RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
वर्षा को पेड़ के नीचे कुछ हलचल महसूस होती है. वो धीरे से गर्देन घुमा कर देखती है, उसकी साँस अटक जाती है.
पेड़ के नीचे लकड़बघा घूम रहा था. शायद उशे पेड़ पर किसी के होने की भनक लग गयी थी.
वर्षा, मदन को कस के पकड़ लेती है
मदन वर्षा के कान में धीरे से कहता है, “डरो मत, कुछ नही होगा, हम यहा पेड़ पर सुरक्षित हैं”
वर्षा, मदन की और देखती है और मदन आगे बढ़ कर वर्षा के माथे को चूम लेता है और धीरे से कहता है, “तुम सो जाओ, ये सब यहा चलता रहेगा, ये जंगल है यहा ये सब आम बात है”
6थ जन्वरी 1901
उधर गाँव में :---
कोई अचानक आपकी जींदगी से चला जाए तो बहुत अफ़सोश होता है. साधना अपनी मा की जलती चिता को देख कर आँसू बहाए जा रही है. सरिता अभी भी अपने उपर हुवे ज़ुल्म के सदमे में है. गुलाब चंद सर पकड़े ज़मीन पर बैठा है और अपनी बीवी की जलती चिता को देख रहा है. हर तरफ गम का माहॉल है.
वाहा गाँव के सभी लोग मौजूद हैं. प्रेम मन ही मन कुछ सोच रहा है. अचानक वो ज़ोर से सभी लोगो को कहता है, “अब वक्त आ गया है कि हम हर ज़ुल्म और अन्याय के खिलाफ एक जुट हो जायें, कल अगर गाँव के थोड़े से लोग भी हिम्मत करते तो ये अन्याय नही होता. आप सब लोगो के सामने एक औरत को जॅलील किया गया और आप सब तमाशा देखते रहे”
“बस-बस तुम ज़्यादा बात मत करो, तुम्हारा बाप खुद उस ठाकुर के साथ रहता है और तुम हमे बाते सुना रहे हो” – रामू लोहार ने कहा
“पहले स्वामी जी की बात तो सुन लो” – धीरज ने कहा
“स्वामी जी !! कौन स्वामी जी ?” – रामू लोहार ने पूछा
“आप जिन्हे प्रेम के नाम से जानते हैं वही हमारे स्वामी जी हैं, पीछले एक साल से अपना ध्यान-व्यान छ्चोड़ कर देश-प्रेम की खातिर समाज सुधार कर रहे हैं, ताकि हम सब उँछ-नीच, जात-पात, धर्म-भरम भुला कर अंग्रेज़ो का मुकाबला कर सकें” – धीरज ने कहा
“ये तो अनोखी बात हुई, हम तो सोचते थे कि ये पंडित का लड़का यहा कोई मज़ाक कर रहा है, बोलो बेटा… हम सुन रहे हैं”—रामू लोहार ने कहा
“हाँ तो मैं ये कह रहा था कि हमे एक जुट होना होगा. बात सिर्फ़ इस गाँव के ठाकुर की नही है. ठाकुर की अकल तो हम सब आज ठीकाने लगा सकते हैं. हमारी असली लड़ाई अंग्रेज़ो के खीलाफ है, जिन्होने हमे गुलाम बना रखा है, लेकिन उस से पहले हमे अपने सभी भेद-भाव भुला कर एक होना होगा…. उँछ-नीच, जात-पात की जंजीरो को तोड़ देना होगा, तभी हम एक होकर विदेशी ताक्तो का मुकाबला कर पाएँगे. हम 1857 का संग्राम हार गये क्योंकि हम में एकता नही थी वरना आज अंग्रेज इस धरती पे ना होते. हमने छोटे-छोटे टुकड़ो में यहा वाहा लड़ाई लड़ी और नतीज़ा ये हुवा कि हम बुरी तरह हार गये”
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