Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
09-03-2018, 09:19 PM,
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
अवतार फूफा - अच्छा अच्छा बताता हूँ. दरअसल आज शाम को सब चाइ पीने बैठे थे तो हमारी पत्निओ के बीच मे बातें हुई थी. तो आपकी बात चली...और कंचन ने भाभी जी से कहा कि आप अभी भी इस उमर मे फिट और स्मार्ट लगते हो. उसपे भाभिजी ने कहा कि आप साथ साथ रंगीले भी हो. बस वहाँ से बात चली तो कंचन को पता चला कि आपका और आपकी नौकरानियो का काफ़ी चक्कर चलता रहा है. आपकी पत्नी और बच्चों को जब भी आपके गाओं जाके रहना होता था तब उन्हे पता रहता था कि पिछे से आप फुल अयाशी करोगे. ये सब बातें कंचन ने मुझे यहाँ आने से पहले कही. दरअसल कंचन को आपके बारे मे जितना आज से पहले पता था उसके मुकाबले आप और भी ज़ियादा बढ़ चढ़ के निकले तो शायद ....वो आपसे जीयादा इंप्रेस्ड थी......इसलिए उसने भाभिजी से ये सब बातें निकलवाई.

अवतार फूफा जी की बातें सुन के राकेश अंकल चुप हो गए. बाबूजी भी चुप बैठे थे. मेरा ध्यान उनकी तरफ लगा देख के शायद राखी भाभी समझ गई और उन्होने मुझे टाँग पे छेड़ा. मैं उनकी तरफ देखा और मुस्कुराइ. तभी कमरे से कंचन बुआ, मा और कविता आंटी आ गए. मा और कंचन बुआ को देखते ही मेरी आँखें जोरों से खुल गई.....और साथ ही साथ बाकी सब की भी. दोनो ने अपनी साड़ी उतार के नाइट गाउन पहेन लिए थे. मा ने काले रंग का झीनी सी नाइटी पहनी थी और बुआ ने एक फ्लॉरल प्रिंट वाला गाउन. मा की नाइटी सिल्क की थी और बुआ का गाउन उनके घुटने से थोड़ा नीचे आके ख़तम हो गया था.

उनको देख के शोभा दीदी के मूह से एक आह निकली और उन्होने अपने मूह पे हाथ रख दिया. दूसरी तरफ शोभा दीदी के पति प्रकाश जीजू ने एक हल्की सी सीटी मार दी. मा और बुआ जी उनकी तरफ देख के मुस्कुराइ और मा ने प्रकाश जीजू की तरफ थप्पड़ का इशारा किया. इस्पे उन्होने मुस्कुराते हुए अपना गाल एक तरफ से दिखाया. तीनो कुर्सियाँ लेके हमारे बीच आ गए और मेरा ध्यान बाबूजी और उनके दोस्तों से हट गया.

कविता आंटी - अर्रे कंचन देख ले तेरे जमाई को....कैसे हमारी जैसी बूढ़ी औरतों पे लाइन मारता है.....देखा कैसे सीटियाँ मार रहा है....शोभा तूने ठीक से संभाला नही है अपने पति को.

शोभा दीदी - अर्रे आंटी मैं क्या करूँ.....ये तो शुरू से ही ऐसे हैं...आपको पता है हमारे बीच उमर का गॅप है.....सो ये उस हिसाब से हमेशा से ही बड़ी औरतों के चक्कर मे रहते हैं. हमारे यहाँ और मेरे ससुराल मे ऐसी कोई 40 - 50 साल वाली नही है जो इनके हाथों से ना छिड़ी हो....सबको बातों से या हाथों से छेड़ते रहते हैं.... इसलिए मैने भी शादी के बाद जल्दी ही अपना मन बना लिया था कि मैं इन्हे रोकूंगी नही और अपने मज़े लूँगी.......

कविता आंटी - आआहए हाए....क्या लड़की है तू.....पति को खुले सांड़ की तरह छोड़ दिया और खुद भी मज़े लेती है......कंचन क्या लड़की पैदा की है तूने.....शरम ही नही है इसे....

कंचन - अरी कविता इसमे क्या है.....करने दे ना ......देख तूने भी तो जवानी मे मज़े लए होंगे........तुझे भी तो पति के अलावा और मर्द पसंद आए होंगे....इसे भी हैं....और मेरा दामाद तो हीरा है हीरा....कभी भी किसी के साथ ज़ोर ज़बरदस्ती नही करता ...जो मान जाए बस उसी के साथ शरारत करता है.....और फिर सब मर्द ऐसे होते हैं और सभी औरते भी...बस फरक इतना है कि मर्द कह लेते हैं हम कहती नही.

सरला - हां ये बात तो है...मर्द कह लेते हैं और कर भी लेते हैं....हम कहती नही और करती भी नही.

मा की ये बात सुन के हम तीनो बहुओं की हँसी छूट गई. शोभा दीदी और कविता आंटी हमे आँखें फाड़ के देखने लगी और मा ने मूह बनाया. कंचन बुआ मंद मंद मुस्कुरा रही थी. इन सबके बीच मैने नोटीस किया कि सभी मर्द अब धीरे धीरे बातें कर रहे थे और बार बार चोरी छुपे या खुल के हमारे ग्रूप की तरफ देख रहे थे.

इतने मे राकेश अंकल उठ के हमारी तरफ आए और कविता आंटी के नज़दीक खड़े हुए. हम सब और सभी मर्द उनकी तरफ देखने लगे. अंकल ने पी थी पर उन्हे जीयादा चढ़ि नही थी. हालाँकि उनकी आँखें लाल थी पर कदम सही से पड़ रहे थे और बातें भी सॉफ सॉफ कह रहे थे. उन्होने कविता आंटी को रूम में चलने को कहा. कहा कि कुच्छ बात करनी है.

