Behen ki Chudai मेरी बहन कविता
08-26-2018, 09:48 PM,
#6
RE: Behen ki Chudai मेरी बहन कविता
मुझे ज्यादा लालच नहीं करना चाहिए था मगर गलती हो चुकी थी. दीदी अचानक सीधी होती हुई उठ कर बैठ गई. अपनी नींद से भरी आँखों को उन्होंने ऐसे खोल दिया जैसे वो कभी सोई ही नहीं थी. सीधा मेरे उस हाथ को पकर लिया जो उनके पेटिकोट के नाड़े के कट के पास था. मैं एक दम हक्का बक्का सा खड़ा रह गया. दीदी ने मेरे हाथो को जोर से झटक दिया और एक दम सीधी बैठती हुई बोली “हरामी…सूअर…क्याकररहा….था…शर्मनहींआतीतुझे….” कहते हुए आगे बढ़ कर चटक से मेरी गाल पर एक जोर दार थप्पड़ रशीद कर दिया. इस जोरदार झापड़ ने मुझे ऊपर से निचे तक एक दम झन-झना दिया. मेरे होश उर चुके थे. गाल पर हाथ रखे वही हतप्रभ सा खड़ा मैं निचे देख रहा था. दीदी से नज़र मिलाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था. दीदी ने एक बार फिर से मेरा हाथ पकर लिया और अपने पास खींचते हुए मुझे ऊपर से निचे तक देखा. मैं काँप रहा था. मुझे लग रहा था जैसे मेरे पैरों की सारी ताकत खत्म हो चुकी है और मैं अब निचे गिर जाऊंगा. तभी दीदी ने एक बार फिर कड़कती हुई आवाज़ में पूछा “कमीने…क्याकररहाथा…जवाबक्योंनहींदेता….” फिर उनकी नज़रे मेरे हाफ पैंट पर पड़ी जो की आगे से अभी भी थोड़ा सा उभरा हुआ दिख रहा था. हिकारत भरी नजरो से मुझे देखते हुए बोली “यहीकामकरनेकेलिएतू….मेरेपास….छि….उफ़….कैसासूअर…..”. मेरे पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं था मगर फिर भी हिम्मत करके हकलाते हुए मैं बोला “वोदीदी…माफ़..मैं…..मुझे…माफ़…मैंअब…आ….आगे…” पर दीदी ने फिर से जोर से अपना हाथ चलाया. चूँकि वो बैठी हुई थी और मैं खड़ा था इसलिए उनका हाथ सीधा मेरे पैंट के लगा. ऐसा उन्होंने जान-बूझ कर किया था या नहीं मुझे नहीं पता मगर उनका हाथ थोड़ा मेरे लण्ड पर लगा और उन्होंने अपना हाथ झटके से ऐसे पीछे खिंच लिया जैसे बिजली के नंगे तारो ने उन को छू लिया हो और एकदम दुखी स्वर में रुआंसी सी होकर बोली “उफ़….कैसालड़काहै…..अगरमाँसुनेगी….तोक्याबोलेगी…ओह…मेरीतोसमझमेंनहींआरहा…मैंक्याकरू…”. बात माँ तक पहुचेगी ये सुनते ही मेरी गांड फट गई. घबरा कर कैसे भी बात को सँभालने के इरादे से हकलाता हुआ बोला “दीदी…प्लीज़….माफ़…करदो…प्लीज़….अबकभी…ऐसा…नहींहोगा….