Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
09-03-2018, 09:12 PM,
#78
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
''बहू अब तू जा और रेस्ट कर. मुझे तेरा जवाब मिल गया और अब मुझे सखी और राखी से अपने तरीके से जवाब लेने हैं. उसके बाद मैं आज रात अपना फ़ैसला तुम लोगों को सुना दूँगा. अगर तुम लोगों को उस फ़ैसले से इनकार होगा तो देखेंगे. अब तुम जाओ..मैं कुच्छ सोचता हूँ. ये सरला का चक्कर भी देखना पड़ेगा..'' आख़िरी सेंटेन्स कहते हुए बाबूजी के चेहरे पे शिकन आ गई और उन्होने एक ठंडी साँस ली.

''ठीक है बाबूजी मैं जाती हूँ ..पर जाने से पहले एक बात आपको बताना ज़रूरी समझती हूँ. जिस औरत को लेके आप परेशान हो रहे हैं उस औरत के भी कुच्छ ऐसे राज़ हैं जो आपको नही पता. मैं ये यकीन से कह सकती हूँ कि अगर आपको वो बातें पता चल जाएँ तो आपकी दुविधा का अंत हो सकता है.'' मिन्नी अपने ब्लाउस के बटन बंद करते हुए बोली.

''क्या मतलब है बहू..सॉफ सॉफ कहो...क्या तुम सरला की बात कर रही हो..?? मेरे, कंचन और तुम्हारे फुफाजी के अलावा ऐसा क्या राज़ है सरला का जो मुझे नही पता..?? बताओ मुझे.'' बाबूजी ने आदेश दिया.

''बाबूजी 2 बातें ध्यान से सोचिएगा कि बच्चों के पैदा होने से पहले सरला आंटी का चेहरा कितना खिला खिला रहता था. और उसकी वजह थी इस घर के मर्द, वो मर्द जिनमे आप शामिल नही थे सिवाए एक बार के शायद. दूसरे जब से बच्चे हुए तब से वो जैसे मुरझा गई हैं. घर के मर्दों से अलग अलग रहती हैं. आपका और उनका रिश्ता समधी समधन का है सबके सामने और कभी कभी लवर्स का पीठ पिछे. पर यहाँ इस घर में 2 या फिर शायद 3 ऐसे मर्द हैं जिन्होने सबकी पीठ पिछे उनके साथ अच्छे ख़ासे संबंध बनाए थे. बस फिलहाल मैं इतना ही कहूँगी. आप सोचिए इन बातों को और अगर कुच्छ समझ ना आए तो मुझे बुला लीजिएगा. मैं सब बता दूँगी.'' मिन्नी थोड़ा सा गुस्से में बोली. बाबूजी का लंड छुड़ाना और उसकी ऑलमोस्ट भीगी हुई चूत को अतृप्त छोड़ देना उसे अच्छा नही लगा था.

इससे पहले कि बाबूजी कुच्छ और कहते मिन्नी उनके कमरे से बाहर चल दी. बाबूजी मूह खोले अवाक उसको जाते हुए देखते रहे और फिर एक गहरी सोच में डूब गए.

शाम को एक बार फिर से ड्रॉयिंग रूम में महफ़िल जमी. सभी सदस्य एक साथ पहुँच गए. बाबूजी और मिन्नी थोड़े सीरीयस मूड में थे. सरला आस यूषुयल थोड़ा बहुत मुस्कुरा रही थी. तीनो बच्चे अपनी अपनी मा के पास थे. राजू और संजय किचन से समान ला रहे थे और सुजीत सबको ड्रिंक्स दे रहा था. आदमियो को विस्की और लॅडीस को शरबत. बच्चों को दूध पिलाने की ड्यूरेशन में तीनो बहुओं ने ड्रिंक्स पे रोक लगा रखी थी. सरला वहीं बैठी तीनो से गप्पें मार रही थी और बीच बीच में मुस्कुरा देती.

बाबूजी थोड़े शांत अपनी जगह पे बैठे सोच रहे थे. सुजीत ने उनकी ड्रिंक साइड टेबल पे रख दी और फिर किचन में चला गया. थोड़ी देर बाद सब इकट्ठे हुए, चियर्स किया और बाबूजी की तरफ देखने लगे. स्नॅक्स का दौर शुरू हुआ. बाबूजी ने एक एक करके सबको गौर से देखा. मिन्नी की नज़रों में गुस्सा और सवाल थे. राखी और सखी नॉर्मल थी. सरला भुजी भुजी थी पर अपने को कंट्रोल करके रखा हुआ था. तीनो भाई नॉर्मल हल्की फुल्की चिटचॅट कर रहे थे और बीच बीच में बच्चों से खेल रहे थे. बाबूजी ने सबको देखते हुए चुप्पी तोड़ी.

