ घुम कर देखा भी, पर वो तो नींद की गोली ले कर सोई थी। फ़िर मुझे भी नींद आ गई...."।
गुड्डी मुस्कुराते हुए बोली, "अरे नहीं पापा, मुझे भी लगा था आवाज, देखी कि कम जगह की वजह से स्वीटी, भैया से दब जाती थी... तो वही कराहने जैसा आवाज हो जाता था। फ़िर शायद दोनों को एक साथ सोने आ गया तो फ़िर वो लोग शान्ति से सोए रात भर.।" वो साली छिनाल, स्वीटी मेरे नीचे दब कर कराह रही थी कह रही थी, और अपना नहीं सुना रही थी खुद कैसे कुतिया वन कर चुदी और कैसी-कैसी आवाज निकाल रही थी। रीमा जी भी बोली, "हाँ दो बड़े लोग को एक बर्थ पर सोने में परेशानी तो होती ही है..."। मुझे यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि ये दोनों कैसे माँ-बाप हैं कि बेटी जिस बर्थ पर सोई, उसके सामने वाले बर्थ पर जागी, और वो दोनों हम भाई-बहन की बात कर रहे थे...चूतिये साले।
गुड्डी ने उन सब से नजर बचा कर मुझे आँख मार दी। खैर थोड़ी देर ग्प-शप के बाद हम सब से नाश्ता किया और फ़िर स्वीटी बोली, "सलवार-सूट पहन लेते हैं अब...", पर उसकी बात गुड्डी ने काट दी, "करना है सलवार-सूट पहन कर.. ऐसे आराम से जब मन तब ऊपर जा कर सो रहेंगे, इतना लम्बा सफ़र बाकि है।" इसके बाद मेरे से नजर मिला कर बोली, "रात में तो फ़िर नाईटी हीं पहनना है, इसमें खुब आराम रहता है, जैसे चाहो वैसे हो जाओ...इस तरह का आरामदायक कपड़ा लड़कों के लिए तो सिर्फ़ लूँगी ही है", फ़िर मुझसे पूछी, "आप लूँगी नहीं पहनते?" मुझे लगा कि अगर मैं थोड़ी हिम्मत करूँ तो साली बाप के सामने चूदने को तैयार हो जाएगी। मैंने बस हल्के से अपना सर नहीं में हिला दिया।
फ़िर सब इधर-उधर की बात करने लगे।
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