Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
09-03-2018, 09:14 PM,
#92
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
''अर्रे समधन जी.....इतना रांड़पन भी ठीक नही है....मेरे बच्चों को इतना भी मत बिगाड़ो कि कल को मेरे लंड को लेने के देने पड़ जाए.........साली तुम तो कुत्ति हो घर बाहर कहीं भी चुद्वाति फ़िरोगी पर सखी की चूत में तो कुच्छ शराफ़त रहने दो. आज तक मैने इसे बडो नाज़ों से चोदा है पर अब लगता है कि मेरी चुदाइ काफ़ी नही रहेगी इसके लिए. प्लीज़ सरला जी इसे घर की रंडी रहने दो बाहर की मत बनाओ....'' बाबूजी अपना लोडा चुस्वाते हुए सरला की अठखेलिओ को देखते हुए बोले.

''हां हां मैं ही हूँ कुत्ति ...तुम तो शहद के धुले हो...साले बेहेन्चोद तुम हो, समधन चोद तुम हो, बहू चोद तुम हो और यार दोस्तों की तो छोड़ो घर की नौकरानियो को भी नही छोड़ते...और मुझे कहते हो कि मैं रांड़ हूँ. मुझसे बड़े जिगलो तो तुम हो.....उम्म्म्ममम हां संजय बेटा ऐसे ही छेद में उंगली करो...मज़ा आ रहा है...सखी तू अपने इस चोदु ससुर की बातों में ना आना...ये सिर्फ़ तुझे अपनी घरेलू छिनाल बना के रखना चाहता है. बेटी ज़िंदगी लंड लेने और चूत देने का नाम है....तू बस टाइम टू टाइम नए एक्सपेरिमेंट करती रहना .....भाँति भाँति के लंड खाने से ही मज़ा आता है......उम्म्म्मम संजय आराम से बेटा .....काटो नही ...माँस का निपल है बेटे प्लास्टिक का नही...... हां आराम से थोड़ा उंगली भी अंदर बाहर करो........एसस्स्सस्स......ऐसी........उम्म्म्ममममम मुझे रेडी कर दो झरने के लए.....पर झाड़वाना नही बेटा ....मुझे तेरे इस हराम्खोर बाबूजी के मूह में झरना है.'' सरला की गांद हल्के हल्के वाइब्रट कर रही थी. उसकी आवाज़ से उसके बदन की कंपन और गर्मी का एहसास हो रहा था. संजय के सिर को हाथों में दबोचे उसके मूह में अपनी चूचिओ को थेल रही थी..

''हां हां आ जाओ जल्दी से....तुम्हारे चूतरस को तो मैं कई सालों से दीवाना हूँ सरला.....जल्दी आओ तो तुम्हे गाढ़ी सफेद क्रीम एक बार फिर खाने को मिलेगी.....उफ्फ राखी बेटा थोड़ा टटटे भी चूस दे....उउम्म्म्मम मिन्नी लंड के टोपे को छोड़ थोड़ा साइड से चाट इससे नही तो झर जाउन्गा.....'' बाबूजी सिसकियाँ लेते हुए बोले.

''क्या बाबूजी आज सारी क्रीम चुदास आंटी के लिए रखी है....मेरी चुदास जीभ के लिए भी रखो ना इसे....म्‍म्म्ममम स्लूउर्र्ररप्प्प्प....मुझे तो सूपड़ा ही चाहिए .......राखी तुम टट्टों पे लगी रहो अच्छे से .....बाबूजी के टटटे ऐसे गरम रखना कि कम से कम 6 - 7 पिचकारी दें मुझे...फिर तुझे भी पिलाउन्गि.....उउम्म्म्मम पुच्छ पुच्छ ...उउफ़फ्फ़ बाबूजी आपका सूपड़ा नज़दीक से कितना प्यारा लगता है....ऊऊहह हां राजू अच्छे से घस्ससा दो....मज़ा आ गया इतने दिन बाद तुमसे चुदने का.......हमारी दामाद चोद आंटी ने अच्छा सिखा दिया तुम्हे 2 बार में ही......राखी तुझे सुजीत का लोडा कैसा लगा.....बता ना..........उउम्म्म्मम.......'' मिन्नी बाबूजी के लंड का सूपड़ा मूह में भरे भरे बीच बीच में अपनी बात कहती रही. उसकी गांद आज बहुत मस्त लग रही थी. कुतिया बन के अपने पति से चुदे हुए काफ़ी टाइम हो चला था. मम्मे बाबूजी की थाइस पे रगड़ खा खा के लाल हो रहे थे. बीच बीच में राजू और सुजीत दोनो हाथ बड़ा के उनको दबा लेते. यही हाल राखी के मम्मो का भी था.

''उम्म्म्ममम स्ल्लुउर्र्रप्प्प्प...स्लूऊर्रप्प्प्प्प्प....पुच पुकच......भाभी अभी कुच्छ ना पुछो...बस चुद लेने दो. साली रांड़ ने सुजीत को एक्सपर्ट बना दिया है. काफ़ी गहराई तक लंड पेल रहा है. थॅंक यू आंटी......बाबूजी के टटटे फूलने लगे हैं भाभी ...थोड़ा और चॅटा तो जल्दी काम रस निकल जाएगा....तुम टोपे को नही छोड़ना....मूह में दबा लो...एक भी बूँद वेस्ट ना हो.......उउम्म्म्मम मेरे बाबूजी ...मेरे थर्कि बाबूजी......आप रोज सुबह एक बार मुझे टटटे मूह में भर दिया करो सुबह सुबह. कल से ही चालू हो जाना. आपके टटटे मूह में लेने के बाद ही ब्रश किया करूँगी. उम्म्म्मम मेरे अच्छे बाबूजी........स्लूउर्र्रप्प्प्प...स्लूऊर्रप्प्प्प्प......उउंम्म भाभी रेडी रहना अब कभी भी.....पुच्छ पुच्छ पुच्छ पुकच उउंम्म स्लूउर्र्रप्प्प्प....स्लूऊर्रप्प्प.....'' कहते हुए राखी ने बाबूजी के टट्टों पे किस्स की बौछार कर दी.

बाबूजी का लंड और भी अकड़ने लगा और मिन्नी ने सूपड़ा मूह में रख के उसकी आँख को जीभ से कुरेदना शुरू कर दिया. बाबूजी के शरीर में आती हुई अकड़न को देख के सरला की मुनिया भी रेडी हो चली. उसने संजय की उंगली बाहर की और दौड़ के बाबूजी के मूह पे बैठ गई. बाबूजी का ध्यान कुच्छ पल के लिए हटा पर फिर सरला की चुदी चुदाई महकती हुई चूत ने बरबस उनकी जीभ को बाहर निकालने पे मजबूर कर दिया. 5 सेकेंड में ही बाबूजी का लोडा लावा उगलने लगा और उनकी लपलपाति हुई जीभ पे सरला की चूत की बारिश हो गई. सरला ऊऊवन्न्‍ननणणनह आआन्न्न्नह की आवाज़ें करती हुई झरने लगी. उसकी इन्नर थाइस बाबूजी के सिर को हिलने नही दे रही थी.
क्रमशः...............................
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