RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
प्यार हो तो ऐसा पार्ट--15 गतान्क से आगे...................... भीमा सुबह होते ही घर से निकालने की तैयारी कर लेता है. "मुझे स्वामी जी की खोज खबर लेनी चाहिए. " वो रेणुका को आवाज़ देता है ताकि वो उठ कर कुण्डी बंद कर ले. पर रेणुका गहरी नींद में होती है. भीमा रेणुका के कंधे पर हाथ रख कर उसे हल्का सा हिलाता है. "क..क..कौन है?" "मैं हूँ मेम्साब भीमा" "क्या बात है?" "आप उठ कर कुण्डी लगा लीजिए मैं बाहर जा रहा हूँ. आपको नहाना धोना हो तो बाहर इंटेज़ाम है." भीमा ने घर के बाहर एक छोटा सा टाय्लेट बना रखा था. जिस पर एक परदा टाँग रखा था. "पता है मुझे" "ठीक है फिर आप कुण्डी लगा लीजिए." भीमा चल देता है. "कहा मिलेंगे स्वामी जी" भीमा सोच रहा है. वो मंदिर की तरफ चल देता है. प्रेम भीमा को रास्ते में ही मिल जाता है. "कहा जा रहे हो भीमा सुबह सुबह" "आपके पास ही आ रहा था स्वामी जी...क्या कुछ पता चला आपको पंडित जी से." "हां पता चला...और मेरी कल रात भिड़ंत भी हो गयी पिशाच से." "तो क्या...तो क्या वो पिशाच ही है." "हां." "हे भगवान." भीमा की तो पिशाच का नाम सुन कर रूह काँप उठती है. "डरो मत उसका कुछ ना कुछ किया जाएगा." "क्या करेंगे आप." "देखते हैं क्या हो सकता है...तुम घर पर ही रहो मेरी चिंता करने की ज़रूरत नही है" "नही स्वामी जी...मुझे डर ज़रूर लग रहा है पर मैं आपका साथ नही छोड़ूँगा." "जैसी तुम्हारी मर्ज़ी...मैं अभी घर जा रहा हूँ...नींद आ रही है बहुत. शायद वो पिशाच रात को ही आएगा. मैं थोड़ा शो लेता हूँ...कोई भी बात हो तो मुझे खबर करना." "जी स्वामी जी...आप चिंता ना करें" भीमा ने कहा. प्रेम अपने घर की तरफ चल दिया. जब वो घर पहुँचा तो अपने घर के बाहर साधना को खड़े पाया. "क्या कर रही हो तुम यहा?" प्रेम ने पूछा. "तुम मुझसे नाराज़ हो ना." साधना ने प्यार से कहा. "मैं किसी से नाराज़ नही हूँ...अभी जाओ मुझे शोना है...काफ़ी थक गया हूँ." "क्या मुझसे बिल्कुल भी बात नही करोगे...प्यार करने वाले को इतना नही सटाते" "तुम्हारा प्यार मेरे लिए ज़हर बन गया है...कृपा करके मुझे अकेला छ्चोड़ दो" "मैं तुमसे आखरी बार ही मिलने आई हूँ...आज के बाद तुम्हे परेशान नही करूँगी." साधना की आँखे भर आई. "देखो तुम समझने की कोशिस ही नही कर रही...मैं अब वो प्रेम नही हूँ." "नही मैं अब समझ चुकी हूँ...अपना ख्याल रखना." साधना ने अपनी आँखो के आँसू पोंछते हुवे कहा. "तुम अभी भी नही समझी चली जाओ यहा से...मेरे उपर इन आँसुओ का कोई ज़ोर नही है." "हां तुम स्वामी जो बन गये हो...बहुत उपर उठ गये हो तुम...मैं तो वही की वही रह गयी...चलो छ्चोड़ो मैं चलती हूँ." "तुमसे बात करना बेकार है साधना...मुझे दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि मुझे तुमसे नफ़रत होने लगी है." "स्वामी हो कर नफ़रत...