Desi Sex Kahani होता है जो वो हो जाने दो
10-09-2018, 03:36 PM,
#76
RE: Desi Sex Kahani होता है जो वो हो जाने दो
विनीत की भाभी बहुत ही काली औरत थी उसकी काम की प्यास कभी बुझती ही नहीं थी कुछ देर के लिए जरूर शांत हो जाती थी और राहुल भी अभी नया नया जवान होता लौंडा था उसकी काम पिपासा तो अभी-अभी उभरना शुरू हुई थी इसलिए एक के बाद एक कामसूत्र के हर आसन को आजमाते हुए आगे बढ़ता ही जा रहा था। राहुल धक्के पर धक्के लगाए जा रहा था और विनीत की भाभी भी जवाबी कार्रवाई मे अपनी भरावदार गांड को पीछे की तरफ ठेल ठेल कर लंड ले रही थी। बड़ा ही कामुक नजारा बना हुआ था ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई विदेशी पोर्न मूवी चल रही हो। कुछ देर तक ठाप पर ठाप पड़ती रही शॉवर से पानी का फव्वारा नीचे गिर कर दोनों के बदन को भीगोता रहा
करीब बीस पच्चीस मिनट के बाद राहुल तेज धक्कों के साथ लंड का फुंवारा बुर के अंदर छोड़ने लगा दोनों एक साथ झढ़ने लगे। 

दूसरी तरफ विनीत और अलका अस्पताल के ऊपरी मंजिल पर टेबल पर बैठे हुए शीशे से बाहर नीचे की तरफ सड़क पर आती जाती तेज लाइट के साथ मोटर गाड़ी को देख रहे थे। अलका शांत नजर आ रही थी उसे सोनू की भी चिंता थी और राहुल की भी सोनू का बुखार धीरे धीरे कम हो रहा था। दोनों के बीच कोई भी वार्तालाप नहीं हो रही थी ख़ामोशी को तोड़ते हुए वीनीत बोला, ।

अब चिंता की कोई बात नहीं हे आंटी जी सोने का बुखार धीरे धीरे काम हो रहा है मैं नीचे जाकर कुछ खाने को ले आता हुं । इस तरह से भूखी रहेंगी तो आपकी भी तबीयत बिगड़ जाएगी और कुछ फल ले आता हूं सोनु के लिए। ( विनीत की बात सुनकर अल्का कुछ बोली नहीं बस हां में सिर हिला दी। वीनीत तुरंत 
वहां से उठा और नाश्ता लाने के लिए नीचे जाने लगा। अलका शांति आंखों से उसी तरह से नीचे की तरफ गाड़ियों को आते जाते देखती रही। कुछ देर बाद विनीत खाने के लिए कुछ नाश्ता ले आया और साथ में कुछ फल भी था। सोनू की आंख खुल चुकी थी वह भी राहत महसूस कर रहा था इसलिए विनीत खुद ही उसे फल काट कर देने लगा और वह भी भूखा था इसलिए फल खाने लगा अलका कभी सोनू को तो कभी वीनीतं को बिना पलक झुकाए देखे जा रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि विनीत का यह एहसान वह ं कैसे चुकाएगी। 
सोनू खा चुका था और विनीत अलका को जबरजस्ती खाने के लिए आग्रह करने लगा आखिरकार अलका भी
विनीत के आग्रह पर नाश्ता कर ले वैसे उसे भी भूख का एहसास तो हो ही रहा था नाश्ता करने के बाद उसका भी मन थोड़ा हल्का हुआ। 

रात के 10:30 बज रहे थे नर्स आई और सोनू का बुखार माफ कर ग्लूकोज का बोतल बदल कर दूसरा ग्लूकोज का बोतल लगा दी। और जाते जाते बोल कर गई की कोई भी तकलीफ हो नीचे आ कर के बता देना और हां सोते समय लाइट ओफ करके डिंम. बल्ब फोन कर लेना। 
नर्स जा चुकी थी ' जिस रूम में सोनु का इलाज हो रहा था इस रुम में सिर्फ तीन ही बेड थे । एक बेड पर सोनू लेटा हुआ था बीच में एक बेड खाली था और उसके किनारे वाले बेड पर एक और बच्चा एडमिट था। उसके साथ उसकी बुढ़ी दादी थी जो कि एक किनारे होकर उस बेड पर सो चुकी थी।खाली बेड पर हम दोनों बैठकर कुछ देर तक बातें करते रहे सोनू भी सो चुका था उसका बुखार भी लगभग उतर चुका था। धीरे-धीरे घड़ी की सुई घड़ी में 11:00 बजाने लगी। अब दोनों के सामने सोने की समस्या खड़ी हो चुकी थी। इस समस्या का समाधान लाते हुए विनीत ही बोला।

आंटी जी आप बेड पर सो जाइए मैं कुछ देर तक टेबल पर ही बेठता हूं, नींद आएगी तो दीवार से टेका ले कर सो जाऊंगा। ( इतना कहने के साथ ही दिन एक छोटे से टेबल पर जाकर बैठ गया अलका मन ही मन में सोचने लगी कि यह मेरे लिए इतना कुछ किया है तो क्या बेड पर एक साथ सोने में क्या हर्ज है। क्योंकि वह भी अच्छी तरह से जानती थी की सोने की ओर कोई जगह नहीं थी। अलका सोनू के बेड पर नहीं सोना चाहती थी क्योंकि वह उसे परेशान नहीं करना चाहती थी बड़ी मुश्किल से उसका बुखार उतरा था। उसे आराम की जरूरत थी। बहुत सोच समझकर उसने मन ही मन में फैसला कर लि। उसे अब इस बात पर दिक्कत नहीं थी कि एक बेड पर वह दोनों साथ में सोए क्योंकि जो आज दिनभर ऊसने सोनू और अलका के लिए निस्वार्थ भाव से उन दोनों की मदद किया था। अलका को लगने लगा था कि अगर वह उसे बेड पर सोने भर की जगह नहीं दे सकती तो वह खुद गर्ज कहलाएगी। और अलका को विनीत के आज के व्यक्तित्व से ऐसा लग रहा था कि वह बुरा लड़का नहीं है। इसलिए वह विनीत से बोली।

