RE: Hindi Sex Kahaniya कामलीला
मुँह से लगातार उसकी चूत पर हमला करते मैंने अपनी ऊँगली अन्दर-बाहर करनी शुरू की तो उसकी कराहें और तेज़ हो गयीं। उसने एक हाथ से बिस्तर की चादर दबोच ली थी, तो दूसरे हाथ से मेरे सर के बाल नोचे जा रही थी।
जब मुझे लगा कि अब वो जाने वाली है, तो मैंने मुँह हटा लिया और ऊँगली भी निकाल ली। ऐसा लगा जैसे उसकी जान निकल गई हो, पर जल्दी ही मैंने उसकी खुली बुर के छेद पर अपना लंड रख कर अन्दर सरका दिया। उसने मुझे दबोचना चाहा लेकिन मैंने उसे दूर ही रखा और बाकायदा उसकी टांगों के बीच बैठ कर दो तीन बार में लंड गीला कर के पूरा अन्दर ठांस दिया।
वह होंठ भींचे ज़ोर-ज़ोर से कराह रही थी और मैंने उसके पांव पकड़ कर धक्के लगाने शुरू किये। ऐसा लग रहा था जैसे हर धक्के पर उसके अन्दर कोई करेंट प्रवाहित हो रहा हो। अपनी तरफ से वह कमर उचका-उचका कर हर धक्के का जवाब देने की कोशिश कर रही थी।
फिर उसी पोजीशन में वह ऐंठ गई और मुझे अपने ऊपर खींच कर दबोच लिया और कांप-कांप कर ऐसे झड़ने लगी, जैसे बरसों का दबा लावा अब फूट-फूट कर निकल रहा हो।
पर अभी मेरा नहीं हुआ था, मैंने उसे फिर से चूमना, सहलाना शुरू किया और लंड बाहर निकाल कर फिर अपनी ऊँगली से उसकी कलिकाओं को छेड़ने लगा और चूचियों को चूसने लगा। जल्दी ही वह फिर तैयार हो गई और मैंने इस बार उसे बेड से नीचे उतार लिया।
एक पांव नीचे और एक पांव ऊपर और इस तरह हवा में खुली चूत में मैंने अपना लंड ठूंस कर उसके नरम गद्देदार चूतड़ों पर, जो धक्के मारने शुरू किये, तो उसकी ‘आहें’ निकल गईं और जल्दी ही वह खुद भी अपनी गाण्ड आगे-पीछे करके सहयोग करने लगी।
इसी तरह वह सिस्कार-सिस्कार कर चुदती रही और मैंने हांफते हुए चोदता रहा और जब लगा के अब निकल जाएगा तो लंड उसकी बुर से बाहर निकाल कर उसके चूतड़ पर दबा दिया और जो ‘फच-फच’ करके माल निकला, वह उसके चूतड़ों पर मल दिया।
फिर दोनों बिस्तर पर गिर कर हाँफ़ने लगे।
“सुनो, मैं बिना गाँड़ मारे नहीं रह सकता। तुम्हें अच्छा लगे या बुरा, दर्द हो या छेद फट ही क्यों न जाए मैं बिना मारे छोड़ूँगा नहीं।”
उसने कोई जवाब नहीं दिया।
वह पड़ी रही और मैं उसी हालत में उठ कर कमरे से निकला और रसोई में आ गया। तेल ढूंढने में ज्यादा देर न लगी, मैं उसे लेकर वापस उसके पास पहुँचा और उस पर चढ़ कर फिर उसे गरम करने लगा।
थोड़ी ही कोशिश में वह मचलने लगी और बुर जो उसने पोंछ ली थी, वो फिर से रसीली हो गई।
मैंने इस बार सीधे अर्ध उत्तेजित लंड को उसकी बुर में डाला और धक्के लगाने लगा। वह गर्म होने लगी और उसकी बदन की लहरें मुझे बताती रही। जब उसे चुदने में खूब मज़ा आने लगा और मेरा लंड भी पूर्ण उत्तेजित हो गया तो मैंने लंड निकल कर उसे कुतिया की तरह चौपाया बना लिया और अब तेल में ऊँगली डुबा डुबा कर उसकी गा्ण्ड के कसे छेद में करने लगा।
शुरू में वह कसमसाई पर फिर एडजस्ट कर लिया और य़ू ही एक के बाद दो और दो के बाद तीन ऊँगलियाँ तक उसके कसे चुन्नटों से भरे छेद में डाल दी। जब मुझे लगा कि अब लंड जाने भर का रास्ता बन गया है, तो लंड को तेल से नहला कर मैंने ठूँसना शुरू किया, जैसे ही सुपाड़ा अन्दर गया, वह जोर से कराह कर आगे खिसकी.. लेकिन मैं भी होशियार था। मैंने उसकी कमर थाम ली थी और निकलने नहीं दिया, उलटे तेल की चिकनाहट के साथ पूरा लंड अन्दर ठेल दिया।
“उई ई ई .. ऊँ ऊँ …ओ..!