लगता है तुम इतने भी उपर नही उठे हो...भटक चुके हो तुम." "साधना" प्रेम बहुत तेज चिल्लाता है. साधना उसकी आवाज़ सुन कर काँप उठती है और एक कदम पीछे हट जाती है. "अब तुम अपनी हद पार कर रही हो...इतनी कड़वाहट मत भरो हमारे रिश्ते में कि हम फिर कभी एक दूसरे को याद भी ना करें." "मुझसे जो भी ग़लतिया हुई है उसके लिए मुझे माफ़ करना" साधना कह कर चल दी. प्रेम ने अपने घर का दरवाजा खोला. पर वो अंदर जाने की बजाय उछल कर पीछे आन गिरा. वो इतनी ज़ोर से गिरा कि साधना को भी उसके गिरने की आहट सुनाई दी. "प्रेम!" साधना चील्लायि. प्रेम इतनी ज़ोर से ज़मीन पर गिरा था कि उसकी आँखो के आगे अंधेरा छाने लगा था. साधना की चीन्ख सुन कर आस पड़ोस के लोग भी बाहर आ गये. प्रेम के घर से पिशाच बाहर आया और प्रेम के सर के पास झुक कर बोला, "खेलना चाहते थे तुम हा...आओ जंगल में जाकर खेलते हैं." "हे कौन हो तुम." साधना चील्लायि. "पिशाच से उसके बारे में नही पूछते अपनी चिंता करते हैं...हा...हा...हे...हे...आज इस बहादुर लड़के का माँस खाउन्गा." पिशाच की बाते सुनते ही सभी लोग वापिस अपने घरो में घुस्स गये. "बुजदिल कही के सब भाग गये...मुझे ही कुछ करना होगा." साधना ने कहा. साधना ने एक पत्थर उठाया और निशाना लगा कर पिशाच के सर पर दे मारा. "पत्थर मारती है रुक ज़रा पहले तुझे ही खाता हूँ." पिशाच ने कहा. प्रेम को छ्चोड़ कर पिशाच साधना की तरफ बढ़ता है. "नही...नही...मैने प्रण लिया था कि रात होने से पहले इस लोंडे को खाउन्गा...तुझे छ्चोड़ता हूँ अभी पर अगली बार तुझे ही खाउन्गा हे..हे..हा..हा. आज बस इसका माँस खाना है मुझे" पिशाच ने प्रेम को कंधे पर उठाया और वाहा से गायब हो गया. वो प्रेम को लेकर जंगल में अपने ठीकाने पर पहुँच गया. "ये तो प्रेम को लेकर गायब हो गया हे भगवान अब क्या होगा?" साधना सहम उठती है. साधना मंदिर की तरफ भागती है. "मुझे ये बात पंडित जी को बतानी होगी" साधना भागते हुवे सोचती है. ........................................... भीमा इस सब से अंजान वापिस घर की तरफ चल देता है. वो घर पहुच कर सीधा टाय्लेट की तरफ बढ़ता है. जैसे ही वो टाय्लेट का परदा हटाता है वो अचंभित हो जाता है. सामने रेणुका नहा रही थी. रेणुका भी भीमा को देख कर सकपका जाती है. भीमा की नज़रे कुछ ही पॅलो में रेणुका के शरीर का भरपूर नज़ारा ले लेती हैं. रेणुका के गोल-गोल उभारो से टपकता पानी भीमा को मदहोश कर देता है. उसे ऐसा लगता है जैसे की उभारो से अमृत टपक रहा है, जिसे आगे बढ़ कर पीना चाहिए. रेणुका की योनि पर पानी की कुछ बूंदे ऐसी लगती हैं जैसे सुबह सुबह घास पर ऑश की बूंदे. भीमा का लिंग तन कर हार्ड हो जाता है और वो उसकी धोती में उभार बना देता है. रेणुका भीमा को देखते ही नज़रे झुका लेती है... लेकिन नज़रे झुकाते ही उसकी नज़र भीमा की धोती में लिंग के बनाए हुवे उभार पर पड़ती है. ये सब एक सेकेंड से भी कम वक्त में होता है. रेणुका तुरंत घूम जाती है. "भीमा परदा छोड़ो." भीमा को होश आता है और वो परदा छोड़ देता है. लेकिन परदा गिरने तक उसकी नज़रे रेणुका के खूबसूरत नितंबो को निहार ही लेती हैं. "ये मैने क्या किया...