RE: Holi Mai Chudai Kahani
“अरे कहा हो..???”तब तक जेठानी की आवाज़ गूंजी.
मैं दबे पांव वहाँ से बरामदे की ओर चली आई, जहाँ जेठानी के साथ मेरी बड़ी ननद भी थी. दूर से होली के हुलियारों की आवाज़ें हल्की-हल्की आ रही थी. जेठानी के हाथ में वैसी ही बोतल थी जो ‘ये’ और ननदोई जी पी चुके थे और जबरन मेरे भाई को पीला रहे थे. मैं लाख ना-नुकुर करती रही कि आज तक मैंने कभी दारू नहीं पिया लेकिन वो दोनों कहां मानने वाली थी..???
जबरन मेरे मुँह से लगा कर ननद बोली, “भाभी, होली तो होती ही है नए-नए काम करने के लिये, आज से पहले आपने वो खारा शरबत पिया नहीं होगा जो चार-पाँच गिलास गटक गई और अभी तो होली के साथ-साथ आपके खाने-पिने की शुरुआत हुई है, जो आपने सोचा भी नहीं होगा वो सब….”
जेठानी उसकी बात काट के बोली, “अरे तुने पिलाया भी तो है बेचारी अपनी छोटी ननद को… ले गटक मर्दों की अलमारी से निकाल के लाए है हम…”
फिर थोड़ी देर में बोतल खाली हो गई. ये मुझे बाद में अहसास हुआ कि आधे से ज्यादा बोतल उन दोनों ने मिल के मुझे पिलाया और बाकि उन दोनों ने……… लग रहा था कि कोई तेज तेजाब ऐसा गले से जा रहा हो, भभक भी तेज थी, लेकिन उन दोनों ने मेरी नाक बंद की और उसका असर भी 5 मिनट के अंदर होने लगा. मैं इतनी चुदासी हो रही थी कि कोई भी (मेरा भाई भी) आ के मुझे चोद देता तो मैं मना नहीं करती. ननद अब अंदर चली गई थी.
थोड़ी देर में होली के हुलियारों की भीड़ एकदम पास में आ गई. वो ज़ोर-ज़ोर से कबीरा, गालियां और फाग गा रहे थे. जेठानी ने मुझे उकसाया और हम दोनों ने जरा सा खिड़की खोल दी, फिर तो तूफ़ान ही आ गया. गालियों का और रंग का सैलाब फुट पड़ा. नशे की मारी मैं……. मैंने भी 1 बाल्टी रंग उठा के सीधे फेंका. ज्यादातर मेरे गाँव के रिश्ते से देवर लगते थे, पर फागुन में कहते है ना कि बुढवा (budhava) भी देवर लगते है इसलिए होली के दिन तो बस एक रिश्ता होता है, लंड और चूत का.
रंग पड़ते ही वो बोल उठे, “हे भौजी खोला केवाड़ी, उठावा साड़ी, तोहरी बुरिया में हम चलाइब गाड़ी.”
“अरे ये भी बुर में जायेंगे, लौड़े का धक्का खायेंगे.” दूसरा बोला.
मैं मस्त हो उठी. जेठानी ने मुझे एक idea दिया. मैंने खिड़की खोल के उन्हें अपना आँचल लहरा के, रसीले जोबन का दर्शन करा के उन्हें न्योता दे दिया.
सब झूम-झूम के गा रहे थे,
“अरे नक बेसर कागा लई भागा, सैंया अभागा ना जागा. अरे हमरी भौजी का….
उड़-उड़ कागा, बिंदिया पे बैठा, मथवा का सब रस लई भागा,
उड़-उड़ कागा, नथिया पे बैठा, होंठवा का सब रस लई भागा, अरे हमरी भौजी का….
उड़-उड़ कागा, चोलीया पे बैठा, जुबना का सब रस लई भागा,
उड़-उड़ कागा, करधन पे बैठा, कमर का सब रस लई भागा, अरे हमरी भौजी का….
उड़-उड़ कागा, साया पे बैठा, चूत का सब रस लई भागा,”
एक हुडदंगी जेठानी से बोला, “अरे नई भौजी को बाहर भेजा ना…. होली खेले को…. वरना हम सब अंदर घुस के…..”
जेठानी ने घबरा के कहा, “अरे भेजती हू अंदर मत आना……”
मैं भी नशे में तो थी, बोल उठी, “अरे आती हूँ, देखती हू कितनी लंबी और मोटी है तुम लोगों की पिचकारी.? और कितना रंग है उसमे.? या सब कुछ अपनी बहनों की बाल्टी में खाली कर के आए हो.?!?”
अब तो वो और बैचेन हो गए. जेठानी ने खिड़की बंद कर दिया. उधर से मेरी छोटी ननद आ गई. अब हम लोगों का plan कामयाब हो गया. हम दोनों ने पकड़ कर उसकी साड़ी, चोली सब उतार दी और मेरी साड़ी चोली उसे पहना दी.
(bra ना तो उसने पहनी थी ना मैंने, वो तो सुबह की होली में ही फट गई थी. उसके कपड़े मैंने पहन लिए और दरवाजा थोड़ा खोल के धक्के दे के उसे हुलियारों के हवाले कर दिया. उसकी चोली मुझे थोड़ी Tight पड़ रही थी. सो मैंने ऊपर के दो बटन खुले ही छोड़ दिये और उसकी साड़ी को जैसे-तैसे लपेट लिया.)
सुबह से रंग, पेन्ट, वार्निश इतना पुत चुका था कि चेहरा तो पहचाना जा नहीं रहा था. हाँ साड़ी और आँचल की झलक और चोली का दर्शन मैंने उन सब को इसीलिये करा दिया था कि ज़रा भी शक ना रहे. बेचारी ननद पल भर में ही वो रंग से सराबोर हो गई. उसकी साड़ी, चोली सब देह से चिपके हुए, जोबन का मस्त किशोर उभार साफ-साफ झलक रहा था, यहाँ तक कि कड़े चुचुक (Nipples) भी……. नीचे भी पतली साड़ी जांघों से चिपकी, गोरी गुदाज़ रानें साफ साफ दिख रही थी. फिर तो किसी ने चोली के अंदर हाथ डाल के जोबन पे रंग लगाना, मसलना शुरू किया तो किसी ने सीधे जांघों के बीच……
जेठानी ने ये नज़ारा देख के ज़ोर से बोला, “ले लो बिन्नो आज होली का मज़ा, अपने भाइयों के साथ.”
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