RE: Behen Sex Kahani बहन के साथ मस्ती
वो एक दुकान में जा कर खड़ी हो गई। मैंने दुकान को देखा, वो महिलाओं के अंडरगारमेंट की दुकान थी। मैं मुस्कुरा कर आगे बढ़ गया।
मैं देखा कि दीदी का चेहरा शर्म के मारे लाल हो चुका है, और वो मेरी तरफ़ मुस्कुरा कर देखते हुए दुकानदार से बातें करने लगी।
कुछ देर के बाद दीदी दुकान पर से चल कर मेरे पास आई। दीदी के हाथ में एक बैग था।
मैं दीदी को देख कर मुस्कुरा दिया और कुछ बोलने ही वाला था कि दीदी बोली- अभी कुछ मत बोल और चुपचाप चल।
हम लोग चुपचाप चल रहे थे। मैं अभी घर नहीं जाना चाहता था और आज मैं दीदी के साथ अकेला था और मैं दीदी के साथ और कुछ समय बिताने के लिए बेचैन था।
मैंने दीदी से बोला- चलो कुछ देर हम लोग समुंदर के किनारे पर बैठते हैं और भेलपुरी खाते हैं।
“नहीं, देर हो जाएगी !” दीदी मुझसे बोली।
लेकिन मैंने फिर दीदी से कहा- चलो भी दीदी। अभी सिर्फ़ 7.30 बजे हैं और हम लोग थोड़ी देर बैठ कर घर चल देंगे और माँ जानती हैं कि हम दोनों साथ-साथ हैं, इसलिए वो चिंता भी नहीं करेंगी।
दीदी थोड़ी सोच कर बोली- चल समुंदर के किनारे चलते हैं।
दीदी के राज़ी होने से मैं बहुत खुश हुआ और हम दोनों समुंदर के किनारे, जो कि मार्केट से सिर्फ़ 10 मिनट का पैदल रास्ता था, चल दिए। हमने पहले एक भेलपुरी वाले से भेलपुरी ली और एक मिनरल वाटर की बोतल ली और जाकर समुंदर के किनारे बैठ गए।
हम लोग समुंदर के किनारे पास-पास पैर फैला कर बैठ गए। अभी समुंदर का पानी पीछे था और हमारे चारों तरफ़ बड़े-बड़े पत्थर पड़े हुए थे। वहाँ खूब ज़ोरों की हवा चल रही थी और समुंदर की लहरें भी तेज़ थी। इस समय बहुत सुहाना मौसम था।
हम लोग भेलपुरी खा रहे थे और बातें कर रहे थे। दीदी मुझ से सट कर बैठी थी और मैं कभी-कभी दीदी के चेहरे को देख रहा था। दीदी आज काले रंग की एक स्कर्ट और ग्रे रंग का ढीला सा टॉप पहनी हुई थी।
एक बार ऐसा मौका आया जब दीदी भेलपुरी खा रही थी, तो एक हवा का झोंका आया और दीदी की स्कर्ट उनकी जाँघ के ऊपर तक उठ गई और दीदी की जांघें नंगी हो गई। दीदी ने अपने जाँघों को ढकने की कोई जल्दी नहीं की। उनने पहले भेलपुरी खाई और आराम से रूमाल से हाथ पोंछ कर फिर अपनी स्कर्ट को जाँघों के नीचे किया और स्कर्ट को पैरों से दबा लिया।
वैसे तो हम लोग जहाँ बैठे थे वहाँ अंधेरा था, फिर भी चाँदनी की रोशनी में मुझे दीदी के गोरी-गोरी जाँघों का पूरा नज़ारा मिला। दीदी की जाँघों को देख कर मैं कुछ गर्म हो गया।
जब दीदी ने अपनी भेलपुरी खा चुकी तो मैं दीदी से पूछा- दीदी, क्या हम उन बड़े-बड़े पत्थरों के पीछे चलें?
दीदी ने फ़ौरन मुझसे पूछा- क्यों?
मैंने दीदी से कहा- वहाँ हम लोग और आराम से बैठ सकते हैं।
दीदी ने मुझसे मुस्कुराते हुए पूछा- यहाँ क्या हम लोग आराम से नहीं बैठे हैं?
“लेकिन वहाँ हमें कोई नहीं देखेगा !” मैंने दीदी की आँखों में झाँकते हुए धीरे से बोला।
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