मुझे सोचना चाहिए था कि मेम्साब अंदर हो सकती है. अब मैं घर में अकेला नही हूँ कि जब चाहे कही भी घुस जाउ." भीमा अपने बर्ताव पर पछताता है. भीमा विचलित हो उठता है और वाहा से चला जाता है. "क्यों हो रहा है मेरे साथ ऐसा...मेम्साब क्या सोचेंगी मेरे बारे में" भीमा सोचता हुवा घर से काफ़ी दूर निकल आता है. "स्वामी जी के पास ही चलता हूँ...उनके घर के बाहर बैठा रहूँगा." जब भीमा प्रेम के घर पहुँचता है तो पाता है कि वाहा आस पास सभी लोग दरवाजा बंद करके घरो में बैठे हैं और प्रेम के घर का दरवाजा खुला पड़ा है. भीमा घर में झाँक कर देखता है. "स्वामी जी क्या आप सो गये." भीमा कहते हुवे अंदर आ जाता है. भीमा घर में हर तरफ प्रेम को ढून्दता है पर प्रेम उसे कही नही मिलता. "कहा गये स्वामी जी...कही मंदिर तो नही गये." भीमा मंदिर की ओर चल देता है. केसव पंडित साधना को मंदिर की सीढ़ियों पर ही मिल जाता है. "पंडित जी अनर्थ हो गया...वो...वो...पिशाच प्रेम को उठा कर ले गया?" "क्या!" केसाव पंडित सदमे के कारण सीढ़ियों पर लूड़क जाता है. "पंडित जी!" साधना चील्लाति है. केसव पंडित सीढ़ियों से लूड़कता हुवा नीचे ज़मीन पर आन गिरा. तब तक भीमा भी वाहा पहुँच जाता है. "क्या हुवा इन्हे" भीमा ने पूछा. "प्रेम के बारे में सुन कर लड़खड़ा कर गिर गये." साधना ने कहा. भीमा केसव पंडित को उठाता है. लेकिन केसव पंडित सर पकड़ कर वही बैठ जाता है. "क्या हुवा स्वामी जी को." भीमा ने साधना से पूछा "पिशाच उन्हे उठा कर ले गया...पता नही कहा." साधना ने कहा. "नही नही ऐसा नही हो सकता...स्वामी जी के साथ ऐसा हरगीज़ नही हो सकता." भीमा को विश्वास नही हुवा. "सब कुछ मेरी आँखो के सामने हुवा है भीमा. मैने खुद सब कुछ अपनी आँखो से देखा है." "हे भगवान ये तो बहुत बुरा हुवा. अब क्या होगा?" भीमा ने कहा. "आस पड़ोस के लोग तो सभी घरो में घुस्स गये...अब हमें ही कुछ करना होगा." "कुछ भी करने का फ़ायडा नही है...पिशाच उसे नही छोड़ेगा." केसव पंडित ने कहा. वो ज़मीन पर सर पकड़ कर बैठा था. "बहुत समझाया था मैने प्रेम को कल पर वो नही माना. पिशाच का कोई कुछ नही बिगाड़ सकता." "आप प्रेम के पिता हो कर ऐसा बोल रहे हैं. कुछ तो उम्मीद रखनी चाहिए आपको." साधना ने कहा. "जो सच है...उसे स्वीकार कर रहा हूँ...तुम दोनो भी स्वीकार कर लो...शायद भगवान की यही ईच्छा है." "ऐसा कैसे हो सकता है...