RE: Desi Sex Kahani मेरी प्रेमिका
में ज़ोर ज़ोर से धक्के मार कर उसकी गान्ड मारने लगा. बड़ी अजीब
स्तिथि थी, मेरा लंड मेरी प्रेमिका के भाई की गान्ड के अंदर बाहर हो
रहा था, शायद में उससे मेरी प्रेमिको को चोदने का बदला ले रहा
था. विजय अपने लंड को मेरे पेट के पास मुठिया रहा था, पर जो भी
था मुझे काफ़ी अच्छा लग रहा था.
"हां र्राआाज बाहोट आआचा लग रहा है……..पेल्ल्ल दो अपने लंड
को मेरी गांद के अन्दर तक जूऊऊर सीईए." विजय बड़बड़ा रहा
था.
में ज़ोर के धक्के लगाते हुए अपना पूरा लंड उसकी गान्ड मे पेल रहा
था. मैने उसकी टाँगो को उठा कर अपने कंधों पर रख लीआ जिस तरह
उसके पिताजी ने सुजाता की टाँगो को दोपहर को अपने कंधों पर रखा
था. विजय के लंड से पानी चुह रहा था, और उसके लंड का सुपाडा
कमरे में आती सूरज की रोशनी से चमक रहा था.
में सोच रहा था कि विजय भी अपनी बेहन की तरह पूरा चुड़क्कड़
है, शायद इस परिवार की ये ख़ासियत थी.
"विजय मेरा छूटने वाला है," मैने सिसकते हुए कहा.
"हाआँ छोड़ अपना पानी मेरी गान्ड मे, भर दो मेरी गान्ड को."
विजय ने कहा.
"मेराअ छूट राआ है वियिजा." कहकर मैने अपना वीर्य उसकी
गान्ड मे छोड़ दिया. मेरे लंड से कोई खास पानी नही निकला कारण
मैं दिन मे पहले ही दो बार झाड़ चुका था. पर विजय को मज़्ज़ा आ
रहा था.
"हां में तुम्हारे पानी को अपनी गाअंड मे महस्स्सूस कर रहा हूँ,
बहुत अच्छा लग रहा है." विजय सिसक रहा था.
मैने अपना लंड उसकी गान्ड से बाहर निकाला वो क्रीम और मेरे वीर्य
से लिथड़ा हुआ था, "में बाथरूम जाकर आता हूँ."
विजय ने मेरे लंड को पकड़ लिया, "थॅंक यू राज." कहकर उसने मेरे
लंड को दो तीन झटके देकर उसका बचा हुआ पानी भी निकाल लिया.
विजय का लंड अभी ताना हुआ था, "तुम्हारे लंड ने पानी नही
छोड़ा.?" मैने पूछा.
विजय ने ना मे गर्दन हियाई और मेरे लंड को छोड़ दिया. अब वो अपने
लंड को मुठियाने लगा.
"लाओ मुझे करने दो." कहकर मैने विजय के लंड को पकड़ लिया और
उसे जोरों से मुठियाने लगा. में उसके लंड की चॅम्डी को आगे पीछे
कर उसे मुठिया रहा था.
"हाआँ आऐसे ःईईईई करूऊ ओह आआआः मेरा छूट रहाआ
है." और गाढ़ा गाढ़ा वीर्य उसका लंड उगलने लगा.
में वहाँ से हटा और कमरे के बाहर बने बाथरूम की ओर बढ़
गया. सुजाता बाथ टब मे लेटी हुई कोई मॅगज़ीन पढ़ रही थी.
"ओह्ह्ह्ह राज आआओ, क्या करते रहे अब तक?" सुजाता ने पूछा.
"करना को और है क्या, अभी तुम्हारे भाई की गान्ड मारकर आ रहा
हूँ." मैने जवाब दिया.
सुजाता की आँखे चमक उठी, "बड़े हरामी हो तुम?" उसने मेरे लंड
को देखा जो मेरी टाँगो के बीच झूल रहा था. "अगर तुम इसे साफ कर
लो में तुम्हारा लंड चूस सकती हूँ."
"नही थॅंक्स, आज के दिन के लिए इतना ही काफ़ी है." मैने कहा.
"ठीक है, तो फिर ऐसा करो मेरे साथ बात टब मे स्नान कर लो."
में उसके सामने आकर टब मे लेट गया. पानी बाहर की गर्मी से कुछ
कम ही गरम था. मैने खिड़की के बाहर देखा, सूरज डूबने वाला था.
उसका सुनेहरी रंग आसमान मे फैला हुआ था. मुझे भूक लगने लगी,
शायद पेट दिमाग़ की तरह एक दम खाली हो गया था.
"आज के पूरे दिन के बारे मे तुम्हारा क्या कहना है?' मैने सुजाता से
पूछा.
"राज मेरी चूत काफ़ी सूज़ी हुई है. पिताजी का लंड सही मे बहोत ही
लंबा और मोटा है, काफ़ी दर्द भी हो रहा है. मुझे नही लगता कि
में कल भी चुद पाउन्गि." सुजाता ने अपनी चूत पर हाथ फिराते
हुए कहा.
मैं अपने पाँव के घुटने से उसकी चूत को सहलाने लगा, "ह्म्म्म्म म
अच्छा लगग्ग रहा है अब मे कल चुदा सक्क्ती हूँ." सुजाता
सिसकते हुए बोली.
"अगर नही चुदा सकी तो हम तुम्हारे गान्ड और मुँह को तो चोद ही
सकते है." मैने कहा.
उस रात हम ने अच्छे से खाना खाया. खाना खा कर में और सुजाता
तुरंत सोने चले गये. हम काफ़ी थक चुके थे. बिस्तर पर लेटते ही
मुझे नींद आ गयी.
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