''हां तो आज हम सब यहाँ बच्चों के नाम सोचने के लिए इकट्ठे हुए हैं. पर उससे पहले मुझे आप सब से कुच्छ कहना है. सबसे पहले मैं सरला जी के लए कुच्छ कहना चाहता हूँ.

सरला जी आपको हमारे घर में आए हुए करीब 10 महीने हो रहे हैं. इन 10 महीनो में जिस प्रकार आपने मेरी बहुओं का ख़याल रखा है और इस घर के कामो को देखा है उसके लिए मैं और हम सब आपके बहुत आभारी हैं. आपने अपना घर परिवार छोड़ के यहाँ की ज़िम्मेवारियाँ ली ऐसा आजकल कोई नही करता. जब आप यहाँ आई थी तो बिना किसी झिझक के आपने इस परिवार को अपनाया और सबको भरपूर प्यार दिया. पर पिच्छले कुच्छ दिनो से मैं देख रहा हूँ कि आप उदास रहती हैं. अपने में खोई खोई रहती हैं, बहुओं और बच्चों को लेके बिज़ी रहती हैं. क्या ऐसी कोई बात है जो कि आप के मंन को चुभ गई है ? या कोई चिंता है जो कि आपको खाए जा रही है ? मुझे बताइए शायद मैं कुच्छ कर सकूँ..''

''समधी जी ऐसी कोई बात नही है..बस मुझे लगता है कि मुझे वापिस अपने घर जाना चाहिए. बच्चे अब इतने बड़े हो गए हैं कि बहुएँ उन्हे संभाल सकती हैं. मुझे अपने घर की याद सताती है सो मुझे जाने का मंन है. शायद इसी वजह से मैं कभी कभी गुम्सुम रहती हूँ. यहाँ सबके बीच रहते हुए भी कभी कभी अकेली महसूस करती हूँ.'' सरला ने थोड़ा उदास होते हुए कहा.

''ठीक है सरला जी आप जैसा ठीक समझे, वैसे एक बात ज़रूर है ....आप सच नही कह रही. कोई बात है जो आपको खाए जा रही है और वो बात आपको अपने घर जाने के बाद भी परेशान करती रहेगी...खैर आप समझदार है सो मैं और क्या कहूँ...

अब मुझे एक और ज़रूरी बात कहनी है बाकी सबसे. बच्चों आगर तुम्हे याद हो कि कुच्छ समय पहले हमने घर और काम के बटवारे को लेके कुच्छ बातें की थी. उस समय बहुएँ साथ में नही थी. तब तुम सब ने एक राई दी थी कि ऐसा कुच्छ नही होना चाहिए. हम सब एक संयुक्त परिवार है और रहेंगे. पर मुझे बहुत दुख के साथ ये डिसिशन लेना पड़ रहा है कि जैसा मैने सोचा था वैसा बटवारा अब करने का समय आ गया है. '' बाबूजी की बात जैसे बॉम्ब की तरह पड़ी. सबके चेहरे परेशान थे और मूह खुले के खुले. यहाँ तक की सरला भी हैरान थी.

''बाबूजी ये ..ये आप क्या कह रहे हैं बाबूजी....ये सब...अचानक..ऐसा क्यों बाबूजी...क्या हमसे कोई ग़लती हो गई..क्या हुआ प्लीज़ बताइए ..प्लीज़ ऐसा फ़ैसला ना लीजिए ..बोलिए बाबूजी...क्या ग़लती हुई या क्या बात है...'' राजू घर का सबसे बड़ा लड़का एक छ्होटे बच्चे की तरह बिखाल उठा. ऐसा लग रहा था कि वो अभी बोलते हुए फूट पड़ेगा. उसकी ये हालत देख के बाबूजी का मन भी एक बार के लिए डोल गया. पर ये सब उनको कहना और करना था. संयम बरतते हुए उन्होने बात आगे बढ़ाई.

''हां राजू ग़लती तो हुई है तुम लोगों से. सबसे नही पर कुच्छ लोगों से...कौन कौन हैं ये मैं नही जानता. पर इतना जानता हूँ कि आज पहली बार ऐसा कुच्छ हुआ है जो कि घर के मुखिया से च्छुपाया गया है. वो विश्वास और प्यार जो की इस परिवार की नींव है उसपे किसी ने चोट पहुँचाई है. इन हालत में इससे पहले कि ऐसे किस्से और आगे हों और घर के सदस्यों में एक दूसरे के प्रति नफ़रत हो, तो इस घर की बाँट हो जानी चाहिए.'' बाबूजी ने सबकी आँखों में बारी बारी देखते हुए ये शब्द कहे. एक बार को उनको लगा कि सरला की आँखों में डर आ गया और उसने चोर नज़र से सुजीत को देखा. सुजीत और सरला.......बाबूजी को कुच्छ कुच्छ समझ आने लगा. बात कहते कहते उनका दिमाग़ चला और उन्हे पुराने किस्से याद आ गए.
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