सरला - आअए हाए क्या बात है राकेश जी.....बड़ी जल्दी में हो.....इतना क्या ज़रूरी काम है .....कविता को इतने दिन बाद मौका मिला है आपसे दूर रहने का....एंजाय करने दो इसे. हां बहुत ज़ियादा ज़रूरी है तो मैं चलूं...मुझसे बात कर लेना......हे हे..हे हे...(मा को भी थोड़ी सी चढ़ गई थी)

राकेश अंकल - अर्रे सरला जी ऐसा कुच्छ नही है......और हां अगर आपको ज़रूरी बात करनी है तो मैं रेडी हूँ....पर पहले कविता से कर लूँ फिर आपका नंबर........(राकेश अंकल थोड़े से सीरीयस थे पर मा के साथ पोलाइट रहने की कोशिश कर रहे थे)

कविता आंटी - राकेश अभी रहने दो ना.....(आंटी को शायद लगा कि अंकल चुदाई के मूड में हैं).....थोड़ी देर मे वैसे भी जाना ही है.......हे हे...तब बात कर लेंगे.......क्यों जान....? (आंटी ने आँख मारते हुए अंकल के हाथ को पकड़ा)

राकेश अंकल - नही अभी बात करनी है....ज़रूरी है....जल्दी आ जाओ......मैं रूम में जा रहा हूँ.... और अंकल मूड के रूम की तरफ जाने लगे.

कविता आंटी को पता नही क्या हुआ पर वो थोड़ा खिज गई. उन्होने सबकी तरफ देखा तो मा ने मूह बनाया. कविता आंटी से रहा नही गया और उन्होने वहीं बैठे बैठे अंकल को आवाज़ दी. पर अंकल नही रुके. तब आंटी ने खिज के कहा कि वो नही आ रही और अपनी दारू का ग्लास उठा के एक घूँट में खाली कर दिया. आंटी ने भी 3 पेग के करीब ले लिए थे और वो एक घूँट मे करीब आधा ग्लास पी गई थी. उन्होने मिन्नी भाभी को एक और पेग के लिए कहा और जैसे ही भाभी ने पेग बनाया उन्होने उसे भी एक शॉट मे खाली कर दिया.

हम सब हैरानी से उन्हे देख रहे थे. फिर मैने थोड़ा मूड के देखा तो राकेश अंकल भी खड़े हुए उन्हे देख रहे थे. दोनो की हरकत से सॉफ था कि दोनो में गुस्सा उबल रहा है.

राकेश अंकल - ये सब क्या है कविता. मैने कहा तुमसे बात करनी है...और तुम ये सब नखरे दिखा रही हो.....क्या बात है.

कविता आंटी - कुच्छ नही राकेश...छोड़ दो मुझे....तुम जाओ और रिलॅक्स करो....

राकेश अंकल - नही अब बताना पड़ेगा....मैंसे सिर्फ़ तुमसे बात करनी थी....सिर्फ़ इतना कहा तो क्या ग़लती की...

कविता आंटी - राकेश ग़लती नही की....सिर्फ़ ये कहा कि अभी बात करनी है....मैं हमेशा तुम्हारी बात सुनती आई हूँ....जब चाहो तुम अपनी मर्ज़ी से मुझे चलाते हो...और अपनी मर्ज़ी करते हो.....बस आज नही...

राकेश अंकल - बात ज़रूरी थी इसीलिए कहा था...

कविता आंटी - तो ठीक है जो कहना है यही कह दो....बात को ज़ियादा मत खीँचो......

राकेश अंकल - नही यहाँ नही कह सकता....अकेले में...

कविता आंटी - तो ठीक है फिर रहने दो....यही कहो तो ठीक वरना आगे भी कहने की ज़रूरत नही.

राकेश अंकल चुप हो गए और सबको देखने लगे. सभी सीरीयस थे. आंटी अपने ग्लास से खेल रही थी. उन्हे चढ़ गई थी. राकेश अंकल ने सबको देखा और फिर जैसे उनके सब्र का बाँध टूट गया.

राकेश अंकल - कविता ...कविता ...एक बात बताओ क्या तुम्हे और बच्चों को बिम्ला और मेरे बारे में पता था...? बताओ मुझे....बहुत इंपॉर्टेंट है....ये बात मेरे लए.....

कविता आंटी को जैसे एक ज़ोर का झटका लगा. उन्हे लगा था कि अंकल शायद चुदाई के मूड में हैं और इसलिए ...पर यहाँ तो बात कुच्छ और ही निकली.

कविता आंटी - व्हाट क्या क्या ...क्या कहा तुमने.....तुम मुझसे ये क्या पुच्छ रहे हो...आइ मीन तुम पुच्छ रहे हो कि मुझे और बच्चों को तुम्हारे और बिम्ला के बारे में पता था कि नही......यही ना...बोलो.....यस पता था ....सबको पता था....सुन लिया .....मिल गई शांति.......

आंटी पूरे गुस्से में थी और थोड़ा चिल्ला रही थी और साथ ही साथ उनके आंसूओ बहने लगे. दारू और गुस्से का असर था....सब चुप थे कोई भी हिल नही रहा था....जैसे कोई बॉम्ब गिरा हो.....

राकेश अंकल - पता था तो बताया क्यों नही....पुछा क्यों नही....मुझसे लड़ाई क्यों नही की......क्या इतना ही प्यार बचा था.....हमारे बीच...क्या इतना ही भरोसा रह गया था हमारे बीच......
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