RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--9
गतान्क से आगे………………………
रॅक के पीछे कोने मे किसी के नज़र मे नही आए ऐसी जगह पर मीनू पहुँच गयी और पीछे से दीवार को अपना एक पैर लगा कर वह शरद की राह देखने लगी.
शरद उसके पास जाकर पहुँचा और उसके चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश करते हुए उसके सामने खड़ा हो गया.
“तो फिर तय हुआ… आज रात 11 बजे तैय्यार रहो…” मीनू ने कहा.
चलो मतलब अब भी मीनू अपने घर के लोगों के दबाव मे नही आई थी.
शरद को सुकून सा महसूस हुआ.
लेकिन उसने सुझाया हुआ यह दूसरा रास्ता कहाँ तक सही है…?
यह एकदम चरम भूमि का तो नही हो रही है…?
“मीनू तुम्हे नही लगता कि हम ज़रा जल्दी ही कर रहे है.. हम कुछ दिन रुकेंगे… और देखते है कुछ बदलता है क्या…” शरद ने कहा.
“शरद चीज़े अपने आप नही बदलती… हमे उन्हे बदलना पड़ता है…” मीनू ने दृढ़ता से कहा.
उनकी बहुत देर तक चर्चा चलती रही. शरद को अभी भी उसकी भूमिका सही नही लग रही थी. लेकिन एक तरह से उसका सही भी था. कभी कभी ताबड़तोड़ निर्णय लेना ही अच्छा होता है.. शरद सोच रहा था.
लेकिन इस फ़ैसले के लिए में अब भी पूरी तरह से तैय्यार नही हूँ…
मुझे मेरे घर के लोगों के बारे मे भी सोचना चाहिए…
लेकिन नही हम कितने दिन तक इस तरह बीच मे लटके रहेंगे…
हमे कुछ तो ठोस कदम उठाना ज़रूरी है…
शरद अपना एक फ़ैसले पर पहूचकर दृढ़ता से उसपर कायम रहने का प्रयास कर रहा था.
उधर रॅक के पीछे उन दोनो की चर्चा चल रही थी और इधर दो रॅक छोड़ कर एक साया उन दोनो की सब बातें सुन रह था.
शरद के दिमाग़ मे विचारों की कशमश चल रही थी. अब वह जो फ़ैसला लेनेवाला था उसकी वजह से होनेवाले सब परिणामों के बारे मे वह सोच रहा था. मीनू के साथ लाइब्ररी मे किए चर्चा से दो-तीन टेट एकदम सॉफ हो गयी थी -
एक तो मीनू भले ही उपर से ना लगे लेकिन अंदर से वह बहुत गंभीर और ज़बान की पक्की है....
वह किसी भी हाल मे मुझे नही छोड़ेगी....
या फिर वैसा सोचेगी भी नही....
लेकिन अब उसे अपने आपका ही भरोसा नही लग रहा था...
में भी उसकी तरह अंदर से गंभीर और पक्का हूँ क्या...?
बुरे वक्त मे मेरा उसके प्रति प्रेम वैसा ही कायम रहेगा क्या...?
या बुरे वक्त मे वह बदल सकता है...?
वह अब खुद को ही आजमा रहा था. वक्त ही वैसा आया था की उसे खुद का ही विश्वास नही लग रहा था.
परंतु नही...
मुझे ऐसा ढीला ढाला रहकर नही चलेगा...
मुझे भी कुछ ठोस फ़ैसला लेना होगा...
और एक बार निर्णय लिया तो फिर बाद मे उसके कुछ भी परिणाम हो, मुझे उसपर कायम रहना होगा...
शरद ने आख़िर मन ही मन एक ठोस फ़ैसला लिया...
अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर वह उसे जिसकी ज़रूरत पड़ेगी वह सारी चीज़ें अपने बॅग मे भरने लगा...
सब कुछ ठीक तो होगा ना...?
मुझे मेरे घरवालों को सब बताना चाहिए क्या...?
सोचते सोचते उसने अपनी सारी चीज़ें बॅग मे भर दी...
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