मैंबहकगया…था…आजकेबाद…प्लीज़दीदी…प्लीज़…मैंकहीमुंहनहींदिखापाउँगा…मैंआपकेपैर….” कहते हुए मैं दीदी के पैरों पर गिर पड़ा. दीदी इस समय एक पैर घुटनों के पास से मोर कर बिस्तर पर पालथी मारने के अंदाज में रखा हुआ था और दूसरा पैर घुटना मोर कर सामने सीधा रखे हुए थी. मेरी आँखों से सच में आंसू निकलने लगे थे और वो दीदी के पैर के तलवे के उपरी भाग को भींगा रहे थे. मेरी आँखों से निकलते इन प्रायश्चित के आंसुओं ने शायद दीदी को पिघला दिया और उन्होंने धीरे से मेरे सर को ऊपर की तरफ उठाया. हालाँकि उनका गुस्सा अभी भी कम नहीं हुआ था और वो उनकी आँखों में दिख रहा था मगर अपनी आवाज़ में थोड़ी कोमलता लाते हुए बोली “येक्याकररहाथातू…..तुझेलोकलाज…मानमर्यादाकिसीभीचीज़कीचिंतानहीं….मैंतेरीबड़ीबहनहूँ….मेरीऔरतेरीउम्रकेबीच…नौसालकाफासलाहै….ओहमैंक्याबोलूमेरीसमझमेंनहींआरहा….ठीकहैतूबड़ाहोगयाहै…मगर…..क्यायहीतरीकामिलाथातुझे….उफ़…” दीदी की आवाज़ की कोमलता ने मुझे कुछ शांति प्रदान की हालाँकि अभी भी मेरे गाल उनके तगड़े झापर से झनझना रहे थे और शायद दीदी की उँगलियों के निशान भी मेरी गालों पर उग गए थे. मैं फिर से रोते हुए बोला “प्लीज़दीदीमुझे…माफ़करदो…मैंअबदुबाराऐसी…गलती….”. दीदी मुझे बीच में काटते हुए बोली “मुझेतोतेरेभविष्यकीचिंताहोरहीहै….तुनेजोकियासोकियापरमैंजानतीहूँ…तूअबबड़ाहोचूकाहै….तूक्याकरताहै…. कहीतूअपनेशरीरकोबर्बाद….तोनहीं…कररहाहै”
मैंने इसका मतलब नहीं समझ पाया. हक्का बक्का सा दीदी का मुंह ताकता रहा. दीदी ने मेरे से फिर पूछा “कही….तूकही….अपनेहाथसेतोनहीं….”. अब दीदी की बात मेरी समझ में आ गई. दीदी का ये सवाल पूछना वाजिब था क्योंकि मेरी हरकतों से उन्हें इस बात का अहसास तो हो ही चूका था की मैंने आज तक किसी लड़की के साथ कुछ किया नहीं था और उन्हें ये भी पता था की मेरे जैसे लड़के अपने हाथो से काम चलाते है. पर मैं ये सवाल सुन कर हक्का बक्का सा रह गया गया. मेरे होंठ सुख गए और मैं कुछ बोल नहीं पाया. दीदी ने फिर से मेरी बाँहों को पकड़ मुझे झकझोरा और पूछा“बोलताक्योंनहींहै….मैंक्यापूछरहीहूँ….तूअपनेहाथोसेतोनहींकरता…” मैंने नासमझ होने का नाटक किया और बोला “हाथोसेदीदी…मममैंसमझानहीं…”
“देख….इतनातोमैंसमझचुकीहुकीतूलड़कियोंकेबारेमेंसोचता..है…इसलिएपूछरहीहुतूअपनेआपकोशांतकरनेकेलिए….जैसेतूअभीमेरेसाथ…उफ़बोलनेमेंभीशर्मआरहीपर….अभीजबतेरा….येतनजाताहैतोअपनेहाथोसेशांतकरताहैक्या…इसे…” मेरे पैंट के उभरे हुए भाग की तरफ इशारा करते हुए बोली. अब दीदी अपनी बात को पूरी तरह से स्पष्ट कर चुकी थी मैं कोई बहाना नहीं कर सकता था गर्दन झुका कर बोला “दी…दीदी…वोवो…मुझेमाफ़कर…माफ़…” एक बार फिर से दीदी का हाथ चला और मेरी गाल फिर से लाल हो गई “क्यादीदी, दीदीकररहाहै…जोपूछरहीहूँसाफ़साफ़क्योंनहींबताता….