मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:05 PM,
#12
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मामाजी को अब हमारी बात समझ आयी. मुझे बोले, "वीणा, बहुत शैतान हो गयी है तू इन दो दिनो मे! चल लेट बिस्तर पर! अब तेरी चुदाई करता हूँ!"

मैं खुशी खुशी बिस्तर पर चूत खोलकर लेट गयी. भाभी मामाजी के ऊपर से उतरी और मेरे पास बैठ गयी. मामाजी उठे और मेरी फ़ांक की हुई टांगों के बीच बैठकर, मेरे चूत पर अपने लण्ड का मोटा सुपाड़ा रखा. फिर अचानक एक जोरदार धक्के से अपना आधा लण्ड मेरी चूत मे घुसा दिया.

मैं दर्द से बिलबिला उठी. "ऊइईई!! मर गयी मै!! मामाजी आराम से नही डाल सकते थे अपना मूसल जैसा लण्ड!! उफ़्फ़्फ़ माँ!! फाड़ के रख दिया मेरी चूत को!!"

मामाजी रुक गये और बोले, "बहु, तू तो कहती थी यह दो दिन से चुद रही है लोगों से?"

मैं बोली, "मामाजी, दो ही दिन से चुद रही हूँ. भाभी की तरह चुद चुद कर चूत का भोसड़ा नही बना लिया है! हाय कितना दर्द हो रहा है!!"

भाभी हंसी और मेरे नंगी चूचियों को मसलते हुए बोली, "अभी दर्द चला जायेगा, ननद रानी! और एक दो दिन इसी तरह चुदाती रहोगी तो तुम्हारी चूत भी मेरी तरह भोसड़ी बन जायेगी." फिर वह मेरे होंठ पीने लगी.

भाभी के चूची मसलने और होंठ पीने से जल्दी ही मेरा दर्द कम हो गया. मामाजी ने भी धीरे से धक्के लगा लगा कर अपना पूरा लण्ड मेरी चूत मे ठूंस दिया. मैं भी मज़े मे कमर उठाने लगी.

भाभी बोली, "बाबूजी, अब यह तैयार हो गयी है. अब जी भर के चोदिये इस साली रांड को."
मैं भी मस्ती मे बोली, "हाँ मामाजी, चोदिये मुझे! जोर जोर से चोदिये!"

मामाजी ने कमर उठा उठा कर मुझे पेलना शुरु कर दिया. मेरी कसी चूत मे उनका मोटा लण्ड अंदर बाहर होने लगा और मुझे स्वर्ग का आनंद आने लगा. "आहहह!! ओहहह! क्या चोद रहे हो मामाजी!!" मैं ठाप खाते खाते बड़बड़ाने लगी. "पेलो मुझे अच्छे से, मेरे प्यारे मामाजी! आहहह!! पेल पेल के ढीली कर दो मेरी चूत!! हाय क्या मज़ा आ रहा है!!"

मामाजी को भी मेरी कसी चूत पेलने मे बहुत मज़ा आ रहा था. करीब 15 मिनट चोदने के बाद, मामाजी बहुत जोरों से ठाप लगाने लगे. उनका भारी पेलड़ मेरी गांड पर आ आकर टकराने लगा. उनके ठापों से हमारे पसीने से भीगे शरीर से पचाक-पचाक की आवाज़ आने लगी. इधर भाभी ने मेरे सर के दोनो तरफ़ अपने पाँव रख कर अपनी चूत मेरे मुँह पर दबा रखी थी जिसे मैं मामाजी के ठापों की ताल पर चाट रही थी. पूरा घर चुदाई की मस्त आवाज़ों से गूंज रहा था.

मामाजी की तेज ठुकाई से मेरा पानी छूटने लगा. मस्ती के सातवें आसमान पर मै चिल्लाने लगी, "ओहहह!! मामाजी, और जोर से पेलो!! हाय मेरे प्यारे मामाजी!! फाड़ के भोसड़ी बना दो अपनी भांजी की चूत को! आहहह!! क्या मज़ा आ रहा है!! उम्म माँ!! मै तो चुद कर रांड बन गयी रे!! आहहह! आहहह! मै गयी, मामाजी!! आहहह!!"

मेरे मुँह पर अपनी चूत रगड़ते रगड़ते भाभी भी खलास हो गयी, और उधर मेरे गर्भ की गहराई मे मुझे मामाजी के पेलड़ की मलाई गिरती मेहसूस हुई.

उस रात मामाजी ने भाभी और मुझे एक बार और चोदा. फिर हम तीनो थक कर नंगे ही सो गये.

अगले पूरे दिन मामाजी भाभी और मुझे भोगते रहे. कभी वह हमारी चूची दबा देते, कभी गांड दबा देते. भाभी भी अपने ससुर से पूरी तरह खुल गयी थी. अपने अध-नंगे चूचियों का नज़ारा करा करा कर मामाजी को पागल बनाती रही. भाभी और मैने मामाजी को रमेश, सुरेश, दिनेश, महेश, और विश्वनाथजी के हाथों अपने बलात्कार और सामुहिक चुदाई की कहानी खोल कर सुनाई. उसके बाद उस रात भी मामाजी, भाभी, और मैं देर रात तक चोदा-चोदी करते रहे.

अगले दिन सुबह सुबह मामी विश्वनाथजी के साथ वापस आ गयीं. वह बहुत खुश लग रही थी. मैं और भाभी समझ गये कि दो दिनो से विश्वनाथजी से खूब चुद कर आयी है.

