RE: Kamukta Kahani महँगी चूत सस्ता पानी
महँगी चूत सस्ता पानी--11
गतान्क से आगे…………………………….
अब मेरा दर्द बिल्कुल कम हो गया था .....और मैं अंदर ही अंदर सिहर रही थी ....और तभी उन्होने पूरे जोरों से आखरी बार लंड अंदर घूसेड दिया ..पूरे का पूरा लंड ..जड़ तक ...मेरी चूत में था ..मुझे लगा जैसे किसी ने पिघलता हुआ लोहा मेरी चूत में डाल दिया हो ....मेरे चूतड़ उछल पड़े ...दर्द महसूस हुआ .....मैं कराह उठी
उन्होने लंड अंदर डाले रखा और मुझे और भी चिपका लिया अपने से .... मेरे होंठ ,,मेरी चूचियाँ चूसते रहे ...सहलाते रहे ......
मुझे काफ़ी आराम मिला ..दर्द गायब हो गया .....
अब उन्होने लंड बाहर किया , पर पूरा बाहर नहीं , बस सिर्फ़ इतना की उनके सुपाडे का हिस्सा अंदर ही था ...इस से मेरी चूत फैली रही ..मुझे अंदर ठंडक सी महसूस हुई .... उनका लंड मैने देखा ..मेरे रस और खून से गीला था ...मेरी सील टूट चूकि थी ....
उफफफफफफ्फ़.मुझे कितना अच्छा लगा किशू ....
अब उन्होने बिना रूकी फिर मेरी चूत के अंदर पूरा लॉडा डाल दिया
इस बार दर्द नहीं के बराबर था .... उनका लंड पूरी तरह अंदर था .उनके अंडकोष मेरी चूत को चू रहे थे .....मैं मस्ती में आ चूकि थी ..मेरी चूतड़ उछल पड़ी ...
अब उन्होने मेरी चूतड़ को थामे लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया ...पहले गति धीमी थी ..फिर जब उन्होने महसूस किया के मेरे चूतड़ उनके हाथों में कांप रहे थे ..थर्रत्तरा रहे थे ...उनका धक्का ज़ोर पकड़ता गया ..ज़ोर और ज़ोर और ज़ोर ......
मेरा पूरा बदन कांप रहा था ...मेरी चूत जैसे उनके हर धक्के पर और भी फैलती जाती ..उन्हें और भी मज़ा आता .मेरी चूत तो जैसे एक पहाड़ी नदी की तरह रस की धार छ्चोड़े जा रही थी ....फॅच ..फतच ..पॅच पॅच की आवाज़ आ रही थी ...मैने अपने आप को चीत्कार करने से बड़ी मुश्किल से रोका ..फिर भी मेरे मुँहे से '..घ्टी घूती सिसकारियाँ निकल ही पड़ी ....
हर धक्के पर मेरे चूतड़ बल्लियों उछल रहे थे ...किशू उफफफफफ्फ़ जब तू मुझे चोदेगा तो मैं तो मर ही जाऊंगी ..इतना सिहरन होगा मुझे ..मेरे ऐसा सोचते ही मेरी चूत से जोरदार पानी छूटने लगा ...उनका लंड पूरी तरह गीला हो गया और उनके धक्के लगाने की स्पीड भी बढ़ गयी
"आआआआआआआआआआह ...ऊवू पायल ...उफफफ्फ़ क्या चूत है रे तेरी ..रस से भरपूर ...." उनका धक्का बड़े जोरों पर था ...
मैं समझ गयी गौरव भी अब झड़ने वाले हैं ....
और अगले धक्के में ही उनके लंड से पिचकारी छूट गयी ..उन्होने मुझे बूरी तरह चिपका लिया ..लंड अंदर ही था ...मैं उनके लंड के झटके अंदर ही अंदर महसूस कर रही थी .....तीन चार झटकों के बाद पूरी तरह मेरी चूत में उनका लंड खाली हो गया था ..मैं भी उसी दौरान झाड़ गयी थी .....
दोनों काफ़ी देर तक एक दूसरे से चिपके थे ...
उसके बाद उन्होने एक बार और चोदा मुझे ....और फिर दोनों पस्त हो कर एक दूसरे की बाहों में सो गये.....
हाँ किशू देखा ना गौरव ने कितना ख़याल रखा तेरी अमानत का ..???
मैं जल्दी ही आउन्गि वहाँ ....
मेरी चिंता मत करना किशू मैं खुश हूँ यहाँ ....पर तुम्हारी कमी तो पूरी नहीं हो सकती ना ...