विनीत टेबल पर तुम्हें नींद कैसे आएगी एक काम करो तुम भी यही एक किनारे पर आकर बेड पर सो जाओ। 
( वैसे भी तीनों बेड के किनारे किनारे पर बड़ा बड़ा सा परदा लगा हुआ था । इसलिए अलका को एक साथ सोने में कोई हर्ज दिखाई नहीं दे रहा था । लेकिन अलका के इस फैसले से विनीत के मन में लड्डू फूटने लगा था।)
विनीत की भाभी और राहुल दोनों नहा चुके थे और होटल से खाना भी आ चुका था। आज पहली बार राहुल डाइनिंग टेबल पर खाना खा रहा था नहाने के बाद विनीत की भाभी ने उस दिन स्टोर में से खरीदी हुई ब्रा और पेंटी जिसमें से पहनने के बावजूद भी छुपाने लायक कुछ भी नहीं बचता था। राहुल तो नई ब्रा और पैंटी में वीनीत की भाभी को देखकर एकदम मदहोश होने लगा था। और इस पर भी कहां रहते हुए विनीत की भाभी ने ट्रांसपेरेंट गाउन जो की एक छोटी सी फ्रॉक के ही बराबर थी उसे पहन ली थी विनीत की भाभी का संगमरमर सा बदन इन कपड़ो में भी साफ साफ झलक रहा था उसकी बड़ी बड़ी चूचियां जोकी ब्रा में कैद होने के बावजूद भी आधे से ज्यादा चूचियां बाहर को झलक रही थी और दोनों गोलाईयों के बीच में से गुजरती गहरी लकीर गजब का कहर ढा रहे थे चिकने सपाट पेट के बीच की गहरी नाभि बुर से कम कामुक नहीं लग रही थी। पेंटी भी क्या थी बस आगे से बुर की लकीर भर छुपाने के लिए दो अंगूल का कपड़ा वह भी बिल्कुल जालीदार जिसमें से उसकी गुलाबी पत्तियां साफ-साफ नजर आती थी और पीछे से बस एक पतली सी डोरी
और वह भी भरावदार गांड की फांकों के बीच की दरार में समा जाती थी। गीले बालों से टपकता पानी उसके बदन से फिसलते हुए नीचे फर्श पर गिर रहा था। जिस की खूबसूरती देखकर किसी का भी मन डोल जाए इस समय वह बिल्कुल काम की देवी लग रही थी जो की उसके सामने की कुर्सी पर बैठ कर खाना खा रहीे थी। राहुल सिर्फ तोलिया लपेट कर ही कुर्सी पर बैठ कर खाना खा रहा था। दोनों एक दूसरे से बातें करते हो डिनर का आनंद ले रहे थे थोड़ी ही देर में दोनों खाना खा लिए। दोनों के मन में आगे की क्रिया कलाप को लेकर उत्सुकता जगी हुई थी दोनों का मन मयूर नाच रहा था क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से मालूम था कि पूरी रात अब उनकी मुट्ठी में है । बेझिझक होकर वे दोनो अपनी काम कलाप को अंजाम दे सकेंगे। इसलिए तो विनीत की भाभी एक पल भी गवाना नहीं चाहती थी इसलिए डाइनिंग टेबल पर ही झूठे बर्तन को छोड़कर वह राहुल को लेकर अपने बेडरूम में चली गई। 

दूसरी तरफ अस्पताल में विनीत अंदर ही अंदर प्रसन्नता के शिखर पर चढ़ रहा था अलका उसे अपने साथ सोने के लिए तो मंजूरी दे दी थी लेकिन उसके मन में भी असमंजसता का भाव उमड़ रहा था। अलंका वीनीत के एहसान तले दबी हुई थी, कोई और वक्त होता तो वह जरूर अपने बिस्तर पर उसे बैठने भी नहीं देती लेकिन यहां हाल कुछ और ही था पूरी तरह से माहौल हालात की काबू में चला जा रहा था। अगर ऐसे हालात ना होते तो शायद इस तरह की असमंजसता अलका के मन में कभी भी नहीं होती। धीरे-धीरे समय गुजर रहा था अलका को भी नींद आने लगी थी लेकिन अभी भी वह बेड पर बैठी हुई थी विनीत भी टेबल पर बैठकर अलका को ही देख रहा था। काफी समय गुजर गया था । किनारे वाले पेड पर बच्चे की बूढ़ी दादी और वह बच्चा न जाने कब से सो चुके थे सोनू भी गहरी नींद में था विनीत को भी नींद आने लगी थी, अलका बैठे बैठे ही झपकी ले रही थी झपकी लेते समय अचानक रह-रहकर ऊसकी आंखें खुल जाती तो वह विनीत की तरफ देख लेती जो कि अभी भी टेबल पर बैठा हुआ था
उसे देखकर अलका उसे बिस्तर पर आकर सोने के लिए बोली और खुद बिस्तर पर लेट गई क्योंकि उसे गहरी नींद की झपकी लग रही थी। वह कुछ देर तक टेबल पर बैठकर अलका की तरफ देखता रहा जोंकि सो चुकी थी
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