मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:11 PM,
#48
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
गुलाबी ने अपना मुंह खोला और रामु को अपना वीर्य से भरा मुंह दिखाया. मुंह खुलते ही थोड़ा सा लिसलिसा सफ़ेद वीर्य उसके मुंह से निकल आया और उसके गले पर बहने लगा. गुलाबी ने जल्दी से अपना मुंह बंद कर लिया.

फिर एक बार मे पूरे वीर्य को गले से उतारकर बोली, "तुम्हारी मलाई पी रहे हैं! बहुत स्वादिस्ट है!" फिर खिलखिला कर हंसने लगी.

"भाभी, आप का का सिखायी हैं इस बेचारी को?" रामु ने मुझे कहा, "एक दम कोठे की रंडी बना डाली हैं मेरी गुलाबी को!"
गुलाबी चहक के बोली, "तुम काहे परेसान हो रहे हो, जी? हमको मलाई पीने का मन हुआ तो हम पी लिये. तुमको थोड़े बोले पीने को. तुम बस हमरी चूत चाट दिया करो. हम उसी से खुस हो जायेंगे."

फिर अपने ठोड़ी और गले पर बहते वीर्य को उंगली से उठाकर अपने मुंह मे ले लिया.

"रामु, बीवी रंगीन मिज़ाज की हो तो उसे चोदकर भी मज़ा आता है." मैने कहा, "मैं यह सब तुम्हारे लिये ही कर रही हूँ."

सुनकर रामु चुपचाप लेटा रहा.

मैं अपने कपड़े ठीक करके कमरे से बाहर आयी और रसोई मे जाकर तुम्हारी मामीजी को आज की प्रगती की जानकरी दी. किशन ने गुलाबी को चोद लिया है सुनकर वह बहुत खुश हुई. वह जल्दी ही अपने छोटे बेटे से भी चुदवाना चाहती थी.

उस रात फिर सासुमाँ तुम्हारे बलराम भैया के कमरे मे सोई और देर रात तक माँ-बेटे मे चुदाई चलती रही. मैं दिन मे दो बार चुदवाकर काफ़ी थक गयी थी. पर ससुरजी ने मुझे रात को एक और बार चोदा फिर वह मेरे नंगे बदन को बाहों मे लेकर सो गये.

वीणा, आज का ख़त बस यहीं तक. मुझे ज़रूर बताना तुम्हे कैसी लगा.

तुम्हारी चुदैल भाभी

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भाभी की चिट्ठी वाकई बहुत गरम थी. पहली बार मैने सोनपुर मे विश्वनाथजी का वीर्य पिया था. शुरु शुरु मे मुझे भी बहुत घिन्न हुई थी, पर उन्होने मुझे जबरदस्ती अपना वीर्य पिला दिया था. पर बाद मे चलकर मुझे वीर्य का स्वाद लग गया. इसलिये मुझे आश्चर्य नही हुआ जब मैने पढ़ा कि गुलाबी ने अपने पति का वीर्य खुश होकर पिया.

मैने भाभी की चिट्ठी का जवाब भेजा.


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प्रिय चुदैल भाभी,

तुम्हारी चिट्ठी मिली. पढ़कर बहुत मज़ा आया. तुम्हारे घर मे तुमने कोई कुकर्म करना बाकी छोड़ा है क्या? तुमने एक बेचारी 18-19 साल की बच्ची को मर्द का वीर्य पीना सिखा दिया! खैर आगे की घटनाओं को जल्दी से लिखो. मैं बेसब्री से इंतज़ार कर रही हूँ!

तुम्हारी ननद वीणा

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अगले दिन मैं अपने घर के बैठक मे बैठकर चाय पी रही थी. अब क्या करूं घर पर शराब तो पी नही सकती! तभी बाहर से साईकिल की घंटी की आवाज़ आयी और साथ मे डाकिये ने मुझे आवाज़ लगायी, "बिटिया, तेरी भाभी की चिट्ठी है!"

मैं चाय छोड़कर बाहर भागी और डाकिये से चिट्ठी ले ली. काफ़ी बड़ा लिफ़ाफ़ा था. लग रहा था मीना भाभी के घर मे बहुत कुछ हुआ है.

जल्दी से भाभी की चिट्ठी लेकर अपने कमरे मे जाने लगी तो मेरी माँ बोली, "अरे तु चाय छोड़कर कहाँ चली!"
"बाद मे पी लूंगी, माँ!" मैने कहा और सीड़ी से ऊपर भागी.

"न जाने यह दोनो ननद-भाभी इतनी क्या चिट्ठियां लिखा करती हैं!" मेरी माँ बड़बड़ायी.
"अरे तुम तो हर बात मे परेशान होती हो!" मेरे पिताजी बोले, "जवान लड़कियों को आपस मे बहुत गप्पें बाँटनी होती है. तुम्हारे भाई की बहु तो हमारी वीणा से थोड़ी ही बड़ी है."

अपने कमरे मे पहुंचकर मैने भाभी की चिट्ठी खोली.

