RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“मंदिर जा रहा हूँ साधना…. पिता जी से मिल आउ, वरना वो कहेंगे की इतने दीनो बाद वापिस आया और आ कर देखा भी नही” --- प्रेम ने कहा
“ठीक है… पर अब खेत में मत जाना”
“एक बात बताओ साधना ?”
“क्या खेत में पहले भी कभी ऐसा हुवा है ?”
“नही प्रेम.. पहले तो कभी ऐसा नही हुवा ?”
“क्या मदन पहले भी कभी यू बिना बताए कही गया है ?”
“नही प्रेम.. भैया कभी ऐसे बिना बताए कही नही गये… मुझे बहुत डर लग रहा है… कही भैया किसी मुसीबत में ना हो ?”
“तुम चिंता मत करो… में देखता हूँ कि क्या चक्कर है ?”
“हां पर तुम अब रात को खेत में मत जाना”
“नही अभी मैं मंदिर जा रहा हूँ.. फिर घर जाउन्गा… सभी से एक बार मिल लूँ. सुबह देखेंगे कि क्या चक्कर है इस खेत का”
“प्रेम वो ठाकुर के आदमी दुबारा आए तो ?”
“गोविंद यही है साधना और धीरज और नीरज भी यही हैं. वैसे गोविंद के होते किसी बात की चिंता नही है. मैं भी जल्दी ही आ जाउन्गा”
“ठीक है प्रेम अपना ख्याल रखना”
प्रेम मंदिर की तरफ चल पड़ता है.
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सतपुरा के जंगल में रात के वक्त किसी इंसान का होना अजीब सी बात है. पर जब महोबट से भरे दिल जंगल में फँस जायें तो क्या कर सकते हैं
“ये हम किस मुसीबत में फँस गये मदन ?”
“घबराओ मत वर्षा.. भगवान जो करते हैं आछे के लिए करते हैं”
“क्या अछा है इसमे… सुबह से हम भूके प्यासे भटक रहे हैं… पता नही हम कहा हैं और कहा जा रहे हैं”
“ऐसे दिल छोटा करने से कुछ हाँसिल नही होगा वर्षा.. वैसे भी हमे घर से तो भागना ही था”
“पर अचानक तो नही… और वो भी इस जंगल के रास्ते तो हरगिज़ नही, पता है ना तुम्हे ये जंगल कितना भयानक है”
“रूको” – मदन ने कहा
“क्या हुवा अब ?”
“ये पेड़ ठीक रहेगा.. चलो रात इस पेड़ पर बीताते हैं… सुबह देखेंगे क्या करना है ?”
“क्या ? रात हम इस पेड़ पर बीताएँगे” – वर्षा हैरानी में पूछती है.
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