कोई तो रास्ता होगा प्रेम को बचाने का" साधना ने कहा. "एक रास्ता है लेकिन वो बहुत मुश्किल है." केसव पंडित ने कहा. "क्या रास्ता है?" साधना ने पूछा. "मंदिर में भोले नाथ की मूर्ति के हाथ में जो छोटा सा त्रिशूल है...उसे उस पिशाच की नाभि में मारना होगा. पर वो पिशाच ऐसा हारगीज़ नही होने देगा. और जब तक पिशाच जींदा है...प्रेम का बचना मुश्किल है. क्या पता अब तक उसने उसे मार भी दिया हो." केसव पंडित ने कहा. "वो प्रेम को मारने की जल्दी में नही था. वो उसे उठा कर ले गया है. मुझे उम्मीद है कि प्रेम अभी जींदा होगा." साधना ने कहा. "पर हमें ये भी तो नही पता कि वो पिशाच स्वामी जी को कहा ले गया है." भीमा ने कहा. "पिशाच जंगल में रहना पसंद करते हैं. वो ज़रूर प्रेम को जंगल में ले गया होगा." केसव पंडित ने कहा. "हमें देर नही करनी चाहिए...पंडित जी मुझे वो त्रिशूल दे दीजिए...मैं करूँगी ख़ात्मा उस पिशाच का" साधना ने कहा. "त्रिशूल तो ले जाओ...पर मुझे नही लगता कि कुछ कर पाओगे तुम." केसव पंडित ने निरासा भरे शब्दो में कहा. केशव पंडित धीरे से उठा और मंदिर में आकर भोले नाथ की मूर्ति से त्रिशूल निकाल कर साधना को दे दिया. "भीमा क्या तुम मेरे साथ चलोगे जंगल में" साधना ने पूछा. "हां हां बिल्कुल ये भी क्या पूछने की बात है" भीमा ने कहा. "चलो फिर हमें वक्त बर्बाद नही करना चाहिए." साधना ने कहा. "चलो मैं तुम्हारे साथ हूँ." भीमा उत्साह से बोला. "मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ." केसव पंडित ने कहा. "नही पंडित जी आप रहने दीजिए आप ठीक से चल भी नही सकते...आप यही रुकिये हम चलते हैं. हमारा जंगल में जल्द से जल्द पहुँचना ज़रूरी है...और फिर हमें पिशाच को ढूंडना भी है." साधना ने कहा. "नही मैं चलूँगा...भीमा तुम मुझे सहारा दो" केसव पंडित ने कहा. साधना समझ जाती है कि केसव पंडित के साथ होने से वो जंगल में पहुँचने में लेट हो जाएगी. "भीमा तुम पंडित जी को लाओ मैं आगे बढ़ती हूँ." साधना त्रिशूल ले कर जंगल की तरफ भागती है. "अरे रूको तुम अकेली क्या करोगी" केसव पंडित पीछे से चील्लाता है. "ये सब सोचने का वक्त नही है पंडित जी आप समझ नही रहे हैं" साधना भागते हुवे कहती है. भीमा केसव पंडित को सहारा देता है और उन्हे लेकर जंगल की तरफ बढ़ता है. "पंडित जी वो ठीक कह रही थी आपको यही रुकना चाहिए था" भीमा ने कहा. "मेरे बेटे की जींदगी ख़तरे में है...मैं यहा रुक कर क्या करूँगा." साधना उन दोनो से काफ़ी आयेज निकल आती है और जंगल के बिल्कुल करीब पहुँच जाती है. "कहा ले गया होगा वो प्रेम को...किस तरफ जाउ" साधना जंगल के बाहर खड़ी सोचती है. साधना कुछ निर्णय नही ले पाती लेकिन फिर भी वो जंगल में घुस्स जाती है. वो पीछे मूड कर देखती है,"शायद काफ़ी पीछे रह गये वो...इंतेज़ार करू या आगे बढ़ुँ...