RE: Antarvasna kahani बाली उमर का चस्का
मेरे अंदर हवस का तूफ़ान तेज होता जा रहा था। राज ने अब ऊँगली निकाल ली और फिर से थूक लगा के गांड को चिकनाई से भरने लगा। फिर उसने अपनी पेंट उतार दी। अपने लिंग पे थूक लगा कर मेरे गान्ड-द्वार पे थूका और उसपे लिंग टिका के बोला – सरदारनी, तयार हो जा। थोडा दर्द होगा पहले फिर मज़ा ही मज़ा। मेने लम्बी सांस ली और शरीर ढीला छोड़ दिया । राज ने मेरे चुतड खोल के लंड को एक झटका देते हुए मेरी गांड में घुसेड़ना चाहा पर सुराख तंग होने के कारण लंड फिसल गया। राज ने मुझे अपने दोनों हाथ पीछे लाने को कहा और बोला कि में अपने चुतड हाथो से फैला लू । मेने वेसा ही किया ओर अब राज को आराम से लंड अंदर डालने का अवसर मिल गया । अगले ही पल राज के लिंग-मुंड ने मेरी गांड के तंग सुराख को चीरते हुए जगह बना के अंदर प्रवेश पा लिया।
मेरी तेज़ चीख निकली पर राज ने मेरा मूंह बंद कर दिया और अब तेज़ी से धक्के मार मार के अपने लंड को मेरी तंग गांड में घुसाता गया। मैं पीड़ा से कराह रही थी पर राज ने मेरा मूंह बंद कर रखा था। ८-१० धक्कों के बाद वोह रुक गया और मेरे मूंह से हाथ हटा के मेरे ऊपर लेट गया। मैंने राज से रोते हुए कहा कि मुझे छोड़ दे यह सब मुझसे नही होगा। उसपे राज ने कहा की अब रोती क्यों हे लंड पूरा अंदर हे। मुझे यह जान के थोड़ी राहत मिली की लंड पूरा अंदर था। अब मेने अपने शरीर को ढीला कर दिया जो कि अब तक अकड़ा हुआ था दर्द से। राज ने भी धीरज रखा ओर कुछ देर में ही मेरा दर्द काफी कम हो चूका था।
राज ने लंड पूरा बाह रखिंच के फिर से मेरी गांड और अपने लंड पे थूक लगा के फिर से पोजीशन बनाई ओर अब की बार आराम से लंड अंदर घुसाने लगा। इस बार दर्द कम हुआ ओर मज़ा ज्यादा आया। मेने भी शरीर ढीला छोड़ दिया ओर राज को आराम से मारने को कहा।
राज अब स्पीड बढ़ा के तेज़ी से मेरी ले रहा था। साथ ही बोल रहा था की ललिता से ज्यादा मज़ा तेरे साथ आ रहा हे। तुम सरदारनी कुडियां मस्त होती हो ओर मज्जे से गांड मरवाती हो। मैं यह जान के खुश हुई की ललिता से ज्यादा मज़ा मुझ में था और अब में भी गांड उठा उठा के लंड लेने लगी। यह देख के राज का जोश दोगुना हो गया ओर उसने मेरी कमर थाम के मेरी गांड में ताबड़तोड़ धक्के मारना शुरू कर दिया। मैं भी जोर जोर से सिस्कारियां मारती हुई गांड मरवा रही थी कि तभी राज मेरे उपर निढाल सा गिर गया ओर उसके लंड से वीर्य की धार मेरे अंदर बहने लगी। 2 मिनट वेसे ही मेरे उपरपढ़ा रहने के बाद वोह उठा ओर तोलिये से अपना लंड साफ़ करके मेरी गांड पे रख दिया। में सीधी हुई ओर अपनी गांड को तोलिये से साफ़ करके पेंटी पहन ली।
अब तो सिलसिला चल पड़ा था मेरा और राज का। जब भी मोका मिलता राज मुझे घर पे या स्कूल में दबोच के मेरी ले लेता। पर धीरे धीरे मुझे एहसास होने लगा था कि इस सब में प्यार तो हे ही नही। राज कभी भी मुझे किस नही करता और न ही प्यार भरी रोमानी बातें करता। वह बस मोका मिलते ही मुझे झुका के स्कर्ट उठाता, पेंटी उतारता और थूक लगा के मेरी गांड मार लेता। एक दिन मेने डॉली दीदी से इस बारे में बात की। उसने मुझे यकीन दिलाया कि राज बोहत अछा लड़का हे ओर मुझे उस जेसा बॉय-फ्रेंड नही मिलेगा। तभी राज और जय वहां आ गये। डॉली ने राज को झिडकी लगा के मेरा ख्याल रखने को कहा। जय को मोका मिला और उसने राज को मेरा ख्याल रखने की सलाह देते हुए यह कह दिया कि अगर वोह ख्याल नही रखेगा तो में रखूगा। जय की आँखों में अजीब सी चमक थी, ओर मुझे पहली बार जय में एक अछा इन्सान नजर आया। वेसे देखने में ओर बोल-चाल में जय राज से कई कदम आगे था ओर मेने पहली बार ध्यान दिया की जय राज से कितना गोरा चिकना ओर स्मार्ट था।
