RE: Desi Sex Kahani मेरी प्रेमिका
तभी मैने महसूस किया कि प्रियंका की चूत ने मेरे लंड को जाकड़
लिया और मेरे लंड से एक एक बूँद निचोड़ रही है.
पिताजी ने अपना मोटा और लंबा अपनी बेटी की चूत से बाहर निकाला
और सुजाता को चूमते हुए बोले, "सुजाता बेटा मज़ा आ गया, मैं
तुमसे प्यार करता हूँ." कहकर वो पिशाब करने को कमरे से बाहर
चले गये.
में सुजाता की तरफ बढ़ा. उसकी चूत अब भी खुली हुई थी, वीर्य
उसकी चूत से बह रहा था. जो मैने देखा था, उसे देखकर में
इतना उत्तेजित था कि मैने तुरंत अपना लंड उसकी चूत मे जड़ तक
घुसा दिया.
उसकी चूत काफ़ी गीली थी, "सुजाता में तुम्हे चोदना चाहता हूँ."
में चिल्ला रहा था.
"हां मेरे सनम चोदो मुझे ज़ोर ज़ोर सससे चोदो."
में जोरों से धक्के लगा रहा था. में उसके होठों को, उसकी
चुचियों, उसके निपल को चूस्ते हुए जोरों से उसे चोद रहा था.
इतनी देर से सबकी चुदाई को देख कर विजय अब अपने आपको रोक नही
पाया. वो प्रियंका की तरफ बढ़ा और उसे उठा कर हमारे पास
बिस्तर पर लिटा दिया. फिर उसने अपना लंड उसकी चूत मे एक ही
झटके मे जड़ तक पेल दिया.
विजय शायद पहली बार प्रियंका को चोद रहा था, पर देख के ऐसा
लग रहा था कि वो कई बार चुदाई कर चुके थे. पिताजी वापस कमरे
मे आए और दो मस्त लड़कों को अपनी दोनो बेटियों को चोद्ते देखने
लगे. विजय और में जोरों से दोनो बहनो की चूत को चोद रहे थे और
करीब करीब साथ साथ ही झाडे.
सुजाता इतनी भ्यन्कर चुदाई के बाद काफ़ी थक गयी थी. वो बिस्तर
पर लेटी रही और थोड़ी ही देर मे उसे नींद आ गयी. प्रियंका खिसक
कर अपनी बेहन के पास आई और वो भी सो गयी.
"अब चलो यहाँ से. लड़कियों को थोड़ा सो लेने दो." पिताजी ने हम
दोनो से कहा.
हम तीनो बाहर की ओर बढ़े. हम मे से किसी ने कपड़े पहनने की
कोशिश नही की. हम सब गार्डेन मे आकर बैठ गये और ठंडी बियर
पीने लगे.
"पिताजी आपका लंड सही मे किसी घोड़े के लंड से कम नही है."
विजय अपने पिताजी के लंड को देखते हुए बोला. पिताजी का मुरझाया हुआ
लंड भी काफ़ी बड़ा लग रहा था.
"थॅंक यू, बेटा. पर मेरे लंड से तुम्हारा लंड अच्छा है, कम से
कम तुम्हे किसी चूत मे घुसाने मे तकलीफ़ तो नही होती. मुझे अक्सर
इसे चूत मे घुसने मे तकलीफ़ होती है. इसीलिए मुझे तुम्हारी माँ
अच्छी लगती थी. वो बिना किसी क्रीम या तेल के मेरा लंड आसानी से
अपनी चूत मे ले लेती थी.
में अपनी बियर से घूँट भरता रहा.
"राज सच बताना तुम्हे मज़ा आया कि नही?" पिताजी जानना चाहते थे.
"हां बहोत अच्छा लगा, सोचने पर अजीब लगता है, पर काफ़ी मज़ा
आया." मैने जवाब दिया.
मैने महसूस किया कि विजय मेरे लंड को छेड़ रहा था. मेरा लंड एक
बार फिर खड़ा होने लगा. "राज तुम्हे लगता है कि तुम्हारे लंड मे
अभी कुछ पानी बचा है." विजय ने कहा.
"हां लगता तो है क्यों पूछ रहे हो?" मैने कहा.
"सही कहूँ तो में तुम्हारा लंड अपनी गान्ड मे महसूस करना चाहता
हूँ…….में गान्ड मरवाना चाहता हूँ, तुरंत अभी." विजय मेरे लंड को
मसल्ते हुए बोला.
में पहले तो उसकी बात समझा नही, पर उसकी गान्ड मारने के ख़याल
ने ही मुझे उत्तेजित कर दिया. "हन क्यों नही." मैने कहा.
"जाओ मेरे बच्चो मज़ा करो. में यहीं रहूँगा, मेरे लिए इतना ही
काफ़ी था." पिताजी ने कहा.
हम दोनो विजय के कमरे मे आ गये, साथ मे क्रीम की ट्यूब भी पिताजी
के कमरे से लेते आए. सुजाता और प्रियंका अभी सो रही थी.
मैने थोड़ी क्रीम अपने लंड पर लगाई और विजय थोड़ी क्रीम अपनी
उंगली पे ले अपनी गान्ड के अंदर लगाने लगा. विजय बिस्तर पे लेट गया
और अपनी टाँगे को एकदम हवा मे उठा कर अपनी गान्ड मुझे पेश
की, "आओ राज अपना लंड मेरी गान्ड मे पेल दो. सोचो मत और जल्दी
करो."
"ठीक है," कहकर मैने अपना लंड उसकी गान्ड के छेद पर लगाया और
धीरे धीरे अंदर घुसाने लगा. मेरा लंड आसानी से उसकी गान्ड के
अंदर घुस गया, "क्या तुमने पहले भी किसी से गान्ड मरवाई है?"
मैने पूछा.
"हां एक बार राकेश ने मेरी गान्ड मारी थी, और मुझे भी काफ़ी मज़ा
आया था. ओह कितना अच्छा लग रहा ओोह पेलूऊ जूओर से."
विजय सिसक रहा था.
|