RE: Antarvasna kahani बाली उमर का चस्का
उधर जय ने फिर से मेरे मुंह में अपने लिंग को ठूस दिया ओर अब अनु दो दो लंड अपने अंदर ले के निहाल हुए जा रही थी। राज के धक्के तेज़ होते गये ओर कुछ ही पलों बाद उसका कामरस मेरी गान्ड में बह निकला। में भी राज को झड़ते हुए महसूस कर रही थी। उसके लंड की नस्सें फूल ओर सिकुड़ के मेरी चिकनी गांड में वीर्य का सैलाब भर रही थी। मुझे गरम लावा अपने अंदर बहता हुआ महसूस हो रहा था।
अब राज निढाल हो के बिस्तर पे गिर गया पर मुझे आज़ादी नही मिली क्युकी जय मेरे मुंह में लय बना के धक्के देता हुआ मेरा मुख-मैथुन कर रहा था। कुछ देर बाद वह मेरी टांगो के बीच आ गया ओर अपने लिंग को मेरी करारी चुनमूनियाँ पे रगड़ने लगा। में जानती थी अब क्या होने वाला था पर अपना कुवारापन खोने का डर तो हर भारतीये लड़की को होता ही हे। मेने जय से रुकने को कहा पर इस से पहले की में कुछ समज पाती जय ने तीर निशाने पे छोड दिया। तीखे दर्द से में एकदम दोहरी हो गयी ओर चीख चीख के जय को मेरी चुनमूनियाँ से अपना लिंग निकालने की गुजारिश करने लगी। पर मेरी किसी बात का उस पर असर नही हुआ ओर वो मुझे बिस्तर में दबा के मेरी चुनमूनियाँ की गहराई नापने में जुट गया।
दूसरी ओर ललिता कुत्ती पोज में झुकी हुई थी और राज उसकी गांड पीछे खड़ा हो के ले रहा था। उसके लम्बे केश राज ने लगाम की तरह पकड रखे थे ओर खींच खींच के लंड पेल रहा था अंदर बाहर। हम दोनों अपने रब को याद करके "हायो रब्बा हायो रब्बा" का जाप कर रही थी जब की जय ओर राज दोनों अपने अपने लंड से हमारी सेवा में जुट गये थे। मेरे दर्द में अब कुछ कमी होने लगी क्योंकि चुनमूनियाँ पनिया चुकी थी जिस से लंड को अंदर बाहर करना में आसानी ही रही थी। जय ने चुदाई की रफ़्तार बढ़ा ली ओर दूसरी तरफ राज ने तो शताब्दी रेल की भांति ललिता की गांड में तूफ़ान भर दिया था। आखिरकार वह पल आ ही गया ओर हम चारों एक साथ अपने चरम पे पहुँच गये। मैं ओर ललिता "... हाय रब्बा.. ओह बेबे ... आह् मार सुटेया..." कहती हुई झड़ने लगी तो दूसरी तरफ जय ओर राज "ओह ... आह ... ये ले मेरा पानी ... और ले ... मज़ा आ गया, सरदारनी!" जेसे शब्द बोल के हमारे अंदर ही झड गये।
चुनमूनियाँ समागम द्वारा यह मेरे जीवन का पहला स्खलन था। शारीरिक ओर मानसिक तौर पे जिंदगी का सबसे हसींन एहसास जो एक उफनते हुए सैलाब की भांती सारे बाँध तोड़ के बाहिर निकल आया था। यह कुछ ऐसा नशा था जिसकी लत्त पहली ही बार में लग गयी थी।
अगले कुछ मिनटों तक में बेसुध सी बिस्तर में पड़ी रही। जब मुझे होश आया तो जय की जगह राज मोर्चा संभाल चूका था। ललिता ने चूस चूस के उसका लंड रॉड जेसा सख्त कर दिया था। राज मेरी चिकनी गोरी जाघों के बीच पोजीशन बना के बैठा था।