स्वेता को मेरी याद दिला देना ..और तुम लोग मस्ती करना ....खूब
किशू आइ लव यौउउउउउउ .....बहुत प्यार ..बहुत ....
दीदी की चिट्ठि पढ़ने के बाद मैने देखा मेरा लंड फूँफ़कार रहा था .....
मैने बहुत दिनों के बाद उस दिन खूद अपने ही हाथों से मूठ मारी ....मैं शांत हो गया ... काफ़ी खुश था के पायल दीदी वहाँ खुश हैं ..और सब से बड़ी बात थी जीजा जी उनका कितना ख़याल रखते थे....
उस दिन के बाद दीदी की याद तो आती पर मैं परेशान नहीं होता ..वरण मैने अपनी पढ़ाई में और भी ध्यान लगाना शुरू कर दिया ...जब दीदी आएँगी मेरी पढ़ाई से कितनी खुश हो जाएँगी .......
और कुछ ही दिनों के बाद दीदी ससुराल से पहली बार अपने घर आईं ..मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था .......
दीदी को गये सिर्फ़ आठ ..दस दिन ही हुए थे ..पर ये दस दिन मुझे दस सालों से भी ज़्यादा लगा...एक एक दिन जैसे पहाड़ के समान थे ...काट ते नहीं कट ता....सब से मुश्किल होता रात का काटना ...दिन भर तो स्कूल में पढ़ाई लिखाई और दोस्तों में बड़े आराम से बीत जाता था..शाम का वक़्त भी खेल कूद और कभी कभी स्वेता दीदी आ जातीं ...अच्छे से समय कट जाता ..
रात काटना मुश्किल हो जाता ..दीदी के शरीर की गर्मी..उनकी मुलायम चूचियों का दबाव मेरे सीने में ..उनका मेरा लंड सहलाना .....उफफफफ्फ़ .मैं तड़प उठ ता उनके बिना ....रात भर मैं ऐसे तड़प्ता था जैसे बिन पानी मछली ..
पर इसका तो अब कोई इलाज़ नहीं था . उनके ससुराल से घर आने की बात से कुछ तसल्ली हुई और सब से बड़ी बात....उफफफफ्फ़ ..याद करते ही मेरा लंड उछल पड़ता ..हाँ उनकी चूत .....
हाँ उनकी चूत की सील टूट चूकि थी ..मेरे लिए रास्ता बिल्कुल सॉफ था ..उन्हें चोद्ने के ख़याल से ही मैं सिहर उठ ता.... ओह्ह्ह्ह दीदी दीदी ......
और उस दिन दीदी आईं ...
कार से उतरते हुए घर की सीढ़ियों तक बड़े धीमे धीमे कदमों से ..साड़ी संभालते हुए आईं ...
मैं बस देखता ही रहा ...इन दस दिनों में उनमें काफ़ी बदलाव आ गये थे ..चूतड़ थोड़े भारी थ ..पहले ही उनकी चूतड़ इतनी मस्त थी ..और अब लगता था जीजा जी की चुदाई से और भी मस्त हो गये थे ..गोरे चेहरे पर एक लालिमा थी .....हाथ में चूड़ियाँ .....माँग में सिंदूर ...माथे पर बिंदी .....मैं एक तक उन्हें निहार रहा था .....दीदी गयी थी एक अधखिली फूल की तरह ..और आज फूल पूरी तरह खिल उठा था ..अपनी पूरी खूबसूरती , मादकता और सुगंध लिए.....
" अरे क्या देख रहा है किशू ...मुझे कभी देखा नहीं .....???"
मैं आगे बढ़ा ..दीदी को हाथ से थामता हुआ उन्हें सीढ़ियों से उपर बारामदे तक लाया ..
" दीदी देखा तो ज़रूर है ..पर अब आप वो नहीं हैं.......आप कितनी अच्छी लग रही हैं ....."
" तो क्या मैं पहले अछी नहीं थी ..???"
हम घर के अंदर आ गये थे .... मा , मामी और दूसरे रिस्तेदार उन्हें थामते हुए उनके बेड रूम की तरफ चल पड़े ......... .. हमारी बात अधूरी रह गयी ....
और फिर नियती , भाग्य यह समय ने ऐसा खेल खेला,अधूरी बात पूरी होने में .... दीदी के सवाल और मेरे जवाब के बीच एक लंबा अंतराल आ गया .....बहुत लंबा ..तीन साल ......!
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