हाथसेकरताहै….यहाँऊपरपलंगपरबैठ…बतामुझे…” कहते हुए दीदी ने मेरे कंधो को पकड़ ऊपर उठाने की कोशिश की. दीदी को एक बार फिर गुस्से में आता देख मैं धीरे से उठ कर दीदी के सामने पलंग पर बैठ गया और एक गाल पर हाथ रखे हुए अपनी गर्दन निचे किये हुए धीरे से बोला “हाँ…हाथसे……हाथसे…करता…” मैं इतना बोल कर चुप हो गया. हम दोनों के बीच कुछ पल की चुप्पी छाई रही फिर दीदी गहरी सांस लेते हुए बोली “इसीबातकामुझेडरथा….मुझेलगरहाथाकीइनसबचक्करोंमेंतूअपनेआपकोबर्बादकररहाहै…” फिर मेरी ठोढी पकड़ कर मेरे चेहरे को ऊपर उठा कर ध्यान से देखते हुए बोली “मैंने…तुझेमारा…उफ़…देखकैसानिशानपरगयाहै…परक्याकरतीमैंमुझेगुस्साआगयाथा….खैरमेरेसाथजोकियासोकिया……परभाई…सचमेंमैंबहुतदुखीहूँ…..तुमजोयेकामकरतेहोये…..येतो…” मेरे अन्दर ये जान कर थोड़ी सी हिम्मत आ गई की मैंने दीदी के बदन को देखने की जो कोशिश की थी उस बात से दीदी अब नाराज़ नहीं है बल्कि वो मेरे मुठ मरने की आदत से परेशान है. मैं दीदी की ओर देखते हुए बोला “सॉरीदीदी…मैंअबनहीं….करूँगा…”

“भाईमैंतुम्हारेभलेकेलिएहीबोलरहीहूँ…तुम्हाराशरीरबर्बादकरदेगा…येकाम…..ठीकहैइसउम्रमेंलड़कियोंकेप्रतिआकर्षणतोहोताहै….मगर…येहाथसेकरनासहीनहींहै….येठीकनहींहै… राजूतुमऐसामतकरोआगेसे….”

“ठीकहैदीदी….मुझेमाफ़करदोमैंआगेसेऐसानहींकरूँगा…मैंशर्मिंदाहूँ….” मैंने अपनी गर्दन और ज्यादा झुकाते हुए धीरे से कहा. दीदी एक पल को चुप रही फिर मेरी ठोड़ी पकड़ कर मेरे चेहरे को ऊपर उठाती हुई हल्का सा मुस्कुराते हुई बोली“मैंतुझेअच्छीलगतीहूँक्या….” मैं एकदम से शर्मा गया मेरे गाल लाल हो गए और झेंप कर गर्दन फिर से निचे झुका ली. मैं दीदी के सामने बैठा हुआ था दीदी ने हाफ पैंट के बाहर झांकती मेरी जांघो पर अपना हाथ रखा और उसे सहलाती हुई धीरे से अपने हाथ को आगे बढा कर मेरे पैंट के उभरे हुए भाग पर रख दिया. मैं शर्मा कर अपने आप में सिमटते हुए दीदी के हाथ को हटाने की कोशिश करते हुए अपने दोनों जांघो को आपस में सटाने की कोशिश की ताकि दीदी मेरे उभार को नहीं देख पाए. दीदी ने मेरे जांघ पर दबाब डालते हुए उनका सीधा कर दिया और मेरे पैंट के उभार को पैंट के ऊपर से पकड़ लिया और बोली “रुक…आरामसेबैठारह…देखनेदे….सालेअभीशर्मारहाहै,…चुपचापमेरेकमरेमेंआकरमुझेछूरहाथा…तबशर्मनहींआरहीथीतुझे…कुत्ते” दीदी ने फिर से अपना गुस्सा दिखाया और मुझे गाली दी. मैं सहम कर चुप चाप बैठ गया.