**********************************************************************

मेरी प्यारी ननद रानी,

तुम्हारा ख़त मिला. तुम सच कहती हो. तुम जब तक गुलाबी से मिलोगी वह शायद हाज़िपुर के रंडी बाज़ार मे रंडीबाज़ी कर रही होगी! पहले तो बेचारी कितनी भोली सी थी. पर मेरी शिक्षा से वह बहुत जल्दी सयानी हो गयी है. लड़की मे बहुत चुदास है और नयी नयी चीज़ें आज़माने की इच्छा भी.

मैने अपने पिछले ख़त मे लिखा था कि मैने उसे अपने देवर से चुदवा दिया है और उसे मर्द का वीर्य पीना सिखाया है. आज की किश्त पढ़कर तुम समझोगी के गुलाबी को अभी काफ़ी गिरना बाकी है. मुझे तो उसे बर्बाद करने मे बहुत ही मज़ा आ रहा है!

अगले दिन सुबह की बात बताती हूँ. सासुमाँ, मैं और गुलाबी रसोई मे नाश्ता तैयार कर रहे थे.

सासुमाँ ने पूछा, "गुलाबी, घर पर झाड़ू लगा दी है क्या?"
"नही मालकिन, अभी नही." गुलाबी बोली, "हम सोचे पहिले नास्ते का काम निपटा लेते हैं."
"नही, तु अभी जा के झाड़ू लगा दे. पोछा बाद मे कर देना." सासुमाँ बोली, "आज खेत मे नही जाना है तो बाप और दोनो बेटे घोड़े बेचकर सो रहे हैं. उन्हे जगा भी देना."

गुलाबी का चेहरा चमक उठा और वह मेरी तरफ़ देखकर मुस्कुरा दी. कुछ तो शैतानी खुराफ़ात उसके दिमाग मे चल रहा था.

वह जल्दी से उठी और रसोई से भागकर निकल रही थी कि अपने पति से टकरा गई. रामु बाज़ार से सब्ज़ी, अंडा, मछली, वगैरह लेके आ रहा था.

अपनी बीवी को ऐसे भागते देखकर बोला, "अरे कहाँ पागल की तरह भागे जा रही है."

गुलाबी बिना जवाब दिये चली गयी तो रामु बोला, "न जाने क्या किये फिरती है, लड़की!"
"माँ ने उसे देवरजी और मेरे कमरे मे झाड़ू लगाने भेजा है." मैने कहा, "तभी इतनी खुश हो रही है."

सासुमाँ कढ़ाई मे कड़छी चला रही थी. वह बोली, "रामु, मैने सुना तेरी जोरु ने मेरे छोटे बेटे के साथ भी मुंह काला कर लिया है?"
"आप ठीके सुनी हैं, मालकिन." रामु ने सर झुकाकर कहा.
"मैने तो पहले ही कहा था, तेरी जोरु मेरे दोनो बेटों से चुदाने के लिये ललचा रही है." सासुमाँ बोली, "पर तु कहाँ रहता है आजकल? बीवी दूसरों से चुदती है और तु देखकर खुश हो लेता है?"

सुनकर मैं घूंघट मे मुंह छुपाकर हंस दी.

"ऊ बात नही है, मालकिन." रामु बोला.
"फिर मेरी बहु की चूत की सेवा मे लगा है क्या? उसकी सेवा के लिये तो बहुत मर्द हैं घर पर. वह तो किशन से भी चुदवा रही है." सासुमाँ बोली, "सुन, मेरे कमर मे बहुत दर्द है. नाश्ते के बाद मैं छत पर धूप मे बैठुंगी. तु आके ज़रा तेल लगा देना."
"हम गुलाबी को बोल देंगे ना मालिस करने के लिये." रामु बोला.
"चूतिये!" सासुमाँ बौखला के बोली, "मेरी चूत मारनी हो तो वह भी गुलाबी ही मारेगी क्या?"
"जी मालकिन, हमे मालिस कर देंगे." रामु मसला समझकर बोला.

रामु बार-बार रसोई के दरवाज़े की तरफ़ देख रहा था.

सासुमाँ बोली, "तु बार-बार बाहर क्या देख रहा है?"
"कुछ नही, मालकिन." रामु बोला.

"माँ, गुलाबी देवरजी के कमरे मे झाड़ू लगाने गयी है ना. उसी को लेके चिंतित है बेचारा." मैने कहा.
"इसमे चिंता की क्या बात है?" सासुमाँ कढ़ाई मे कड़छी चलाते हुए बोली, "सुबह-सुबह जवान लड़के के कमरे मे जायेगी तो चुदकर ही बाहर आयेगी."
"हम जायें, मालकिन?" रामु ने पूछा.
"कहाँ? जोरु को चुदते देखने?" सासुमाँ ने पूछा.

"जी." रामु ने धीरे से जवाब दिया.

"तु सच मे बहुत गिरा हुआ आदमी है रे, रामु." सासुमाँ बोली, "जा. दिल खुश कर ले."
"मै भी जाऊं, माँ?" मैने पूछा.
"हाँ, जा." सासुमाँ बोली, "पर जल्दी आ जाना. इधर बहुत काम."

रामु और मैं रसोई के बाहर आ गये. गुलाबी पहले किशन के कमरे मे झाड़ू लगाती है. हम वही गये.

किशन का दरवाज़ा बंद था, पर अन्दर देखना कोई मुश्किल नही था. रामु और मैं दो छेदों से अन्दर देखने लगे.
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