“बस हो गया, डरो मत, तुम अपने हाथ से अपनी क्लिटोरिस सहलाओ, चूत गरम रहेगी तो मरवाने का भी मज़ा आएगा।”
उसने ऐसा ही किया और फिर जब मैंने उसके गुदाज नरम चूतड़ों पर थाप देते हुए उसकी गाँड़ में लंड पेलना शुरू किया, तो थोड़ी ही देर में उसे मज़ा आने लगा और इसके बाद फिर उसे नीचे चित लिटा कर, फिर उसकी टांगें उठा कर उसके घुटने पेट से मिला दिए तो उसकी गाँड़ का छेद इतना ढीला हो चुका था कि उसने मेरे लंड का कोई विरोध ना किया और आसानी पूरा अन्दर निगल लिया।
फिर कुछ ज़ोर-ज़ोर के धक्कों के बाद मेरा फव्वारा छूट ही पड़ा और मैंने पूरी ‘ट्यूब’ उसकी गाण्ड में खाली कर दी और उसके बगल में गिर कर हाँफ़ने लगा।
इतनी मेहनत और दो बार के डिस्चार्ज ने इतनी हालत खस्ता कर दी कि होश ही न रहा। होश जब आया जब बाहर घन्टी बजी।
जल्दी-जल्दी दोनों ने कपड़े पहने और मैं ही बाहर निकल कर दरवाज़ा खोलने पहुँचा, पर ये देख कर हैरान रह गया कि बाहर असलम भाई के साथ उनके दोनों बच्चे तो थे लेकिन उनकी बीवी ज़रीना के बजाय उनकी बहन निदा भी मौजूद थी।
“अरे तुम… ज़रीना कहाँ है?”
मेरी एक ठंडी सांस छूट गई और मैंने आहिस्ता से सर हिला कर कमरे की तरफ इशारा किया और जीने से ऊपर बढ़ आया।
मेरे लिए समझना मुश्किल नहीं था कि कमरे में मेरे लौड़े के नीचे जरीना थी और मेरे साथ क्या हुआ था, लेकिन अजीब कमीनी औरत थी कि इतना चुदने के बाद भी हेकड़ी बरक़रार थी और क्या मज़ाल कि उसके चेहरे से ऐसा लगता कि मुझसे चुद चुकी हो।
बहरहाल जो मेरा शिकार थी, वह पच्चीस साल की बेवा, वो वैसे ही नरमी तो दिखा रही थी लेकिन चुदने जैसा कोई इशारा नहीं दे रही थी, उसके चक्कर में ही मैं रात को अपने कमरे का दरवाज़ा खुला रख के ही सोता था कि उसे आने में दिक्कत न हो और अँधेरे में ही अपनी शर्म छुपा कर चली आए।
फिर भाभी की चुदाई के चार रोज़ बाद एक रात ऐसा मौका भी आया… जब रात के किसी पहर मेरी आँख खुल गई। खुलने का कारण मेरे लंड का खड़ा होना और उसका गीला होना था। मैंने अपनी इंद्रियों को सचेत कर के सोचा तो समझ में आया कि कोई मेरे लंड को अपने गीले-गीले मुँह में लिए लॉलीपॉप की तरह चूसे जा रहा था।
मैंने देखने की कोशिश की पर साये से ज्यादा कुछ न दिखा।
अब ऐसी खुली हरकत तो ज़ाहिर था कि ज़रीना ही कर सकती थी, लेकिन मुझे क्या, ननद न सही भाभी ही सही, एक अदद चूत ही तो चाहिए।
मैंने हाथ बढ़ा कर उसे ऊपर खींच लिया।
और उसे जकड़ कर उसके होंठों का रसपान करने लगा।
वो भी मेरे होंठों और ज़ुबान से खेलने लगी, मैंने दोनों हाथों से उसकी चूचियाँ गूंथनी शुरू की, तो उसकी कराह निकल गई।
“क्या लगा लिया, उस दिन नरम लग रही थी आज तो कुछ सख्त लग रही हैं?”
मैंने उसके कुर्ते को ऊपर करते हुए कहा।
वह कुछ नहीं बोली।
मैंने उसका कुरता उसके सर से ऊपर करके निकाल दिया और उसकी सलवार भी उतार दी। खुद तो वैसे भी चड्डी में ही सोता था। अब दो नंगे बदन की रगड़ा-रगड़ी माहौल में आग भरने लगी।
थोड़ी देर ब्रा के ऊपर से मैं उसके निप्पल कुचलता रहा और वह हौले-हौले सिसकारती रही, फिर उसके स्पंजी वक्षों को ब्रा की कैद से आज़ाद करके दोनों मटर के दानों जैसे निप्पलों को खींचने, चुभलाने लगा।
फिर मेरे हाथों के इशारे पर वो औंधी लेट गई और मैं उसकी पीठ पर लद कर दोनों हाथ आगे ले जाकर उसकी चूचियों को दबाते हुए उसकी गर्दन मोड़ कर उसके होंठों को चूसने लगा। उसने भी एक हाथ से मेरा चेहरा थाम लिया था।
इसके बाद मैं नीचे सरकने लगा।
और बिल्कुल नीचे पहुँच कर उसकी पैंटी को नीचे सरका कर उसके नरम-नरम चूतड़ों को चाटने दबाने लगा और पीछे से ही हाथ डाल कर उसकी गर्म भट्टी की तरह दहकती बुर को छुआ तो जैसे वह सिहर गई।
चिपचिपा पानी भरा हुआ था।
मैं उसी हालत में उसे रखे खुद चित लेट गया और अपना मुँह नीचे से उसकी चूत पर ले आया और ज़ुबान से उसकी कलिकाओं से छेड़छाड़ करने लगा।
वह मचलने लगी…
दोनों हाथों से मैंने उसके डबल-रोटी जैसे चूतड़ थाम रखे थे और जब ऊपरी कलिकाओं को काफी गर्म कर चुका, तो ज़ुबान को नुकीला और कड़ा करके उसके छेद में उतार दिया।
वह ‘सिस्स’ करके रह गई।
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