दीदी मेरे लण्ड को छोर कर मेरे हाफ पैंट का बटन खोलने लगी. मेरे पैंट के बटन खोल कर कड़कती आवाज़ में बोली“चुत्तर…उठातो…तेरापैंटनिकालू…” मैंने हल्का विरोध किया “ओहदीदीछोड़दो…”
“फिरसेमारखायेगाक्या…जैसाकहतीहुवैसाकर…” कहती हुई थोड़ा आगे खिसक कर मेरे पास आई और अपने पेटिकोट को खींच कर घुटनों से ऊपर करते हुए पहले के जैसे बैठ गई. मैंने चुपचाप अपने चुत्तरों को थोड़ा सा ऊपर उठा दिया. दीदी ने सटाक से मेरे पैंट को खींच कर मेरी कमर और चुत्तरों के निचे कर दिया, फिर मेरे पैरों से होकर मेरे पैंट को पूरा निकाल कर निचे कारपेट पर फेंक दिया. मैंने निचे से पूरा नंगा हो गया था और मेरा ढीला लण्ड दीदी की आँखों के सामने था. मैंने हाल ही में अपने लण्ड के ऊपर उगे के बालो को ट्रिम किया था इसलिए झांट बहुत कम थे. मेरे ढीले लण्ड को अपनी मुठ्ठी में भरते हुए दीदी ने सुपाड़े की चमरी को थोड़ा सा निचे खींचते हुए मेरे मरे हुए लण्ड पर जब हाथ चलाया तो मैं सनसनी से भर आह किया. दीदी ने मेरी इस आह पर कोई ध्यान नहीं दिया और अपने अंगूठे को सुपाड़े पर चलाती हुई सक-सक मेरे लण्ड की चमरी को ऊपर निचे किया. दीदी के कोमल हाथो का स्पर्श पा कर मेरे लण्ड में जान वापस आ गई. मैं डरा हुआ था पर दीदी जैसी खूबसूरत औरत की हथेली ने लौड़े को अपनी मुठ्ठी में दबोच कर मसलते हुए, चमरी को ऊपर निचे करते हुए सुपाड़े को गुदगुदाया तो अपने आप मेरे लण्ड की तरफ खून की रफ्तार तेज हो गई. लौड़ा फुफकार उठा और अपनी पूरी औकात पर आ गया. मेरे खड़े होते लण्ड को देख दीदी का जोश दुगुना हो गया और दो-चार बार हाथ चला कर मेरे लण्ड को अपने बित्ते से नापती हुई बोली “बापरेबाप….कैसाहल्लबीलण्डहै…ओह… हाय…भाईतेरातोसचमेंबहुतबड़ाहै….मेरीइतनीउम्रहोगई….आजतकऐसानहींदेखाथा…ओह…येपूरानौइंचकालगरहाहै…इतनाबड़ातोतेरेबहनोईकाभीनहीं….हाय….येतोउनसेबहुतबड़ालगरहाहै…..औरकाफीशानदारहै….उफ़….मैंतो….मैंतो……हाय…..येतोगधेकेलण्डजितनाबड़ाहै…..उफ्फ्फ्फ़…..” बोलते हुए मेरे लण्ड को जोर से मरोर दिया और सुपाड़े को अपनी ऊँगली और अंगूठे के बीच कस कर दबा दिया. दर्द के मारे छटपटा कर जांघ सिकोरते हुए दीदी का हाथ हटाने की कोशिश करते हुए पीछे खिसका तो तो मेरे लण्ड को पकर कर अपनी तरफ खींचती हुई बोली “हरामी….साले….मैंजबसोरहीहोतीहुतोमेरीचूचीदबाताहैमेरीचुतमेंऊँगलीकरताहै….आगलगाताहै….इतनामोटालौड़ालेकर….घूमताहै…और बाएं गाल पर तड़ाक से एक झापड़ जड़ दिया. मैं हतप्रभ सा हो गया. मेरी समझ में नहीं आ रहा था मैं क्या करू. दीदी मुझ से क्या चाहती है, ये भी समझ में नहीं आ रहा था. एक तरफ तो वो मेरे लण्ड को सहलाते हुए मुठ मार रही थी और दूसरी तरफ गाली देते हुए बात कर रही थी और मार रही थी. मैं उदास और डरी हुई नज़रों से दीदी को देख रहा था. दीदी मेरे लण्ड की मुठ मारने में मशगूल थी.
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