RE: Desi Sex Kahani मेरी प्रेमिका
मेरे वहाँ ना होने से विजय ज़रूर अपनी बेहन को फिर से चोदने की
कोशिश करेगा, और मेरा सोनाली से झगड़ा होने के बाद तो वो भी अपने
दोनो बाहें पसारे उसका स्वागत करेगी. सच कहूँ तो मुझे मन ही
मन जलन हो रही थी.
माना वो उनका परिवार था और वो सब आपस मे एक दूसरे से बहोत प्यार
करते हैं. सोनाली का जब मन करता वो किसी से भी अपनी चूत की
प्यास बुझा सकती थी, और में यहाँ होटेल के कमरे मे रोज़ रात को
मूठ मारता जबकि एक सुंदर लड़की मेरे बगल के कमरे मे मुझसे
चुदवाने को तय्यार बैठी है. मुझे भी लगा कि मुझे अपना अगला
कदम गायत्री की ओर बढ़ा देना चाहिए.
गायत्री और मेने उस रात एक अच्छे से रेस्टोरेंट मे खाना खाया,
दूसरे दिन हमारी छुट्टी थी इसलिए हम दोनो ने शराब कुछ ज़्यादा ही
पी ली थी. खाने के वक्त कई बार गायत्री अपनी टाँगो को मेरी टाँगो
से रगड़ देती, एक बार तो उसने अपनी टाँग ठीक मेरी जांघों के बीच
रख अपने अंगूठे से मेरे लंड को छेड़ने लगी. मुझे अच्छा लग रहा
था, आग दोनो तरफ बराबर की लगी हुई थी.
कुछ घंटे बाद हम अपने होटेल के रूम के बाहर खड़े एक दूसरे की
आँखों मे झाँक रहे थे, "गायत्री कुछ वक्त मेरे साथ बिताना पसंद
करोगी मेरे कमरे मे?" मेने उससे पूछा.
उसकी आँखों मे चमक आ गयी, "कुछ देर नही बल्कि पूरी रात
तुम्हारे साथ गुज़ारने का दिल कर रहा है." वो खुश होती हुई बोली.
गायत्री उछल कर मेरी बाहों मे आ गयी और हम एक दूसरे को
बेतहाशा चूमने लगे. में हाथ पकड़ कर उसे कमरे मे लाया और
लेजा कर बिस्तर पर धकेल दिया. में भी उछल कर उसके पास लेट
गया और उसे चूमने लगा.
गायत्री के हाथ मेरे शरीर पर रेंग रहे थे, और मेरे कपड़ों को
खोलने लगे. में भी उसके बदन को सहला रहा था, कपड़ों के उपर
से उसकी तनी चुचियों को सहलाने लगा. मुझे उसकी चुचियाँ बड़ी प्यारी
लग रही थी, सोनाली की चुचियों से भी बड़ी.
"थोड़ा सब्र करो मेरे राजा." गायत्री ने कहा, "में थोड़ी देर के
लिए बाथरूम जाकर आती हूँ."
में उसके शरीर से हट गया और वो उठ कर बाथरूम की ओर चली
गयी, "ज़्यादा देर मत लगाना." मेने कहा. मेने देखा कि मेरे कमरे
का दरवाज़ा अभी भी खुला था, उसे मेने बंद कर दिया.
जहाँ गायत्री बाथरूम मे फ्रेश हो रही थी में सोच रहा था कि
क्या जो में करने जा रहा हूँ वो उचित है. क्या में सोनाली से
बेवफ़ाई कर सकता हूँ. पर सोनाली भी औरों से चुदवाती है, उनके
परिवार वाले है तो क्या हुआ. पर क्या इससे सच्चाई बदल जाएगी.
मेने अपना मन बना लिया. मेने अपने कपड़े उतारे और बाथरूम मे
घुस गया. गायत्री के कपड़े शेल्फ पर टँगे थे. वो टाय्लेट सीट पर
बैठी अपनी चूत सॉफ कर रही थी. मेरा खड़ा लंड तन्कर उसके
मस्त शरीर की ओर देख रहा था.
वो अपना काम ख़तम कर चुकी थी और वहाँ से उठना चाहती थी, पर
मेने उसे ऐसा करने नही दिया. मेने उसे घसीट कर टाय्लेट सीट के
किनारे पर कर दिया और अपना लंड उसकी चूत पर घिसने लगा. धीरे
धीरे मेरा लंड उसकी बिना बालों की चूत मे गायब होने लगा.
गायत्री ने मुझे मेरी गर्दन से पकड़ नीचे किया और मेरे होठों को
अपने होठों मे ले चूसने लगी. मेने उसे बाहों मे उठाया और दीवार
के सहारे कर दिया. उसने अपनी दोनो टाँगे मेरी कमर के इर्द गिर्द
जाकड़ दी और अपनी चूत को मेरे लंड पे दबाने लगी. मेरा लंड उसकी
चूत की जड़ तक घुस चुका था. में उसे उपर नीचे करते हुए धीमे
धीमे धक्के लगाने लगा. दोनो का शरीर पसीने मे नहा गया था.
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