नही नही मुझे आगे बढ़ना चाहिए...प्रेम को इस वक्त मदद की शख्त ज़रूरत है." साधना घने जंगल में उतर जाती है...अपने प्रेम के लिए. लेकिन जंगल का सन्नाटा उसके रोंगटे खड़े कर देता है. वो पहली बार इस जंगल में आई है...डरना लाज़मी है. लेकिन वो अपने प्रेम के लिए हाथ में त्रिशूल लिए लगातार आगे बढ़ी जा रही है. "ये तो बहुत बड़ा जंगल लगता है...कहा ले गया होगा वो पिशाच प्रेम को...क्या करू मैं...हे भगवान मेरी मदद करो." ................................................. इधर रेणुका नहा कर कमरे में चुपचाप बैठी है. उसका मन बहुत विचलित हो रहा है. शरम और ग्लानि ने उसके मन को घेर रखा है. "शायद सब मेरी ग़लती है...भीमा ऐसा नही है. मैं ही कल रात बार बार भीमा से चिपक रही थी. किसी भी आदमी का बहक जाना स्वाभाविक है." रेणुका अपना सर पकड़ लेती है. "पर...पर वो बड़ी बेशर्मी से मेरे अंगो को घुरे जा रहा था. परदा छोड़ने को कहा...तब परदा छोड़ा उसने वरना तो देखता रहता मुझे. आने दो इसे इश्कि खबर लेती हूँ...क्या समझता है खुद को. मेरी मदद क्या कर दी...क्या उसे कुछ भी करने की इज़ाज़त मिल गयी...आने दो इसे...पता नही कहा चला गया." रेणुका ने खड़े हो कर खिड़की से झाँक कर देखा. "शायद वो भी शर्मिंदा होगा...तभी चला गया. मुझसे बात तो करके जाता. क्या माफी माँगना फ़र्ज़ नही था उसका...या फिर इतनी शरम आ रही है उसे अब की मेरे सामने नही आना चाहता. जो भी हो आने दो उसे...मैं इस बार अच्छे से खबर लूँगी उसकी." साधना को कुछ भी समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे और क्या ना करे. हर तरफ घाना जंगल था. बड़े बड़े पेड़ थे. दिन में भी जंगल में घने पेड़ो के कारण अंधेरे जैसी हालत हो रही थी. ऐसा सन्नाटा था कि किसी की भी रूह काँप जाए. “प्रेम!” साधना बहुत ज़ोर से चील्लायि. “प्रेम!...तुम कहा हो!” घने जंगल में साधना की आवाज़ बहुत ज़ोर से गूँजी…लेकिन साधना को उसका कोई जवाब नही मिला. “हे भगवान कहा ले गया वो पिशाच मेरे प्रेम को…कुछ तो मदद करो मेरी.” साधना भावुक हो उठी. “ये तो साधना की आवाज़ थी…लगता है स्वामी जी उसे नही मिले अब तक.” भीमा ने कहा “पागल हो गयी है वो… अकेले भागी जा रही है…पिशाच को ढूँढना क्या आसान काम है” “कुछ तो करना ही होगा पंडित जी… जैसे हम चल रहे हैं वैसे तो हम सात जनम तक नही ढूंड पाएँगे स्वामी जी को.” “अगर तुम्हे भी भागना है मुझे छोड़ के तो जाओ…मैं खुद चल सकता हूँ.” “ऐसी बात नही है पंडित जी…मुझे तो बस स्वामी जी की चिंता हो रही है.” “मेरा बेटा है वो मुझे तुमसे ज़्यादा चिंता है उसकी…तुम मुझे सहारा नही दोगे तब भी मैं जाउन्गा ही” “पंडित जी मैं आपका साथ छोड़ कर कही नही जा रहा.” दुर्भाग्य से साधना जंगल के दूसरी तरफ जा रही थी और भीमा और केसाव पंडित दूसरी तरफ. तीनो