स्कूल ख़त्म होने के बाद हम चारो बाहर निकले ओर राज के कहने पे पास के रेस्टोरेंट की ओर चल दिए। राज मेरी दायें ओर था पर उसका ध्यान मुझसे ज्यादा ललिता में था। जय मेरी बाएँ तरफ था ओर बार बार मेरी आँखों में आंखें डाल के कुछ कहने का यतन कर रहा था। तभी चलते चलते उसने अपना हाथ मेरे नितम्ब पे चिपका दिया। मेरी सिसकारी निकल गयी पर उसने जल्दी हाथ हटा लिया। मेने उसकी ओर देखा तो वोह मुस्कुरा दिया। मैं भी उसकी बेशर्मी से भरी मुस्कान पे लुट सी गयी ओर मुस्कुरा दी।
हम सब अंदर बैठे बातें कर रहे थे। जय मेरे सामने और राज ललिता के सामने था। तभी मुझे किसी के पेर अपनी टांग से छुते हुए महसूस हुए। मुझे लगा राज ही होगा इसलिए विरोध नही किया और बेठी रही। आहिस्ते से वो पेर मेरी दोनों टांगो के बिच से घुटनों तक आ गये। पर राज तो ऐसी हरकतें करता ही नही था। वह तो बस मेरे गदराए चुनमूनियाँडों का दीवाना था। खैर, थोड़ी देर बाद हम वहां से चल पड़े।
मेरा ध्यान जय की पेंट की ओर गया तो समझ गयी की मुझे पेर से कोन छेड़ रहा था। जय की पेंट में टेंट बना हुआ था । मैं मुस्कुरा गयी। शर्म के मारे चेहरा लाल हो गया। जय ने भी मेरी नजर पकड ली थी जब में उसके लिंग को घूर रही थी। वह भी मुझे देख मुस्कुराया ओर एक फ्लाइंग किस चोरी से मेरी ओर भेज दी। मेने भी आंख के इशारे से उसे जता दिया कि मेने उसकी फ्लाइंग किस कबूल कर ली।
धीरे धीरे जय मेरे करीब ओर राज मुझसे दूर होते जा रहे थे। एक दिन हम चारो राज के घर शनिवार के दिन हाफ-डे छुट्टी के बाद गये। वहां हम विकी के मम्मी पापा वाले बेडरूम में बैठे थे जहाँ विकी ने कोई बीस बार मेरी गांड ली होगी। बातों बातों में ही ब्लू-फिल्मो पे आ गये तो पता चला की ललिता को ऐसी फिल्म्स देखते हुए दो साल हो चुके थे ओर यह बात भी पता चली की विकी ने ललिता को भी इस कमरे में बुला के फिल्मे देखी हैं।
धीरे धीरे माहोल गरम हो गया। ललिता ने बताया की जब पहले पहले विकी उसकी लेता था तो दर्द कितना हुआ करता था। इस बात पे मैंने भी अपने दर्द भरे एहसास को बता दिया। फिर बात जय ओर विकी के लिंग के साइज़ की हुई तो दोनों ने अपने कपडे उतार के तन्ने हुए लंड सामने करते हुए बोला बताओ कोन किसका पसंद करती हे। डॉलील ने झट से विकी का ६ इंची मोटा लंड पकड़ लिया। मेरी नज़रें जय के पांच इंची गोरे चिकने लंड पे टिक्की हुई थी। पर शर्म के मारे मेने कोई हरकत नही की ओर चुप चाप बेठी रही। तभी जय ललिता की ओर बढ़ा और उसके होंठों को अपने मूंह में भर के रसपान करने लगा। ललिता को उन दोनों के साथ खुल के अय्याशी करते देख मुझे विकी की दिखाई हुई ब्लू-मैगज़ीन याद आई जिस में एक लड़की 2 या 3 मर्दों के साथ लगी होती थी। तभी राज ने पुछा किसे किसे ब्लू-फिल्म देखनी हे। हम सब ने एक स्वर में हामी भर दी।
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