non veg story बदलते मौसम
08-18-2018, 12:26 PM,
#6
RE: non veg story बदलते मौसम
अब बात तो सही थी बैद्य जी की लुगाई जैसे मेरे पुरे बदन का अवलोकन कर रही थी अब मुझे तो इलाज से मतलब ,मैंने अपनी पेन्ट खोली और कच्छा सरका दिया घुटनो पे ,और जैसे ही उसकी नजर मेरे सूज़े हुए झूलते हुए लण्ड पर पडी उसका मुंह खुल गया 

एक पल वो जैसे स्तब्ध सी हो गयी और फिर बोली- यकीन नहीं होता, ये तो सच में ही सूज़ा हुआ है और नीला भी पड़ गया है ज़हर चढ़ गया इसके तो 

उसकी बात सुनकर मैं घबरा गया ज़हर चढ़ना मतलब जान का खतरा 

मैं- कही मैं मर तो न जाऊंगा 

वो- क्या पता 

बिना मेरी ओर देखे वो दरवाजे की तरफ गयी उसको अंदर से बंद किया और बोली- पेन्ट और कच्छे को उतार के कुर्सी पे बैठ जा
मैंने वैसे ही किया ,वो नीचे झुकी और मेरे लण्ड को अपने हाथ में लेके दबाते हुए बोली- मोटा तो खूब है 

मैं- सूज़न से हुआ है

वो- हां हां, वार्ना कहा इतनी मोटाई मिलती है देखने को

वो कभी धीरे से दबाती तो कभी सख्त और पूछती- दर्द होता है 

मैं- ऐसे नहीं होता 

वो- तो कब होता है 

अब उसको मैं क्या बताता उत्तेजना की बात 

वो- बता न कब होता है दर्द, अब न बतायेगा तो सूज़न कैसे जायेगी 

मैं- जब उत्तेजना आती है 

वो- उत्तेजना शाबाश लड़के शाबाश 

मैंने नजर नीचे कर ली


वो धीरे धीरे मेरे लण्ड को सहलाने लगी उसकी उंगलियो की गर्मी से मेरा लण्ड खड़ा होने लगा और कुछ ही पल में एक दम छत की तरफ खड़ा होकर तन गया 

वो- हथियार तो चोखा है 

मैं- क्या 

वो- कुछ नहीं 

उसने दोनों हाथों से मेरे लण्ड को पकड़ लिया और ऐसे करने लगीं जैसे मुठिया रही हो 

मैं- ऐसा मत करो 

वो- देखना तो पड़ेगा न 

मैं- आपके स्पर्श से गुदगुदी होती है और जब ये तनता है तो फिर दर्द होता है 

वो- तुझे अच्छा लगा मेरा स्पर्श 

मैं- हां, पर दर्द

वो- नीला हुआ पड़ा है तो साफ़ है कोई डंक रह गया होगा मैं गर्म पानी लाती हु इसको साफ़ करुँगी फिर डंक देखूंगी 

कुछ ही देर में वो एक कपडा और पानी ले आयी वो उस कपडे से लण्ड को भिगो के रगड़ने लगी मुझे दर्द के साथ उस गर्माहट मे मजा भी आने लगा मेरा लण्ड झटके खाने लगा

वो बार बार कपडे को पानी में भिगोती और मेरे लण्ड पर रगड़ती कुछ देर बाद उसने पाया की तीन डंक थे उसने निकाले और बोली- मधुमक्खियों को भी ये पसंद आ गया क्या जो इस पर टूट ही पड़ी

मैं चुप रहा 

वो- एक आयुर्वेदिक तेल दूंगी सुबह शाम इस पर मलना और ऐसे ही गर्म पानी और कपडे से सेक करना कुछ दिन, आज तो मैं तेल लगा देती हूं तुम देखना और फिर करना 

वो घुटनो के बल मेरे सामने बैठ गयी और अपने हाथों से मेरे लण्ड पर तेल मलने लगी तो मुझे मजा आने लगा बदन में कम्पन होने लगा ,साथ ही ब्लाउज़ से उसकी झुकी चूचिया देख कर लण्ड और तनाव में आ गया 

