RE: Holi Mai Chudai Kahani
बाहर सारे लोग मेरी जेठानी, सास और दोनों ननदें होली की तैयारी के साथ.
“अरे भाभी, ये आप सुबह-सुबह क्या कर….. मेरा मतलब करवा रही थी.? देखिये आपकी सास तैयार है” बड़ी ननद बोली.
(मुझे कल ही बता दिया था कि नई बहु की होली की शुरुआत सास के साथ होली खेल के होती है और इसमें शराफ़त की कोई जगह नहीं होती, दोनों खुल के खेलते है.).
जेठानी ने मुझे रंग पकड़ाया. झुक के मैंने आदर से पहले उनके पैरों में रंग लगाने के लिये झुकी तो जेठानी जी बोली, “अरे आज पैरों में नहीं, पैरों के बीच में रंग लगाने का दिन है.”
और यही नहीं उन्होंने सासु जी का साड़ी साया (Peticot) भी मेरी सहायता के लिये उठा दिया. मैं क्यों चुकती.? मुझे मालूम था की सासु जी को गुद-गुदी लगती है. मैंने हल्के से गुद-गुदी की तो उनके पैर पूरी तरह फ़ैल गए. फिर क्या था.? मेरे रंग लगे हाथ सीधे उनकी जांघ पे. इस उम्र में भी (और उम्र भी क्या.? 40 से कम की ही रही होगी.), उनकी जांघें थोड़ी स्थूल तो थी लेकिन एकदम कड़ी और चिकनी बिलकुल केले के तने जैसी. अब मेरा हाथ सीधे जांघों के बीच में. मैं एक पल सहमी, लेकिन तब तक जेठानी जी ने चढ़ाया, “अरे जरा अपने ससुर जी की कर्मभूमि और पति की जन्म-भूमि का तो स्पर्श कर लो.”
उंगलियां तब तक घुंघराली रेशमी जाटों को छू चुकी थी. (ससुराल में कोई भी Panty नहीं पहनता था, यहाँ तक कि मैंने भी पहनना छोड़ दिया.). मुझे लगा की कहीं मेरी सास बुरा ना मान जाये लेकिन वो तो और खुद बोली, “अरे स्पर्श क्या, दर्शन कर लो बहु.”
और पता नहीं उन्होंने कैसे खिंचा कि मेरा सर सीधे उनकी जांघों के बीच. मेरी नाक एक तेज तीखी गंध से भर गई. जैसे वो अभी-अभी (Bathroom) कर के आयी हो और उन्होंने जब तक मैं सर निकलने का प्रयास करती कस के पहले तो हाथों से पकड़ के फिर अपनी भारी-भारी जांघों से कस के दबोच लिया. उनकी पकड़ उनके लड़के की पकड़ से कम नही थी. मेरे नथुनों में एक तेज महक भर गई और अब वो उसे मेरी नाक और होंठों से हल्के से रगड़ रही थी.
हल्के से झुक के वो बोली, “दर्शन तो बाद में कराउंगी पर तब तक तुम स्वाद तो ले लो थोड़ा…”
जब मैं किसी तरह वहाँ से अपना सर निकल पाई तो वो तीखी गंध अब एकदम मस्त वाली सी तेज, मेरा सर घूम-सा रहा था. एक तो सारी रात जिस तरह उन्होंने तडपाया था, बिना एक बार भी झड़ने दिये और ऊपर से ये.!!! मेरा सर बाहर निकलते ही मेरी ननद ने मेरे होंठों पे एक चांदी का गिलास लगा दिया लबालब भरा, कुछ पीला-सा और होंठ लगते ही एक तेज भभका सा मेरे नाक में भर गया.
“अरे पी ले, ये होली का खास शर्बत है तेरी सास का…. होली की सुबह का पहला प्रसाद…” ननद ने उसे धकेलते हुए कहा. सास ने भी उसे पकड़ रखा था. मेरे दिमाग में कल गुझिया बनाते समय होने वाली बातें आ गई. ननद मुझे चिढ़ा रही थी कि भाभी कल तो खारा शरबत पीना पड़ेगा, नमकीन तो आप है ही, वो पी के आप और नमकीन हो जायेंगी. सास ने चढ़ाया था, “अरे तो पी लेगी मेरी बहु…तेरे भाई की हर चीज़ सहती है तो ये तो होली की रस्म है….”
जेठानी बोली, “ज्यादा मत बोलो, एक बार ये सीख लेगी तो तुम दोनों को भी नहीं छोड़ेगी.”
मेरे कुछ समझ में नही आ रहा था.
मैं बोली, “मैंने सुना है की गाँव में गोबर से होली खेलते है…”
बड़ी ननद बोली, “अरे भाभी गोबर तो कुछ भी नहीं…. हमारे गाँव में तो….”
सास ने इशारे से उसे चुप कराया और मुझसे बोली, “अरे शादी में तुमने पञ्च गव्य तो पिया होगा. उसमे गोबर के साथ गो-मूत्र भी होता है.”
मैं बोली, “अरे गो-मूत्र तो कितनी आयुर्वेदिक दवाओ में पड़ता है….” उसमे मेरी बात काट के बड़ी ननद बोली कि “अरे गो माता है तो सासु जी भी तो माता है और फिर इंसान तो जानवरों से ऊपर ही तो……फिर उसका भी चखने में……”
मेरे ख्यालो में खो जाने से ये हुआ कि मेरा ध्यान हट गया और ननद ने जबरन ‘शरबत’ मेरे ओंठों से नीचे…… सासु जी ने भी जोर लगा रखा था और धीरे-धीरे कर के मैं पूरा डकार गई. मैंने बहुत दम लगाया लेकिन उन दोनों की पकड़ बड़ी तगड़ी थी. मेरे नथुनों में फिर से एक बार वही महक भर गई जो जब मेरा सर उनकी जांघों के बीच में था.
लेकिन पता नहीं क्या था मैं मस्ती से चूर हो गई थी. लेकिन फिर भी मेरे कान में किसी ने कहा, “अरे पहली बार है ना, धीरे-धीरे स्वाद की आदि हो जाओगी… जरा गुझिया खा ले, मुँह का स्वाद बदल जायेगा…”
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