के दीमाग में चिंता और भय इस कदर हावी था कि सही निर्णय लेना मुस्किल हो रहा था. भीमा, केसव पंडित को सहारा देकर जंगल में आगे बढ़ता रहता है. “पंडित जी कुछ समझ नही आ रहा. ना तो स्वामी जी का कुछ पता चल रहा है और ना ही साधना का…कीधर जायें हम…ये तो बहुत बड़ा जंगल है.” “सब उस पागल लड़की की ग़लती है…त्रिशूल भी साथ ले गयी…मुझे तो अब हर तरफ बस अंधेरा ही दीख रहा है.” चलते चलते भीमा और केसव पंडित थक जाते हैं. कोई तीन घंटे वो लगातार चलते रहे लेकिन ना उन्हे साधना मिली, ना प्रेम और ना ही पिशाच. “लगता है हम भटक गये पंडित जी.” भीमा ने कहा. “सही कह रहे हो…वो पागल लड़की ना जाने कहा होगी” “अब क्या करें हम पंडित जी…शाम होने को है अब तो…जल्दी ही अंधेरा हो जाएगा. हमें किस तरफ जाना चाहिए…मुझे तो कुछ समझ नही आ रहा.” “बात ये है कि अब पिशाच को ढूँढे या उस पागल लड़की को…एक ही हथियार था हमारे पास वो भी वो लेकर भाग गयी…अब पिशाच मिल भी गया तो हम क्या बिगाड़ लेंगे उसका.” केशव पंडित और भीमा दोनो के चेहरे पर निराशा उभर आती है लेकिन फिर भी वो दोनो आगे बढ़ते रहते हैं. …………………………………………. इधर साधना चलते चलते जंगल के बिल्कुल बीचो-बीच पहुँच गयी थी. “हे भगवान लगता है अंधेरा होने वाला है और प्रेम का अभी तक कुछ आता पता नही…अगर प्रेम को कुछ हो गया तो मैं भी इसी जंगल में अपनी जान दे दूँगी.” साधना ये सब बोल ही रही थी कि उसे किसी के हासणे की आवाज़ सुनाई दी. “हा…हा…हा…हे…हे…क्यों कैसा लग रहा है अब. तुम तो बड़ी जल्दी बेहोश हो गये थे. कब से इंतेज़ार कर रहा हूँ कि तुम कब होश में आओ और मैं तुम्हे खाना शुरू करूँ…बताओ कहा से शुरू करूँ…इन हाथो से शुरू करूँ क्या जिनसे तुमने मेरी आँख में धूल भर दी थी. अभी तक आँखो में चरमराहट है…क्या डाला था तुमने मेरी आँख में बताओ.” प्रेम ज़मीन पर पड़ा था और उसके दाई तरफ पिशाच बैठा था. प्रेम ने चारो तरफ देखा. हर तरफ बड़े-बड़े पेड़ थे. इतना घना जंगल प्रेम ने पहले कभी नही देखा था. प्रेम ने उठने की कोशिस की लेकिन वो उठ नही पाया. ना वो अपने हाथ हिला पाया और ना ही टांगे. “क्या हुवा उठना चाहते हो उठो उठो…हा...हा…हे…हे...अच्छा खेल है ना. बताओ कैसा लग रहा है.” पिशाच ने कहा. “तुम बचोगे नही…मैं तुम्हे जींदा नही छोड़ूँगा” प्रेम गुस्से में बोला. “कौन मारेगा मुझे तुम..हा.” पिशाच बोखला गया और प्रेम के सर पर उसने अपना एक हाथ दे मारा. हाथ का वार ऐसा था जैसे की कोई हथोदा पड़ा हो. प्रेम के सर से खून बहने लगा…और वो फिर से बेहोश हो गया. “अफ…ये तो फिर से लूड़क गया…मुझे भूक लगी है…पर इसे तभी खाउन्गा जब ये होश में आएगा. इसे अपने शरीर में मेरे दाँत गढ़ते हुवे महसूस होने चाहिए…तभी मज़ा आएगा मुझे…मेरी आँख में धूल झोन्क्ता है…हा.” क्रमशः.........................
|