RE: XXX Hindi Kahani घर का बिजनिस
घर का बिजनिस --6
मैं- “देखो बुआ, आप इस माहौल से गुजर चुकी हो। मुझे नहीं लगता कि वो आदमी जो कि दीदी की सील खोलने के पैसे दे रहा है, उस वक़्त वहाँ किसी का रुकना पसंद करेगा और अगर उसने कुछ नहीं कहा तो हो सकता है कि दीदी ही बुरा मान जाये…”
अम्मी- “अंजली भला क्यों बुरा मानेगी? वो तो मेरी अच्छी बेटी है…”
मैं- “देखो अम्मी, मैं मानता हूँ कि वो आपकी बेटी है, आपकी किसी बात से इनकार नहीं करेगी। लेकिन ये भी तो सोचो कि दीदी का पहली बार होगा और वो एक तो एक अंजान आदमी के साथ होंगी और फिर हममें से वहाँ कोई होगा तो उसे कितनी शरम आएगी…”
बापू- “लेकिन बेटा, फिर भी वहाँ उसके पास किसी ना किसी का होना तो जरूरी है ना… चाहे बाहर ही सही…”
मैं- बापू, पहले तो आप ये बताओ कि दीदी को हमने भेजना कहाँ है?
बापू- “यार कहीं बाहर नहीं जाना है… वो जो मैंने तुम्हें फ्लैट की चाबी दी है ना वहाँ अंजली ही पहला काम करेगी…”
मैं- तो फिर परेशानी किस बात की है? मैं तो वहाँ हूँगा ही… आप लोग ऐसे ही परेशान हो रहे हैं…”
अम्मी- “ठीक है बेटा, तुम ऐसा करो कि सुबह अंजली को अपने साथ ही ले जाना। मैं उसे समझा दूँगी कि वो तुम्हारे साथ जाने से पहले थोड़ा तैयार हो जाये और एक अच्छा सा सूट भी साथ में ले जाये जो कि वहाँ जाकर पहन ले। क्योंकि यहाँ से जाते हुये अंजली को ऐसे कपड़ों में अगर किसी ने देख लिया तो तरह-तरह की बातें बनाता फिरेगा…”
अम्मी की बात से सबने इत्तेफाक किया और फिर बुआ उठी और मेरा हाथ पकड़कर बोली- “चलो आलोक तुम्हारे रूम में चलते हैं…”
अम्मी- क्यों? जो करना है यहाँ ही कर लो ना? हमसे कौन सा परदा है तुम्हें?
बापू- “हाँ भाई आलोक, ऐसा करो कि आज यहाँ हमारे रूम में ही सो जाओ तुम दोनों…”
अम्मी बापू की तरफ देखते हुये बोली- “मैं तो आज काफी थक गई हूँ। मैं आलोक के रूम में जाकर सो जाती हूँ और आप लोग यहाँ सो जाओ…”
अम्मी के जाते ही बापू ने बुआ की तरफ देखा और बोले- “चलो भाई, दरवाजा तो लाक कर दो…”
बुआ उठी और जाकर दरवाजा लाक करके मेरे पास आ गई और मुझे हाथ से पकड़कर बापू के पास बेड पे ले गई और बोली- “आलोक, दिन में तुमने पूछा था ना कि मुझे किसके साथ मजा आता है तो आ जाओ आज दिखाती हूँ तुम्हें…”
बुआ के इतना बोलते ही बापू ने बुआ को हाथ से पकड़ लिया और अपनी तरफ खींच लिया जिससे बुआ बापू के ऊपर गिर सी गई और फिर दोनों बहन-भाई किस करने लगे और बापू ने किस करने के साथ ही अपना एक हाथ पीछे करके बुआ की गाण्ड पे रख दिया। ये नजारा देखकर मेरा लण्ड भी शलवार में खड़ा हो गया और मैंने भी अपना हाथ आगे बढ़ा दिया और बुआ की कमर को सहलाने लगा। कुछ देर किस करने के बाद बापू ने बुआ को थोड़ा पीछे किया और बुआ की कमीज पकड़कर उतार दी।
और मेरी तरफ देखकर कहा- “आलोक, मेरी बहन की शलवार भी निकाल दो…”
बापू की बात ने मेरे लण्ड में आग सी लगा दी और मैंने अपने हाथ आगे बढ़ा दिए और बुआ की इलास्टिक वाली शलवार खींचकर नीचे गिरा दी और बुआ को नीचे से भी नंगा कर दिया और अपने होंठ बुआ की नंगी और गोरी गाण्ड पे रखकर एक चुम्मा ले लिया।
मेरे इस तरह चूमने से बुआ सिहर उठी और आअह्ह… भाई तेरा बेटा तो बड़ा हरामी है। देखो मेरी गाण्ड को चूम रहा है।
बापू ने हँसते हो बुआ की ब्रा से उसकी चूचियां को बाहर निकाल दिया और हाथों में पकड़कर बोले- आखिर बेटा किसका है?
