non veg story बदलते मौसम
08-18-2018, 12:25 PM,
#4
RE: non veg story बदलते मौसम
बिंदिया कुछ कहना चाहती थी पर तभी हमने ताऊ को आते देखा मैं चारपाई से उठ गया 

ताऊ- देव, तेरी ताईजी को आज बड़े मंदिर जाना है तो तू साथ चले जाना और खेत पर आने की जरूरत नहीं आज मैं यहाँ हु मैं संभाल लूंगा यहाँ 

मैंने गर्दन हिलायी और चल दिया कुछ दूर जाके मैंने मुड़के देखा तो ताऊ का हाथ बिंदिया की कमर पे था ,मैं समझ गया आज फिर इनका कार्यक्रम होगा पर कैसे आज तो दीनू भी यही है सोचते सोचते मैं घर पर आ गया 

ताईजी- नाश्ता करले 

मैं- वो ताऊजी ने कहा है की आपके साथ बड़े मंदिर जाना है 

ताई- पर मैंने तो उनको साथ चलने को कहा था पर कोई बात नहीं नाश्ता करके तैयार होजा फिर चलते है

करीब एक घंटे बाद हम दोनों मंदिर के लिए निकल पड़े बड़ा मंदिर गांव से कोई दो कोस दूर पहाड़ी के ऊपर था आज न जाने ताईजी का क्या मन हुआ अब चढ़ने उतरने में ही हाथ पाँव फूल जाने थे

करीब एक घंटे बाद हम दोनों मंदिर के लिए निकल पड़े बड़ा मंदिर गांव से कोई दो कोस दूर पहाड़ी के ऊपर था आज न जाने ताईजी का क्या मन हुआ अब चढ़ने उतरने में ही हाथ पाँव फूल जाने थे 

ताई ने सफ़ेद ब्लाउज़ और नीला घाघरा पहना हुआ था जिसमे वो कुछ ज्यादा ही सुंदर लग रही थी गर्मी से बगलों में जो पसीना आया था ऊपर से कसा हुआ ब्लाउज़ जो बिलकुल चिपक गया था अंदर पहनी काली ब्रा साफ़ दिख रही थी

वो मुझसे कुछ आगे चल रही थी तो न चाहते हुए भी मेरे मन के चोर की नजरें उनके इठलाते हुए नितंबो पर ठहर ही गयी थी, उस लचक ने मेरे मन में सुलगते वासना के शोलो को कुछ हवा सी दे दी थी

माँ से भी बढ़कर ताई के बारे में अब मेरे मन में एक तंदूर दहकने लगा था और जिसे अब बस वासना से सुलगना था ,रस्ते भर बस कुछ हलकी फुलकी बाते हुई हमारे बीच ,तो मालूम हुआ आज के दिन किसी बाबा ने मंदिर में समाधी ली थी तो उसकी ही पूजा थी
ऊपर चढ़ने में ताई की साँस फूल गयी तो उन्होंने एक हाथ मेरे कंधे पर रख दिया और मेरे साथ चलने लगी,उस परिस्तिथि में मेरी कोहनी हलके हलके से उनके वक्षो से रगड़ खाने लगी तो मेरे बदन में अजीब सा होने लगा ऊपर से उनकी वो पसीने की महक,

एक ऐसा अहसास जो मुझे उत्तेजना की तरफ ले जा रहा था मेरा मन अब सब कुछ भूल कर ताई की वो महक लेना चाहता था कभी कभी मेरी कोहनी कुछ तेजी से उनके वक्षो पर रगड़ी जाती पर ताई के लिए ये सब सामान्य सा प्रतीत हो रहा था,प्रांगण में काफी भीड़ थी तो हम भी लाइन में लग गए 

ताई- भीड़ बहुत है ,दर्शन में देर होगी 

मैं- जी, घंटा भर तो लग ही जायेगा 

ताई- आज गर्मी भी ज्यादा ही पड़ रही है एक मेह पड़ जाए तो कुछ चैन मिले

ताई ने मेरे हाथ से थाली ली और लाइन में लग गयी ,मैं भी उनके पीछे खड़ा हो गया पर क्या जानता था कि बस इसी लम्हे से मेरे पतन के अध्याय की पहली कलम चलेगी ,लाइन किसी चींटी सी रेंग रही थी और धीरे धीरे भीड़ बढ़ रही थी

हम कुछ आगे हुए थे की पीछे से कुछ धक्का सा आया और मैं बिलकुल ताई के पिछले हिस्से से रगड़ खा गया और बदहवासी में मेरा हाथ ताई के पेट से थोड़ा ऊपर कसा गया ,ताई हल्का सा कसमसाई और बोली-" आराम से बेटा, ऐसे धक्के तो लगते ही रहेंगे थोड़ा आराम से गिर न जाना किसी का पाँव लगा तो चोट लगेगी"

मैं- जी,

कुछ समय औऱ गुजरा भीड़ बढ़ी और साथ ही मेरे और ताई के बीच जो भी गैप था वो भरता गया एक बार फिर से ताई के नर्म कूल्हों का स्पर्श मेरे अगले हिस्से पर होने लगा और इस बार चाह कर भी मैं अपने उत्तेजित होते लण्ड पर काबू ना रख सका

चूँकि मैंने पायजामा पहना हुआ था तो अब समस्या विकट हो चली थी मैं चाहकर भी इसको रोक नहीं पा रहा था और तभी पीछे से लगे झटके ने बाकि काम कर दिया मेरा तना हुआ लण्ड सीधा ताई के कूल्हों की दरार पर जाके लगा 

और शायद ताई ने भी उस तूफान को महसूस कर लिया एक बार पलट कर देखा उन्होंने और फिर थोड़ा सा आगे को सरकी पर शायद आज ये सब ही होना था उस लंबी लाइन में ये बार बार दोहराया गया जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे शरीर और संकुचित हो रहे थे मैं ताई की गांड को खूब अच्छे से महसूस कर रहा था 

उनके पसीने की महक मेरे तन में मादकता भर रही थी मेरे लण्ड का दवाब अपनी गांड पर लगातार महसूस करते हुए ताई की आँखे बस आस पास के लोगो पर ही घूम रही थी 

ताई- देव , अपना नंबर आने वाला है भीड़ ज्यादा है मैं थाली ऊँची कर रही हु तू अपने हाथ नीचे कर ले ताकि कुछ गिरे तो पकड़ ले 
मैं- जी


ताईजी ने अपने दोनों हाथ ऊपर किये और मैंने अपने हाथ उनकी बगलों के नीचे से आगे को कर दिए अब हुआ यु की इस तरह मैं पूरी तरह से उनके पीछे चिपक सा गया और मेरे लण्ड का दवाब एक बार फिर से ताई के चूतड़ पर बढ़ गया 

पर साथ ही अब मेरी दोनों कोहनियां ताई की चूचियो से रगड़ खा रही थी उत्तेजना अपने चरम पर थी ऊपर से ताई की बार बार हिलती गांड जो मुझे वही छूट जाने पर मजबूर कर रही थी पर कुछ देर बाद ही ये अवसर ख़तम हो गया 

हमने पूजा ख़त्म की और बाहर निकल आये ताई एक पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठ गयी और मुझे थोड़ा पानी लाने को कहा
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