मामीजी नहाने गयी तो विश्वनाथजी भाभी को खींच कर अपने कमरे मे ले गये. उसे बिस्तर पर लिटा कर उसकी साड़ी कमर तक उठा दी और अपना विशाल खूंटे जैसा लण्ड उसकी की चूत मे पेल दिया. जोश मे वह भाभी को जोरों का ठाप लगाने लगे.

भाभी मज़ा लेते हुए बोली, "विश्वनाथजी, क्या बात है इतने जोश मे हैं? मेरी सासुमाँ के साथ रास्ते मे कुछ किये नही क्या?"
विश्वनाथजी- "अरे किया ना, मेरी जान! जाते समय ट्रेन के टायलेट मे उसे एक बार चोद लिया. अपने मैके मे तो वह कुछ देर ही रुकी थी. चुदवाने की उसे इतनी ललक थी कि कल की रात हम होटल मे ही रुके. पूरी रात उसको नंगा करके चोदता रहा. आते समय भी ट्रेन के टायलेट मे एक और बार चोद लिया. चलती ट्रेन मे वह बहुत मज़े ले लेकर चुदवाई!"
भाभी- "फिर भी इतनी ठरक चढ़ी हुई है आपको!"
विश्वनाथजी- "तेरे सामने तेरी सास क्या चीज़ है, मेरी जान! तुझे चोदने का मज़ा ही कुछ और है. अब तो तू अपने घर जाने वाली है. फिर कभी आये ना आये. इसलिये आखरी बार के लिये चोद लेता हूँ तुझे!"

मैं दरवाज़े के फ़ांक से अंदर का नज़ारा देख ही रही थी कि मामाजी पीछे से आ गये. मुझे हटाकर उन्होने अंदर झांका तो पाया कि उनके प्रिय मित्र उनकी बहु पर चढ़ कर उसे चोद रहे थे. देखते ही उनका लण्ड ठनक गया. मेरे गांड मे अपना खड़ा लण्ड घिसते हुए और मेरी चूचियों को दबाते हुए बोले, "मेरी बहु इतनी बड़ी छिनाल है मैने सोचा नही था!"

हम दोनो नज़ारा देख ही रहे थे कि मामीजी नहा कर निकली और भाभी को आवाज़ लगायी, "बहु! कहाँ है तू? सूटकेस से मेरे कपड़े निकाल दे बेटी!"

पर भाभी तो विश्वनाथजी की ठुकाई मे मशगुल थी!
मामाजी बोले, "वीणा, जा देख तो तेरी मामी क्या कह रही है."

मैं भाग कर मामीजी के पास ऊपर गयी. "भाभी ज़रा बाहर गयी है, मामीजी. मैं आपके कपड़े निकाल देती हूँ." मैने कहा और मामीजी के सूटकेस से उनके लिये ब्लाऊज़, साड़ी वगैरह निकाल के दी.

मामीजी कपड़े पहनते हुए बोली, "क्यों वीणा, मेरे पीछे तुम लोग बहुत मज़ा किये क्या?"
मैं उनका इशारा नही समझी, पर बोली, "हाँ मामी, बहुत मज़ा किये. आप भी बहुत मज़ा की होंगी विश्वनाथजी के साथ मैके जाकर!"
मामीजी मुझे डाँटकर बोली, "बेशरम, कुछ भी बोल देती है!"
मैने कहा, "विश्वनाथजी ने आपका बहुत खयाल रखा होगा रास्ते मे? वही बता रहे थे."
मामीजी ने थोड़ा सतर्क होकर पूछा, "क्या क्या बताया विश्वनाथजी ने?"
मैं बोली, "यही कि दो दिनो से कैसे कैसे उन्होने आपका खयाल रखा. आपको अच्छे होटल मे ठहराया. आप तो ट्रेन के टायलेट मे भी जाती थी तो..."

मामीजी अपनी आवाज़ नीची कर के बोली, "हाय राम! विश्वनाथजी ने यह सब भी बता दिया! मैं तो शरम से मर जाऊंगी!"
मैं बोली, "मुझसे मत शरमाइये मामीजी! मुझे तो सब कुछ पता है. उस रात रमेश और उसके ३ दोस्तों ने आपके साथ जो जो किया था मैने सब देखा था."

मामीजी ने हाथों मे अपना चेहरा छुपा लिया. उन्होने सिर्फ़ पेटीकोट और ब्रा पहना हुआ था. मैने हाथ बढ़ा कर उनके पहाड़ जैसे चूचियों को धीरे से दबाया तो उन्होने कहा, "अब मैं तुम्हे और बहु को क्या मुँह दिखाऊंगी! बलराम के पिताजी को पता चला तो वह तो मुझे तलाक़ ही दे देंगे!"

मैने प्यार से मामीजी की चूचियों को थोड़ा और दबाया तो उन्होने अनचाहे भी एक सितकारी भरी.

मैने कहा, "मामीजी, आप मुझे और भाभी को मुँह दिखाने की फ़िक्र मत कीजिये. हम दोनो भी कोई दूध की धुली नही हैं. उस रात रमेश और उसके ३ दोस्त, और विश्वनाथजी ने रात भर भाभी और मेरी भी इज़्ज़त लूटी थी."
मामी- "हाय राम! यह तू क्या कह रही है, वीणा? मुझे विश्वास नही हो रहा तेरी बातों पर!"
मैं- "पर यह सच है, मामीजी! और जहाँ तक रही मामाजी की बात, पिछले दो दिनो से वह मुझे और भाभी को एक ही बिस्तर मे भोग रहे हैं."
मामीजी- "क्या अनाप-शनाप बक रही है, वीणा? तेरा दिमाग तो नही खराब हो गया?"
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