वो भी ताड़ गयी की मैं उसकी चूचियो को घूर रहा हु तो बोली- अछि लगी 

मैं- क्या

वो- जो तू देख रहा है 

मैं कुछ न बोला

वो- बताना अब मुझसे क्या पर्दा 

मैं- सही है 

वो- बस सही है 

मैं- मतलब सुंदर है 

वो अब मालिश भूल के जोर जोर से मेरे लण्ड को मुठियाने लगी थी उसने अपनी छातियों को और झुका लिया ताकि गहरायी तक मैं देख सकू , वो लगभग पूरी तरह मेरे लण्ड पर झुक चुकी थी

अब लण्ड में दर्द की जगह रोमांच ने ले ली थी वो बस तेजी से उसको मुठिया रही थी हम दोनों की सांस भारी हो चली थी, उसका मुंह मेरे लण्ड के इतनी पास आ चुका था कि एक दो बार होंठो को स्पर्श भी कर चुका था और उसके तेजी से चलते हाथ, अब मामला कुछ और ही रंग पकड़ चूका था
अब लण्ड में दर्द की जगह रोमांच ने ले ली थी वो बस तेजी से उसको मुठिया रही थी हम दोनों की सांस भारी हो चली थी, उसका मुंह मेरे लण्ड के इतनी पास आ चुका था कि एक दो बार होंठो को स्पर्श भी कर चुका था और उसके तेजी से चलते हाथ, अब मामला कुछ और ही रंग पकड़ चूका था 

मुझे लगने लगा था की बस मैं झड़ने वाला हु मैं उसे रोकना चाहता था पर अब शायद समय बीत गया था तभी उसने बहुत जोर से मेरे लण्ड को हिलाया और मेरे सुपाड़े से गाढ़े सफ़ेद वीर्य की धार निकल कर सीधे उसके चेहरे पर गिरने लगी,

एक के बाद एक पिचकारियां उसके होंठो, गालो और माथे पर गिरने लगी उसका पूरा चेहरा गाढ़ेपन से सन गया ,पर वो बस मेरी मुट्ठी मारती गयी जबतक की वीर्य की अंतिम बूँद तक न निचोड ली उसने ,फिर उसने अपनी ऊँगली से गाल पर लगे वीर्य को लिया और ऊँगली अपने मुंह में डाल ली

मैं तो हैरान रह गया उसे तो गुस्सा करना चाहिए था पर वो तो मजे से अपने चेहरे से पूरे वीर्य को साफ़ करके चाटती गयी और दूसरे हाथ से लगातार मेरे लण्ड को सहलाती रही 

वो- रस का स्वाद तो गजब है 

मैं- क्या 

वो- इतना भी भोला मत बन तू , मेरा मतलब तो समझ गया होगा ही तू 

ये कहकर उसने मेरे अंडकोषों को मुट्ठी में भर लिया कुछ पल वो ऐसे ही खेलती रही फिर उसने मेरा हाथ पकड़ के कुर्सी से उठाया और अपने साथ उसके कमरे में ले आयी 

मैं- यहाँ क्यों लायी हो 

वो- बताती हु 

वो आगे बढ़ी और उसने अपने मुंह में मेरे होंठो को भर लिया मैं तो हक्का बक्का रह गया उसकी जीभ मेरे होंठो को कुरेदने लगी और तभी मेरा मुह खुल गया,उसकी जीभ मेरी जीभ से रगड़ खाने लगी मेरे बदन में जैसे जलजला ही आ गया 

ये पहली बार था जब मैं चुम्बन का अनुभव कर रहा था जैसे जैसे उसकी त्रीवता बढ़ती जा रही थी मेरे बाहे अपने आप उसकी पीठ पर कसती जा रही थी , कुछ मिनट बाद हाँफते हुए उसने अपने होंठ अलग किये कुछ पल हमारी आँखे एक दूसरे को देखती रही फिर उसने मेरा हाथ अपनी चूची पर रख दिया
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