मैंने कहा – राज, यह क्या कर रहे हो? तुमने अभी तो ली थी! उसने कहा – अब तक तो सिर्फ गांड ली है तेरी। अब तेरी चुनमूनियाँ का भी मज़ा लूँगा। तभी जय बाथरूम से निकला ओर बिस्तर का नजारा देख के मेरे पास आ गया। उसने मेरे कान में कहा – ललिता से ज्यादा मज़ा तेरी लेने में आया। अब राज को भी दिखा दे कितना मज़ा है तेरी चुनमूनियाँ में। उसने विकी को इशारा किया ओर मेरे होंठो पे अपना मुंह रख दिया। मैं उसके किस में खोई थी तभी राज ने अपना ६ इंची हथियार मेरी चुनमूनियाँ में घुसा दिया ... मेरी चीख भी जय ने निकलने नही दी अपने मुंह को मेरे मुंह पे दबा के। राज ने आव देखा ना ताव ओर जंगली सांड की तरह मेरी कमसिन करारी चुनमूनियाँ में ताबड़ तोड़ अपना लौडा पेलता चला गया। मैं अपने रब्ब को याद करने लगी। कुछ देर बाद दर्द कम हुआ तो जय ने मेरे मुंह से अपना मुंह हटा लिया। अब मैं खुल के चुदवाने लगी।
पीड़ा की जगह अब आनंद ने ले ली थी ओर में बढ़ चढ़ के उनका साथ देने लगी। जय ने मेरे निम्बू जितने उरोज को हाथों से मसलना शुरू किया ओर राज ने मेरी दोनों चिकनी गोरी टांगो को उठा के अपने कंधो पे रख लिया। अब तो चुदवाने में मुझे जन्नत का मज़ा आने लगा और में "चोद राज, चोद ... जोर से ... ! ओर अंदर घुसा! ... ओर अंदर!" जेसी बातें बोल के राज को उकसाने लगी। राज भी मेरे इस बदले हुए रूप को देख के बोखला गया ओर एकदम वेह्शी बन के मेरी चुनमूनियाँ कि घिसाई करने लगा। कुछ देर में मेरी चुनमूनियाँ ने पानी छोड़ दिया ओर मैं झड गयी। मेरे बाद ही राज भी झड गया ओर मेरे उपर निढाल सा हो के गिर गया।
दो बार चुद कर मेरी चुनमूनियाँ सूज गयी थी। राज और जय बाहर ललिता से गप्पें मार रहे थे और में अंदर बिस्तर से उठने की कोशिश कर रही थी। फिर जेसे तेसे में कांपती टांगो से चल के बाथरूम गयी और खुद को शावर के नीचे खड़ी कर के नहा धो के साफ़ करने लगी।
फिर नहा के यूनिफार्म पहनी और बाहर निकली, मुझे देख के उन तीनो ने बातें बंद कर दी। में बड़ी मुश्किल से चल पा रही थी। ललिता मेरे पास आयी और बोली की ऐसे घर जायगी तो सब शक करेंगे। वो मुझे फिर से अंदर ले गयी और राज से बोली की दूध गरम कर दे। फिर उसने जय को बाज़ार से पैन किलर लाने को कहा। अब मेरे साथ बैठ के ललिता ने अपने पहले यौन अनुभव के बारे में बताया। आज से 3 साल पहले उसका कोमार्य ट्यूशन वाले सर ने लिया था और तब उसकी भी ये ही हालत हुई थी। फिर उन्होंने गरम दूध और पैन किलर टेबलेट दी थी जिस से बहुत आराम मिला था। करीब आधे घंटे बाद में घर जाने की स्थिति में थी।
उस रात मुझे नींद नही आई। एक तरफ कुंवारापन खोने का दुःख तो दूसरी और जिंदगी में पहली बार स्वर्ग का एहसास कराता यौन स्खलन। एक तरफ लिंग से मिलने वाला दर्द तो दूसरी और उस्सी लिंग से मिलने वाला सुख। एक तरफ हवस में डूबे तीन खुदगर्ज़ लोग तो दूसरी तरफ मेरी तकलीफ का हल ढूँढ़ते हुए वोही तीन दोस्त। बस इसी कशमकश में सारी रात निकल गयी और सुबह 4 बजे कहीं जा के थोड़ी सी नींद आई। अगले एक महीने मेरी जम कर चुदाई हुई। जय ओर राज ने मुझे काम क्रीडा में निपुण बना दिया था और ललिता तो थी ही एक्सपर्ट एडवाइस के लिए।
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