बुआ ने कहा- “हाँ, जैसा मेरा हरामी भाई है, वैसा ही उसका बेटा भी होगा ना हेहेहेहेहे…”
अब मैं उठा और अपने कपड़े उतार दिए और बुआ की तरह नंगा हो गया और बुआ जो कि बापू के ऊपर झुकी उनसे अपनी चूचियां चुसवा रही थी, पीछे से उनकी टाँगों को थोड़ा खोला और अपना मुँह घुसाकर बुआ की फुद्दी पे अपनी जुबान घुमाने लगा। ऐसा करते वक़्त मेरा मुँह तो बुआ की फुद्दी को चाट रहा था लेकिन मेरी नाक बुआ की गाण्ड के सुराख के ऊपर थी और उसमें से आने वाली महक मुझे और भी दीवाना कर रही थी। मेरे इस तरह बुआ की फुद्दी चाटने से बुआ और भी गरम हो गई।
बुआ सिसकी- आअह्ह… आलोक, ये क्या कर रहा है बेटा? उन्म्मह… भाई देखो तुम्हारा बेटा क्या कर रहा है?
बापू ने बुआ की चूचियों से मुँह हटाकर मेरी तरफ देखा और मुझे इस तरह बुआ की गाण्ड में घुसा देखकर बापू भी खुश हो गये और बोले- “शाबाश बेटा, ये हुई ना बात… खा जा अपनी बुआ की फुद्दी को… साली की फुद्दी में बड़ी गर्मी है…”
कुछ देर इसी तरह चाटने के बाद पता नहीं मेरे दिल में क्या आई कि मैंने अपना मुँह थोड़ा ऊपर किया और अपनी जुबान को बुआ की गाण्ड के सुराख पे घुमा दिया जिससे मुझे तो बड़ा अजीब सा महसूस हुआ लेकिन बुआ तड़प ही उठी।
बुआ की गाण्ड पे जुबान लगते ही बुआ- “ऊओ… आलोक उन्म्मह… हाँ बेटा, यहाँ ही चाटो… बड़ा अच्छा लगा है बेटा आअह्ह…”
बापू ने कहा- क्या हुआ साली? इतना क्यों चिल्ला रही है? आज हम बाप बेटा तेरी फुद्दी में लगी आग को इतना ठंडा करेंगे कि तुझे नानी याद आ जायेगी हरामजादी कुतिया…”
अब मैं बड़े जोरों से बुआ की गाण्ड और फुद्दी पे अपनी जुबान घुमाने लगा था जिससे बुआ और भी मचल रही थी- “और आअह्ह… आलोक, खा जाओ अपनी बुआ की फुद्दी और गाण्ड को… उन्म्मह… भाई मैं जाने वाली हूंन… आअह्ह… म्माआ… मैं गई…” और इसके साथ ही बुआ के जिश्म को झटका सा लगा और बुआ की फुद्दी से मनी का फावरा सा निकला जो कि कुछ तो बापू के ऊपर गिरा जो कि बुआ के नीचे लेटे हुये थे और बाकी को मैं अपनी जुबान से लप्पर-ललप्पर करके चाट गया।
|